बाबूलाल मरांडी को क्यों बनाया गया झारखंड भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष, समझिए

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भारतीय जनता पार्टी मिशन-2024 की तैयारियों में जुट चुकी है. और इसी के मद्देनजर भाजपा ने 7 जुलाई को एक साथ झारखंड सहित तीन अन्य राज्य आंध्र प्रदेश, तेंलगाना और पंजाब जैसे राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति की है. लेकिन इसमें हम झारखंड के नए प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की बात करेंगे. झारखंड में भाजपा हाई कमान ने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के चेहरे पर दांव खेला और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने एक बार फिर आदिवासी चेहरे पर दांव खेला है. खैर, यह दांव कितना सटीक बैठता है इसका आकलन तो आने वाले 2024 लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद ही किया जा सकता है. लेकिन हम आपको कुछ ऐसे कारणों के बारे में बताएंगे, जिसकी वजह से भाजपा हाई कमान को बाबूलाल पर दांव लगाना पड़ा.

साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा, प्रदेश के संताल परगना में भाजपा का कोई भी आदिवासी नेता जीत दर्ज नहीं कर सका था. संतान में कुल 18 विधानसभा सीटें है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी हर हाल में इन सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य बना रही है. ऐसे में बाबूलाल मरांडी इन क्षेत्रों में भाजपा के लिए ध्रुव का एक्का साबित हो सकते हैं. क्योंकि बाबूलाल संताल आदिवासी समुदाय से ही आते हैं और आदिवासी समाज में बाबूलाल मरांडी की पकड़ भी अच्छी है. ऐसे में हम आपको कुछ महत्वपूर्ण प्वाइंट्स से समझाते हैं कि आखिर भाजपा हाई कमान ने बाबूलाल पर दांव क्यों खेला.

ऐसा माना जा रहा था कि आदिवासी समाज भाजपा में नाराज चल रही है. जिसके बाद से भाजपा उन्हें अपने पाले में लाने के लिए लगातार प्रयासरत थी. फिर चाहे 15 नवंबर यानी बिरसा मुंडा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रुप में मनाना या राष्ट्रपति के तौर पर आदिवासी महिला द्रोपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाना. बता दें कि महामहिम द्रौपद्री मुर्मू उसी संताल आदिवासी समाज से आती है, जिसकी संख्या झारखंड समेत कई राज्यों में अच्छी खासी है. बाबूलाल मरांडी ने जब फरवरी 2020 में अपनी पार्टी जेवीएम का भाजपा में विलय किया था, उसी के बाद से उन्हें पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी की बात सामने आ रही थी.

झारखंड भाजपा में बाबूलाल मरांडी एकलौते नेता रहे हैं, जिन्होंने हेमंत सोरेन पर लगे आरोपों पर उन्हें लगातार निशाना बनाया है. फिर चाहे वो सोशल मीडिया के माध्यम से हो या फिर सार्वजनिक मंचों पर, बाबूलाल मरांडी, हेमंत सोरेन की महागठबंधन सरकार पर पिछले एक साल से लगातार हमलावर रहे हैं. फिर चाहे वो पूजा सिंघल का मामला हो या पंकज मिश्रा या फिर रांची के पूर्व डीसी छवि रंजन का मामला. बाबूलाल मरांडी ने जितना हेमंत सोरेन को घेरा है, झारखंड भाजपा के किसी भी नेता ने सरकार और हेमंत सोरेन को उतना नहीं घेरा था. फिर चाहे वो खुद प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश हो या फिर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास. ऐसे में उन्हें इसका भी फायदा हाई कमान से मिला है.

बाबूलाल की राजनीतिक जीवन काफी सरल और भ्रष्टाचार से मुक्त रही है. झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर आज भी उनके कामों की सराहना और चर्चा राजनीतिक गलियारों में होती है. पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद बाबूलाल अब तक किसी भी सरकार का हिस्सा नहीं रहे हैं. ऐसे में उन पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं. आदिवासी नेता होने के बावजूद बाबूलाल मरांडी की स्वीकार्यता गैर-आदिवासी क्षेत्रों में भी अच्छी खासी है. खैर, अब बाबूलाल भाजपा के लिए कितना फायदेमंद होते हैं और क्या बाबूलाल पर भाजपा की दांव उन्हें सत्ता तक पहुंचा सकती है. इसका आकलण तो चुनाव के दौरान और जीत हार से ही तय हो सकता है.

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