गृहमंत्री अमित शाह 2 दिवसीय बिहार दौरे पर आज पटना पहुंच रहे हैं.
क्या ये भारतीय जनता पार्टी की ओर से बिहार चुनाव का आधिकारिक आगाज है. क्या अमित शाह गोपालगंज से ही बिहार चुनाव के लिए भाजपा की तैयारियों का शंखनाद करेंगे.
क्या गोपालगंज से ही बिहार में अबकी बार 225 पार का नारा बुलंद किया जायेगा.
क्या आधुनिक राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले अमित शाह लालू और राबड़ी के गृह जिला गोपालगंज से ही बिहार चुनाव के लिए भाजपा के चुनावी कैंपेन का आगाज करेंगे.
खबरें हैं कि अमित शाह पटना में पार्टी के पदाधिकारियों, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे. साथ ही उनका एनडीए घटक दल के नेताओं के साथ भी बैठक प्रस्तावित है. ऐसे में क्या अमित शाह, बिहार में एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे पर भी कोई बड़ा फैसला करेंगे.
क्या इस बैठक में अमित शाह स्थानीय नेताओं से यह सलाह-मशविरा भी करेंगे कि नीतीश कुमार को ही चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा जाये या नहीं. क्या, अमित शाह के इस दौरे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सियासी भविष्य को लेकर कोई बड़ा फैसला हो सकता है.
क्या, गृहमंत्री अमित शाह जेडीयू पर यह दबाव बनाने का प्रयास करेंगे कि पार्टी, नीतीश कुमार से इतर कोई दूसरा चेहरा मुख्यमंत्री पद के लिए चुन ले या फिर क्या, गृहमंत्री जेडीयू को यह समझाने का प्रयास करेंगे कि एनडीए में भाजपा की ओर से ही मुख्यमंत्री का चेहरा होने उचित रहेगा.
क्या, गृहमंत्री अमित शाह का बिहार दौरा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सियासी भविष्य का फैसला करने वाला साबित होगा.
नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित है बिहार विधानसभा चुनाव
बिहार में इसी साल के अंत में चुनाव होना है. निर्वाचन आयोग संभवत नवंबर या दिसंबर माह में बिहार चुनाव का ऐलान कर सकता है. बिहार में इसकी तैयारी शुरू हो गयी है.
नीतीश कुमार जहां प्रगति यात्रा के जरिये जनता से जुड़ने की कवायद में लगे हैं तो भाजपा के बड़े नेताओं की जनसभाएं हो रही है.
आरजेडी के तेजस्वी यादव भी जन विश्वास यात्रा के जरिये जनता से जुड़ने की कोशिशों में लगे हैं.
इसी कड़ी में 30 मार्च को गोपालगंज में गृहमंत्री अमित साह की विशाल जनसभा का आयोजन किया गया है. तस्वीरों और ट्वीट से ऐसा लगता है कि बिहार भाजपा ने इस रैली के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल, उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, प्रदेस प्रभारी के साथ-साथ जिलाध्यक्ष, प्रखंड अध्यक्ष और बूथ-मंडल अध्यक्ष तक ने अपनी क्षमता झोंक दी है.
गोपालगंज बिहार के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी का गृह जिला है.
कहा जा रहा है कि यहां से चुनावी कैंपेन का आगाज करके अमित शाह बिहार को बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश देना चाहते हैं. इस रैली में भारी संख्या में लोगों को जुटने का अनुमान है. अमित शाह की रैली के जरिये बिहार भाजपा दरअसल, एक तरह से शक्ति प्रदर्शन करना चाहती है.
प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी 225 सीटों पर जीत का लक्ष्य लेकर चल रही है.
हालांकि, इन सबमें सवाल है कि बिहार में एनडीए की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा. मीडिया के सामने तो घटक दल के नेता नीतीश कुमार का नाम लेते हैं लेकिन दबी जुबान में जो भी कहा जा रहा है उसमें भयंकर अंतर्विरोध है.
भारतीय जनता पार्टी, नीतीश कुमार के नाम पर सहज नहीं है.
इसके पीछे राजनीतिक महात्वाकांक्षा तो एक कारण है ही लेकिन उससे भी बड़ा दूसरा कारण है नीतीश कुमार की मानसिक दशा और उनका स्वास्थ्य. कहा जा रहा है कि 2 दिवसीय बिहार दौरे पर आ रहे गृहमंत्री नीतीश कुमार सीएम फेस वाला मुद्दा भी सुलझाने आ रहे हैं.
नीतीश कुमार की तबीयत और मानसिक दशा पर उठते सवाल
पिछले करीब 6 महीने में नीतीश कुमार के सार्वजनिक व्यवहार पर आरजेडी और कांग्रेस जैसे विपक्षियों ने तो सवाल किया ही है, खुद जेडीयू के नेता भी नीतीश कुमार को लेकर श्योर नहीं हैं.
भारतीय जनता पार्टी में तो दबी जुबान में चर्चा है कि नीतीश कुमार का स्वास्थ्य अब बिहार की गद्दी पर बैठने के काबिल नहीं रहा. यही वजह है कि भाजपा के नेता ये तो कहते हैं कि चुनाव में चेहरा नीतीश कुमार होंगे लेकिन क्या वह मुख्यमंत्री भी बनेंगे, इस सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं.
दरअसल, बिहार बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार जितना ज्यादा सार्वजनिक कार्यक्रमों में शीर्ष पर दिखेंगे, गठबंधन को उतना ही ज्यादा नुकसान होगा. उसकी तरफ से कोशिश है कि जेडीयू या तो किसी ओर व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करे या फिर मुख्यमंत्री भाजपा का होगा. सियासी जानकारों का मानना है कि जेडीयू की मजबूरी है कि यदि नीतीश नहीं तो कौन क्योंकि पिछले 23 साल में नीतीश कुमार ने किसी और व्यक्ति को पनपने नहीं दिया.
किसी भी व्यक्ति को समानांतर पावर सेंटर नहीं बनने दिया.
ललन सिंह, प्रशांत किशोर, जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव जैसे न जाने कितने नेता हैं जिनको नीतीश कुमार ने समय-समय पर किनारे लगाया. जेडीयू के साथ ये भी समस्या रही है कि और क्षेत्रीय पार्टियों की तरह यहां नीतीश कुमार की अगली पीढ़ी सियासत में नहीं आई. अब जबकि निशांत कुमार लाये गये हैं तो काफी देर हो चुकी है.
जानकारों का मानना है कि नीतीश के स्वास्थ्य और मानसिक दशा पर उठते सवालों के बीच सत्ता और पार्टी बचाए रखने के लिए ही अचानक, निशांत कुमार को सीन में लाया गया है लेकिन, बड़ा सवाल है कि खुद निशांत कुमार इसके लिए कितने तैयार हैं. वह कभी भी सियासत में नहीं थे. उन्होंने इंजीनियर की पढ़ाई के बाद अक्सर बिना लाइमलाइट वाली गुमनाम जिंदगी ही जिया है.
उनका सियासत का कोई अनुभव नहीं है.
अपने पिता की पार्टी में ही कभी काम नहीं किया और यहां तो भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन को साथ लेकर चलना है. क्या निशांत कुमार इसके लिए तैयार हैं.
यदि मानसिक स्वास्थ्य की वजह से सीन से हटाये जा रहे नीतीश कुमार, निशांत कुमार को आगे करने की बात करते भी हैं तो क्या भाजपा मानेगी. क्या सम्राट चौधरी या भाजपा के बड़े कद के नेता निशांत कुमार की अगुवाई में काम करना पसंद करेंगे. इसकी संभावना कम ही बनती है. नामुमकिन ही समझिये.
नीतीश कुमार को और नेतृत्व सौंपने के पक्ष में नहीं है बीजेपी
वैसे भी भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगता रहा है कि वह विभिन्न राज्यों में अपने सहयोगियों को खा जाती है.
पिछले 1 दशक में बिहार में जेडीयू की सीटें जिस तरीके से घटी है, वह इसकी पुष्टि भी करता है. नीतीश 40 के आसपास सीट लाकर भी मुख्यमंत्री इसलिए हैं क्योंकि पिछड़ा, कुर्मी, कोयरी और महिलाओं का वोट बैंक उनके साथ है.
आगे भी भाजपा जेडीयू के साथ इसलिए जायेगी क्योंकि यह समीकरण का तकाजा है.
कहा जाता है कि यदि भाजपा अपने बूते बहुमत के करीब भी पहुंची तो जेडीयू को किनारे लगा देगी. हालांकि, निकट भविष्य में ऐसा होता नहीं दिख रहा है वह भी तब जबकि केंद्र में भाजपा को जेडीयू की जरूरत है.
नीतीश कुमार का स्वास्थ्य और सार्वजनिक व्यवहार भी ऐसा है कि उनको नेतृत्व नहीं सौंपा जा सकता.
स्थानीय नेताओं से सलाह-मशवरा करेंगे गृहमंत्री अमित शाह
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप जायसवाल ने जानकारी दी है कि गृहमंत्री अमित शाह प्रदेश भाजपा कार्यालय में पार्टी पदाधिकारियों, विधायकों, सांसदों, विधान पार्षदों और राज्य एवं केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ मीटिंग करेंगे.
पूरी उम्मीद है कि यहां स्थानीय नेता, गृहमंत्री को बिहार की ताजा स्थिति और इसमें नीतीश कुमार की भूमिका से अवगत कराएंगे.
जाहिर है कि स्थानीय नेताओं द्वारा यह कहा जायेगा कि नीतीश कुमार के सार्वजनिक व्यवहार से न केवल सरकार बल्कि भारतीय जनता पार्टी को भी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. राष्ट्रगान के समय नीतीश कुमार का लगातार हंसना, बात करते रहना और हाथ जोड़ना, एक ऐसा कृत्य है जिसका चाहकर भी बचाव नहीं किया जा सकता.
30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के दौरान नीतीश कुमार ताली बजाने लगे थे. स्पीकर को उन्हें रोकना पड़ा. तब भी गठबंधन और सरकार की काफी फजीहत हुई थी.
स्थानीय नेता तो नेतृत्व परिवर्तन की मांग करेंगे ही.
ऐसा भी नहीं है कि गृहमंत्री इस बात से अवगत न हों. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ दुविधा ये है कि उसे केंद्र और राज्य में जेडीयू का साथ चाहिए लेकिन नीतीश कुमार का स्वास्थ्य नेतृत्व के काबिल नहीं.
ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह के पास क्या विकल्प बचता है.
नीतीश कुमार भी नेतृत्व छोड़ने को तैयार नहीं हैं. बेटे निशांत कुमार कहते हैं कि पिता नीतीश कुमार और 5 साल बिहार के मुख्यमंत्री रह सकते हैं. बीजेपी इससे कतई सहमत नहीं होगी चाहे सार्वजनिक मंच पर कुछ न कहे. ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह क्या करेंगे जिनको आधुनिक राजनीति का चाणक्य कहा जाता है.
निशांत को डिप्टी सीएम बनाकर जेडीयू को साधेगी भाजपा
प्रदेश भाजपा के नेताओं और सियासी जानकारों को भी लगता है कि गृहमंत्री अमित शाह ये समस्या चुटकियों में सुलझा लेंगे. वह जेडीयू का साथ भी लेंगे और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी छोड़ने के लिए मना लेंगे.
सवाल है कि ऐसा होगा कैसे होगा?
हो सकता है कि गृहमंत्री के समझाने पर नीतीश कुमार वस्तुस्थिति को समझ जाएंगे.
गृहमंत्री नीतीश कुमार को यह विकल्प देंगे कि आप केंद्र की राजनीति में आइये. या तो उनको राज्यसभा का सांसद बना दिया जायेगा या फिर केंद्री कैबिनेट में कोई मंत्रालय.
पटना में एनडीए घटक दल के साथ भी गृहमंत्री की मीटिंग प्रस्तावित है.
संभव है कि अमित शाह इस मीटिंग में जेडीयू को भी वस्तुस्थिति से अवगत कराये और समझाए कि निशांत कुमार अभी गठबंधन का नेतृत्व संभालने अथवा सीएम का पद ग्रहण करने को तैयार नहीं हैं. यदि गठबंधन को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री भाजपा का होगा और निशांत कुमार को उपमुख्यमंत्री बनाने के साथ कुछ बड़े विभाग दिए जाएंगे. जेडीयू को कुछ अन्य अहम मंत्रालय भी सौंप दिए जाएंगे. इस तरह से अमित शाह जेडीयू के साथ केंद्र और बिहार दोनों को साध सकते हैं.
हालांकि, चुनाव में अभी वक्त है.
जेडीयू इन शर्तों पर सहमत हो भी सकती है क्योंकि जेडीयू को भी पता है कि उनका नेता अवसान की ओर है. निशांत इतनी देरी से आये हैं कि अभी तुरंत सत्ता का सिरमौर नहीं बन सकते. उनका नेतृत्व गठबंधन में स्वीकार भी नहीं किया जायेगा. कोई और नेता तैयार भी नहीं किया गया जिसके नाम पर भाजपा सहमत हो जाये.
ऐसे में नीतीश को केंद्र में मंत्रालय, निशांत कुमार को उपमुख्यमंत्री और भाजपा का मुख्यमंत्री अच्छा विकल्प हो सकता है.
बड़ा सवाल है कि क्या ये सबकुछ गृहमंत्री के इसी बिहार दौरे में फिक्स हो जायेगा. निशांत कुमार भी खुद कह चुके हैं कि गठबंधन जितनी जल्दी नेता का चुनाव कर लेगा उतना बेहतर होगा.
वह अभी भी स्वाभाविक रूप से पिता को ही नेतृत्व सौंपने की वकालत कर रहे हैं लेकिन शायद वस्तुस्थिति से वह भी अवगत होंगे और उनकी पार्टी भी. बाकी तो सब भविष्य के गर्भ में छिपा है.
इतना तय है कि बिहार चुनाव बहुत दिलचस्प होने वाला है.