चंपाई सोरेन

चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल कोल्हान की इन 3 सीटों से लड़ सकते हैं चुनाव

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चंपाई सोरेन सरायकेला विधानसभा सीट से ही चुनाव लड़ेंगे या फिर इस बार वो कोल्हान की ही किसी दूसरी सीट से किस्मत आजमाएंगे. क्या चंपाई सोरेन अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को भी चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं. अगर बाबूलाल सोरेन भी विधानसभा चुनाव में चुनाव लड़ते हैं तो वो सीट कौन सी होगी.

दरअसल, चंपाई सोरेन के जेएमएम से बगावत करने के बाद इस तरह के तमाम सवाल झारखंड के राजनीतिक गलियारों में लगातार उठ रहे हैं.

चंपाई सोरेन झारखंड की सियासत के केंद्र में

झारखंड में विधानसभा चुनाव के हलचल के बीच चंपाई सोरेन सबसे ज्यादा चर्चा में बने हुए हैं. चंपाई झामुमो से बगावत कर चुके हैं लेकिन आगे क्या करेंगे इस पर खुलकर बात नहीं कर रहे हैं. हालांकि उनका कहना है कि एक सप्ताह में वो सबकुछ क्लियर कर देंगे कि आगे उनकी रणनीति क्या है. इसी बीच कयासों के बाजार गर्म हो रहे हैं कि चंपाई सोरेन आखिर किस सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे.

चंपाई सोरेन का सरायकेला में रहा है वर्चस्व

सरायकेला विधानसभा सीट पर उनका वर्चस्व लंबे समय से रहा है. सरायकेला में चंपाई सोरेन लगातार 2005 से 2019 तक 4 बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं वहीं झारखंड गठन से पहले भी 1991 और 1995 में चंपाई सोरेन ने सरायकेला सीट जीतकर झामुमो की झोली में डाली थी.

हालांकि चंपाई सोरेन को कोल्हान टाइगर की उपाधि दी गई है, लेकिन चुनाव में सरायकेला को छोड़कर कोल्हान की अन्य सीटों पर उनका बहुत अधिक प्रभाव देखने को नहीं मिला है.

सरायकेला में कैसा रहा चंपाई सोरेन का सियासी सफर

बीते 2019 के चुनाव में चंपाई सोरेन लगभग 15 हजार वोटों से जीते थे.उन्होंने भाजपा के गणेश महाली को हराया था. 2019 में चंपाई सोरेन अपने करियर के सबसे अधिक मार्जिन से चुनाव जीते थे. ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि चंपाई एक बार फिर सरायकेला सीट से ही अपनी किस्मत आजमाएंगे.
2005 से चंपाई सोरेन के जीत के मार्जिन पर गौर करें तो-

2005 के विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन भाजपा के लक्ष्मण टुडू से मात्र 882 वोटों से जीते थे.

2009 में जीत का अंतर लगभग साढ़े 3 हजार वोटों का था.इस बार भी भाजपा के लक्ष्मण टुडू दूसरे नंबर पर रहे थे.

2014 के चुनाव में चंपाई सोरेन ने भाजपा के गणेश महाली को 1 हजार 115 वोटों से हराया था.

2019 के चुनाव में चंपाई सोरेन को रिकॉर्ड 1 लाख 11 हजार 554 वोट मिले थे. वहीं भाजपा के गणेश महाली को 95 हजार 887 वोट मिले और चंपाइ सोरेन ने गणेश महाली को 15 हजार 667 वोटों से हराया.

अब इस बात की संभावना जताई जा रही है कि चंपाई सोरेन चुनाव लड़ते हैं तो वो सीट सरायकेला हो सकती है हालांकि चंपाई सोरेन ने अब तक इस मामले में किसी तरह का कोई बयान नहीं दिया है.

किन चंपाई के बगावत करने के समय से ही उनके बेटे बाबूलाल सोरेन का नाम बार-बार सामने आ रहा है.

चंपाई के बेटे बाबूलाल करेंगे सियासी आगाज

कहा जा रहा है कि बाबूलाल सोरेन भी 2024 के विधानसभा चुनाव से ही अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले हैं. लेकिन अब मामला यहीं आकर फंसता है कि अगर बाबूलाल सोरेन चुनाव लड़ते हैं तो वो सीट कौन सी होगी. क्योंकि चंपाई सोरेन फिलहाल राजनीति से संयास नहीं ले रहे हैं तो ऐसे में अपनी सीटिंग सीट तो बेटे को नहीं देंगे फिर इसके बाद कोल्हान की ऐसी कौन सी सीट है जिस पर चंपाई सोरेन अपने बेटे को चुनाव लड़वा सकते हैं.

कोल्हान की राजनीति को नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकारों का अनुमान है कि चंपाई सोरेन अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को या तो घाटशिला विधानसभा या फिर पोटका विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतार सकते हैं. इन दो सीटों को चुनने का सबसे बड़ा कारण है यहां कि डेमोग्राफी इन सीटों पर सबसे अधिक संथाल या सोरेन वोटरों का सबसे अधिक प्रभाव है.

घाटशिला विधानसभा सीट की डेमोग्राफी पर नजर डालें तो चाणक्य सर्वे की रिपोर्ट बताती है यहां मुर्मू वोटरों की आबादी लगभग 7.2 फीसदी है, सोरेन 4.1, हेंब्रम 3.2 हांसदा 3 प्रतिशत , घाटशिला में मौजूदा विधायक भी रामदास सोरेन हैं. रामदास सोरेन 2009 में भी यहां जीत हासिल कर चुके हैं. इसी प्रकार पोटका विधानसभा सीट पर भी संथाली वोटरों का अच्छा प्रभाव है. इन्हीं वोटरों को साधते हुए चंपाई सोरेन अपने बेटे को इन दो में से किसी एक सीट से चुनाव लड़वा सकते हैं.

अब चंपाई सोरेन जब अगले सप्ताह सभी रहस्यों से पर्दा उठाएंगे तब ये साफ होगा कि चंपाई सोरेन आगे क्या करने वाले हैं लेकिन चंपाई सोरेन के बगावत करने से सीएम हेमंत सोरेन को थोड़ी परेशानी का सामना तो करना पड़ रहा है. हेमंत सोरेन इससे पहले कोल्हान की स्थिति को लेकर निश्चिंत थे उन्हें भरोसा था कि चंपाई सोरेन सबकुछ संभाल लेंगे लेकिन अब हेमंत सोरेन को बार बार कोल्हान जाकर वहां की स्थिति पर खुद काम करना पड़ रहा है. कोल्हान में हेमंत सोरेन के लिए डैमेज कंट्रोल करना बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.
हालांकि अब कोल्हान की जनता किसके तरफ जाती है. चंपाई सोरेन के साथ बने रहती है ये हेमंत सोरेन पर भरोसा जताती है ये तो अब चुनावी नतीजों के बाद ही क्लियर हो पाएगा. फिहला सबकी निगाहें चंपाई सोरेन पर टिकी हुई है.

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