Report – Vivek Aryan
बिहार चुनाव 2025: एनडीए में खटपट और जीतन राम मांझी का दांव
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां शुरू होते ही सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। जहां एक तरफ महागठबंधन (INDIA गठबंधन) में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बीच तनातनी की खबरें सुर्खियों में थीं, वहीं अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में भी सब कुछ ठ “‘ठीक नहीं चल रहा है।
केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के संरक्षक जीतन राम मांझी ने अपने ताजा बयान से एनडीए के भीतर हलचल मचा दी है। मांझी ने कहा कि उनकी पार्टी को इस बार 40 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए और अगर उनकी पार्टी 20 सीटें भी जीतती है, तो बिहार का अगला मुख्यमंत्री उनकी पार्टी से होगा।
इस बयान ने न केवल एनडीए के सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। दूसरी ओर, एक वीडियो सामने आया है जिसमें तेजस्वी यादव, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी फोन पर सोनिया गांधी से बात करते दिख रहे हैं, और राहुल गांधी उनके बगल में बैठे हैं।
यह वीडियो महागठबंधन में एकता का संकेत देता है। ऐसे में मांझी का यह राग क्या संकेत देता है और इसका बिहार की सियासत पर क्या असर पड़ सकता है? आइए इसे विस्तार से समझें।
मांझी का पूरा बयान और उसकी पृष्ठभूमि
“बिहार में सबको मुख्यमंत्री ही बनना है”
बिहार में सबको मुख्यमंत्री ही बनना है। नीतीश हटना नहीं चाह रहे हैं, तेजस्वी एक टांग पर खड़े हैं, इधर कन्हैया ने चंपारण से यात्रा शुरू कर दी है, नीतीश के बेटे निशांत भी घात लगाए बैठे हैं, प्रशांत किशोर भी अपने स्तर पर कोशिश कर रहे हैं। इस बीच एक नया नाम सामने आ गया है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का। और ये हम नहीं कह रहे, उन्होंने खुद ही कहा है कि अगर हम पार्टी को 20 सीटें आ जाती हैं, तो मुख्यमंत्री उनकी पार्टी से ही होगा। उन्होंने अपना नाम नहीं लिया है, लेकिन सब जानते हैं कि हम पार्टी में हम का मतलब जीतन बाबू ही हैं। कुर्सी से उनका प्रेम भी जग जाहिर है, कि कैसे नीतीश कुमार के कहने पर भी वो कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे।
खैर, जीतन राम मांझी के इस बयान के बाद से एक बात तो साफ हो गई है कि एनडीए खेमे में भी सबकुछ ठ से ठीक नहीं है। नीतीश और भाजपा के बीच भी अलग ही टशन चल रहा है, जो बाहर भले ही नहीं दिख रहा है, अंदर आग तो पूरी तरह लगी हुई है। इसलिए भी नीतीश परेशान रह रहे हैं।
कुछ पत्रकारों का तो मानना है कि नीतीश के अजीबो-गरीब बिहेवियर के पीछे यही प्रेशर पॉलिटिक्स है, जो भाजपा उनके साथ खेल रही है। जीतन राम मांझी के बयान के बाज एनडीए के भीतर की कलह एक तरह से सामने आ गई है।
जीतन राम ने ऐसा क्यों कहा, क्या वे वाकई मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं? अगर हां, तो इस बात की कितनी संभावनाएं हैं। क्या भाजपा उन्हें 40 सीटें देने को तैयार हो जाएगी और क्या वे 20 सीटें जीत पाएंगे। और मान भी लेते हैं कि वे जीत जाएं, तो क्या जीतन राम मांझी एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन सकते हैं?
आज हम इसी सवाल का ढूंढेंगे जवाब और बताएंगे आपको कि एनडीए में क्या कुछ चल रहा है।
सबसे पहले हम जीतम राम मांझी के पूरे बयान को समझते हैं।
23 मार्च 2025 को गया जिले में एक जनसभा को संबोधित करते हुए जीतन राम मांझी ने कहा, “ कि हमारी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को इस बार विधानसभा चुनाव में 40 सीटों पर लड़ना चाहिए। हमारा वोट बैंक मजबूत है और अगर हम 20 सीटें भी जीतते हैं, तो बिहार का अगला मुख्यमंत्री हमारी पार्टी से होगा। हम जीते तो शेरघाटी को जिला बनवाएंगे और अपने समाज के हितों के लिए काम करेंगे। एनडीए में हमारी ताकत को कम करके नहीं आंका जा सकता।
” यह बयान मांझी ने तब दिया जब एनडीए के भीतर सीट बंटवारे की चर्चा शुरू हुई थी। सूत्रों के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी (BJP)और जनता दल यूनाइटेड(JD(U)) बड़े भाई की भूमिका में ज्यादा सीटें चाहते हैं, जबकि छोटे सहयोगी जैसे HAM, लोक जनशक्ति पार्टी (LJP-Ram Vilas)रामविलासऔर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश में हैं। हम को कम सीटें दिये जाने पर विचार किये जा रहे हैं। लेकिन छोटी पार्टियां अपनी अपनी कोशिश में लगे हैं, कि उन्हें भी अच्छी संख्या में सीटें मिले।
शायद इसलिए भी मांझी ने 40 सीटों की बात छेड़ी है, ताकि उन्हें 40 न सही लेकिन सम्मान जनक सीटें मिले। मांझी के बयान में जो दूसरा पहलू है, जिसमें वे मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहे हैं, यह एक तरह की धमकी भी है और शक्ति प्रदर्शन भी। वे एनडीए को याद दिला रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिर बनने की शक्ति रखते हैं, उन्हें हल्के में न लिया जाए। हो सकता है कि सीट बंटवारे की तिथि सामने आने पर एनडीए के बाकी दलों के बीच भी खटपट की स्थिति दिखाई दे।
मांझी का यह बयान उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा माना जा रहा है। 2020 के विधानसभा चुनाव में HAM को NDA के तहत सिर्फ 7 सीटें मिली थीं, जिनमें से उसने 4 पर जीत हासिल की थी। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में मांझी की गया सीट से जीत और केंद्र में मंत्री पद ने उनकी सियासी हैसियत बढ़ा दी है।
अब वे इस बढ़ी हुई ताकत को भुनाना चाहते हैं। उनका यह दावा कि “20 सीटें जीतने पर मुख्यमंत्री हमारा होगा,” नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA की एकता पर सवाल उठाता है। इससे पहले भी मांझी ने झारखंड और दिल्ली चुनावों में सीटें न मिलने पर नाराजगी जताई थी और कहा था, “अब बिहार में हम अपनी औकात दिखाएंगे।”
2020 के विधानसभा चुनाव में HAM को NDA के तहत सिर्फ 7 सीटें मिली थीं, जिनमें से उन्होंने 4 पर जीत हासिल की थी। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में मांझी की गया सीट से जीत और केंद्र में मंत्री पद ने उनकी सियासी हैसियत बढ़ा दी है। अब वे इस बढ़ी हुई ताकत को भुनाना चाहते हैं। उनका यह दावा कि 20 सीटें जीतने पर मुख्यमंत्री हमारा होगा, नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली NDA की एकता पर सवाल उठाता है। इससे पहले भी मांझी ने झारखंड और दिल्ली चुनावों में सीटें न मिलने पर नाराजगी जताई थी और कहा था, अब बिहार में हम अपनी औकात दिखाएंगे।
कुछ भी हो, लेकिन 4 सीटों की पार्टी को 40 सीटें मिलना असंभव सा है। यह मांझी भी जानते हैं, लकिन वे कोशिश कर रहे हैं कि आसमान से गिरेंगे, तभी तो खजूर पर लटकेंगे।
हम थोड़ा जीतन राम मांझी की राजनीति और वोट बैंक पर भी एक नजर डालते हैं
जीतन राम मांझी बिहार की सियासत में एक अनुभवी और जुझारू नेता हैं। 1980 में कांग्रेस से अपने करियर की शुरुआत करने वाले मांझी ने बाद में RJD और JD(U) मेंभीअहम भूमिकाएं निभाईं।निभाई है।2014 में नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद वे बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2015 में नीतीश से मतभेद के बाद उन्होंने HAM पार्टी बनाई। मांझी का मुख्य वोट बैंक महादलित समुदाय है, खासकर मुसहर और भुइयां जातियां, जो बिहार की आबादी का करीब 3- से 4%हैं। इसके अलावा, वे अन्य अति पिछड़ा वर्ग(EBC) और दलित समुदायों में भी अच्छा प्रभाव रखते हैं।
बिहार में जातिगत समीकरण सियासत की रीढ़ हैं। 2023 की जाति जनगणना के अनुसार, बिहार की आबादी में यादव 14.26%, कुशवाहा 4.21%, कुर्मी 2.87%, मुसहर 1.5%, और अन्य दलित जातियां (पासी, चमार आदि) करीब 19% हैं। मुसहर और भुइयां जैसे महादलित समुदाय गरीबी और सामाजिक पिछड़ेपन से जूझते हैं, और मांझी इनके लिए मसीहा की छवि रखते हैं। 2020 में HAM ने जिन 4 सीटों पर जीत हासिल की—इमामगंज, टिकारी, बर्बिघा और चकाई—वहां महादलित वोट निर्णायक रहा।
मांझी का दावा है कि अगर उन्हें 40 सीटें मिलती हैं, तो वे अपने वोट बैंक को संगठित कर कम से कम 20 सीटें जीत सकते हैं। लेकिन क्या यह दावा वास्तविक है? एनडीए में BJP और JD(U) अपने बड़े वोट बैंक (OBC, EBC, और ऊपरी जातियों) के दम पर 90-100 सीटें प्रत्येक चाहते हैं। ऐसे में मांझी की 40 सीटों की मांगअव्यवहारिक लगतीअपने आप ही खत्म हो जाती है। फिर भी, उनका दबाव NDAलेकिन अगर हम को मजबूर कर सकता है कि HAM कोएनडीए में10-15 सीटेंभी मिलती हैं, तो मांझी का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। दी जाएं, जो उनकी मौजूदा ताकत से दोगुनी होंगी।
एनडीए में खटपट और महागठबंधन की स्थिति
एनडीए में यह पहली बार नहीं है जब सहयोगियों के बीच तनाव दिखा हो। चिराग पासवान की LJP (Ram Vilas) भी 2020 में अलग होकर 137 सीटों पर लड़ी थी, जिससे JD(U) को नुकसान हुआ था। अब चिराग भी केंद्र में मंत्री हैं और कम से कम 20-25 सीटें चाहते हैं। उधर, उपेंद्र कुशवाहा की RLSP भी अपनी हिस्सेदारी मांग रही है। मांझी का बयान इस खींचतान का हिस्सा है, जो दिखाता है कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं है। नीतीश कुमार की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, जिससे छोटे सहयोगी अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं।
मांझी की तर्ज पर बाकी पार्टियां भी अपनी मांग बढ़ा सकती है और भाजपा उनके साथ पक्षपात नहीं कर सकती।
दूसरी तरफ, महागठबंधन में हाल तक कांग्रेस और RJD के बीच सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर खटपट की खबरें थीं। कांग्रेस 40-5070सीटें चाहती थी, जबकि RJD उसे 20-2540से ज्यादा देने को तैयार नहीं था। लेकिन कल यानी 24 मार्च2025 कोसामने आएएक वीडियो ने स्थिति बदल दी।
इसमें सामने आया है, जिसमें तेजस्वी, लालू और राबड़ी सोनिया गांधी सेफोन परबात कर रहे हैं, और राहुल गांधी वहीं मौजूद हैं।सभी सोनियां गांधी से उनका हाल समाचार पूछ रहे हैं। (यहां भी वीडियो लगा दें)। यह दर्शाता है कि दोनों दलों ने मतभेदलगभगसुलझा लिए हैं। तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानकर महागठबंधन एकजुट दिख रहा है। ऐसे में मांझी का अलग राग एनडीए की कमजोरी को उजागर करता है।
जातिगत विश्लेषण और संभावित असर
बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं। जीत के लिए 122 का जादुई आंकड़ा चाहिए। 2020 में NDA ने 125 सीटें जीती थीं (BJP-74, JD(U)-43, HAM-4, VIP-4), जबकि RJD ने 75 सीटों के साथ मजबूत प्रदर्शन किया था। मांझी का दावा है कि 20 सीटें जीतकर वे सरकार बनाने में निर्णायक होंगे। लेकिन इसके लिए उन्हें अपने महादलित वोट बैंक के साथ-साथ EBC और अन्य दलित वोटों को भी जोड़ना होगा।
• महादलित (मुसहर, भुइयां आदि): 3-4% आबादी, यानी 40-50 सीटों पर प्रभाव। मांझी इनका पूरा वोट हासिल कर सकते हैं।
• EBC (निषाद, तेली आदि): 36% आबादी। नीतीश का मजबूत आधार, लेकिन मांझी कुछ हिस्सा छीन सकते हैं।
• यादव: 14.26%, RJD का गढ़। मांझी को यहां से समर्थन मुश्किल।
• ऊपरी जातियां: 15%, BJP का आधार। मांझी के लिए चुनौती।
अगर मांझी 15-20 सीटें जीतते हैं और NDA बहुमत से चूक जाता है, तो वे किंगमेकर बन सकते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री पद की उनकी मांग अव्यवहारिक है, क्योंकि नीतीश और BJP इसे स्वीकार नहीं करेंगे। इससे NDA में टूट की संभावना बढ़ सकती है। दूसरी ओर, महागठबंधन की एकता मांझी के लिए चुनौती है। अगर वे NDA से अलग होते हैं, तो महागठबंधन उनका स्वागत कर सकता है, जैसा कि राहुल गांधी ने पहले कोशिश की थी।
निष्कर्ष
मांझी का 40 सीटों और मुख्यमंत्री पद का दावा उनकी सियासी महत्वाकांक्षा और दबाव की रणनीति को दिखाता है। यह एनडीए में अंदरूनी कलह को उजागर करता है, जबकि महागठबंधन एकता की ओर बढ़ रहा है।
बिहार की जातिगत सियासत में मांझी का वोट बैंक अहम है, लेकिन उनकी मांगें पूरी होना मुश्किल है। इसका असर यह हो सकता है कि एनडीए को सीट बंटवारे में समझौता करना पड़े, या मांझी अलग राह चुनें। बिहार का चुनावी रण अब और रोचक हो गया है।
बिहार में 243 विधानसभा सीटें हैं। जीत के लिए 122 का जादुई आंकड़ा चाहिए। 2020 में NDA ने 125 सीटें जीती थीं, जिसमें BJP-74, JD(U)-43, HAM-4 और VIP को 4 सीटें मिली थी। जबकि RJD ने 75 सीटों के साथ मजबूत प्रदर्शन किया था। कांग्रेस 16 सीटें लेकर आई थी। हालांकि इस बार मामला अलग होने वाला है।
मांझी की मांगे जायज है या नहीं, यह तो बहस में है ही नहीं, सवाल है कि एनडीए के एकजूट बने रहने की संभावना कितनी है और वे किस तरफ बढ़ रहे हैं?