क्या झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित लोकसभा और विधानसभा की सीटें कम हो जायेगी.
क्या परिसीमन से झारखंड में भारतीय जनता पार्टी मजबूत हो जायेगी. क्या परिसीमन के बाद झारखंड में सामान्य और ओबीसी सीटों की संख्या में इजाफा होगा. यदि जनसंख्या के आधार पर ही परिसीमन हुआ तो झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मसला कितना प्रभावी होगा.
परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों की चिंता के बीच आखिर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को किस बात की चिंता है.
क्या वजह है कि सदन में कल्याण विभाग के बजट पर कटौती प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष के विधायकों ने भाजपा पर प्रदेश में आदिवासी सीटें घटाने की साजिश रचने का आरोप मढ़ दिया. वर्ष 2026 में संभावित परिसीमन को लेकर झारखंड में हलचल क्यों तेज है. क्या वाकई में झारखंड में आदिवासियों की आबादी कम हो गयी है. यदि ऐसा है तो परिसीमन पर इसका क्या असर होगा.
झारखंड की मौजूदा आबादी करीब साढ़े 3 करोड़ आंकी जाती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में 26.17 फीसदी आदिवासी आबादी है. बाकी ओबीसी, अल्पसंख्यक और सामान्य वर्ग के लोग रहते हैं. भातीय जनता पार्टी कई बार ये दावा कर चुकी है कि झारखंड में और खासतौर पर संताल परगना के 6 जिलों में आदिवासियों की संख्या में तेजी से कमी आई है.
झारखंड में परिसीमन से किस दल को होगा फायदा
सवाल है कि झारखंड में आबादी के आधार पर परिसीमन होने से किस सियासी दल को फायदा होगा और कौन सी पार्टी फायदे में रहेगी.
अभी तक तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सहित सत्तापक्ष के तमाम विधायक यह आरोप लगाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी, प्रदेश में आदिवासी आरक्षित सीटों की संख्या कम करना चाहती है. झारखंड में अभी लोकसभा की 5 आदिवासी आरक्षित सीट है. इनमें 3 पर झारखंड मुक्ति मोर्चा तो 2 पर कांग्रेस पार्टी काबिज है.
28 आदिवासी आरक्षित विधानसभा सीटों में भाजपा के खाते केवल 1 सीट आई है वह भी चंपाई सोरेन ने जीता है.
जिस संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा गरमाया हुआ है, वहां भाजपा को 18 विधानसभा सीटों में से केवल 1 पर ही जीत मिल पाई है. भाजपा का मानना है कि संताल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ की वजह से मुस्लिम आबादी बढ़ी है. भाजपा यह भी दावा करती है कि इसी अंतराल में आदिवासियों की आबादी भी कम हो गयी है. डेमोग्राफी के इस बदलाव ने सत्तारुढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस को फायदा पहुंचाया है.
भाजपा ये आरोप भी लगाती है कि इस डेमोग्राफी से हो रहे फायदे को देखते हुए ही झामुमो औऱ कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करती है. भाजपा अब यहां एनआरसी की मांग कर रही है. चाहे वह गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे हों, नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी हों, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास हों या फिर झामुमो से भाजपा में आये वरीय नेता चंपाई सोरेन.
अभी हाल ही में 11 मार्च को निशिकांत दुबे ने लोकसभा में संताल परगना में डेमोग्राफी में बदलाव का मुद्दा उठाते हुए अलग संताल परगना राज्य की बात कह दी थी. वहीं, झारखंड विधानसभा में बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन सरकार से मांग कर दी कि वह संताल परगना में एनआरसी लागू करने में सहयोग करे.
दिलचस्प है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 2 फरवरी को पार्टी के स्थापना दिवस समारोह में कह दिया कि राज्य में एनआरसी लागू नहीं होने देंगे.
बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि संताल परगना में डेमोग्राफी में बदलाव हुआ है. मुस्लिम आबादी बढ़ी है और आदिवासियों की संख्या कम हो गयी है. आदिवासियों की कम होती जनसंख्या का नतीजा यह होगा कि परिसीमन में उनके लिए आरक्षित सीटों की संख्या कम हो जायेगी. सरकारी नौकरियों में उनके लिए अवसर कम होंगे.
परिसीमन से झारखंड में कम हो जाएगी आदिवासी सीटें
भाजपा जहां परिसीमन में डेमोग्राफी में बदलाव का तर्क देकर आदिवासी सीटों की संख्या कम होने की आशंका जता रही है तो वहीं सत्तारुढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का कहना है कि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन करने से झारखंड जैसे छोटे राज्य में लोकसभा सीटों की संख्या कम होगी. विधानसभा में भी आदिवासी आरक्षित सीटें कम हो जायेंगी.
शनिवार को विधानसभा परिसर में पत्रकारों से मुखातिब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि परिसीमन को लेकर पहले भी प्रयास किया गया था. आदिवासी आरक्षित सीटों को कम करने का प्रयास किया गया था. इसे लेकर हंगामा हुआ तो परिसीमन स्थगित हो गया. जब भी इस मुद्दे पर चर्चा होगी कि सीटों को क्यों कम किया जायेगा तो मैं अपने विचार रखूंगा.
इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा परिसीमन को लेकर शनिवार को चेन्नई में बुलाई गई ज्वॉइंट एक्शन कमिटी की बैठक पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा आज परिसीमन से संबंधित मुद्दे को लेकर बुलाई गई बैठक का मैं स्वागत करता हूं. परिसीमन केवल जनसंख्या के आधार पर सीमित करना निष्पक्ष औऱ न्यायसंगत नहीं हो सकता.
गौरतलब है कि लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर शनिवार को 5 राज्यों के सीएम और डिप्टी सीएम की बैठक तमिलनाडु में. एमके स्टालिन ने चेन्नई में ज्वॉइंट एक्शन कमिटी की मीटिंग बुलाई थी.
7 राज्यों के 14 नेता शामिल हुए.
बीजेडी प्रमुख नवीन पटनायक और टीएसमी भी इसमें शामिल हुए.
परिसीमन पर प्रस्ताव पास किया गया कि 1971 की जनगणना जनसंख्या के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों पर रोक को अगले 25 साल तक बढ़ाया जाये. जिन राज्यों में ने जनसंख्या कार्यक्रम प्रभावी ढंग से लागू किया है वहां संवैधानिक संशोधन लागू किए जाएं.
परिसीमन पर एमके स्टालिन के रुख पर हेमंत सोरेन की टिप्पणी
दक्षिणी राज्यों का तर्क है कि उन्होंने अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण कानून और तरीकों को उत्तरी राज्यों के मुकाबले ज्यादा कड़े और प्रभावी तरीके से लागू किया है. यही वजह है कि बड़े क्षेत्रफल में उत्तर भारतीय राज्यों के मुकाबले दक्षिण में जनसंख्या कम है. ऐसे में यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होगा तो ज्यादा आबादी वाले उत्तर भारतीय राज्यों में लोकसभा की सीटों में इजाफा होगा वहीं दक्षिण राज्यों में सीटें कम हो जायेगी.
इसका नकारात्मक परिणाम यह होगा कि दक्षिणी राज्यों को केंद्र से कम अनुदान मिलेगा. उनके मुद्दों और समस्याओं पर संसद में कम बात होगी. उनको हर मसले पर दोयम माना जायेगा.
तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने मांग की है कि परिसीमन के लिए केवल जनसंख्या आधार न होकर राज्यों की प्रति व्यक्ति आय, जीएसटी संकलन, कृषि आय और निर्यात आदि को भी मानदंड बनाना चाहिए. उन्होंने अगली बैठक हैदराबाद में बुलाई है.
झारखंड में लोकसभा की पांच आदिवासी आरक्षित सीट है
झारखंड में अभी विधानसभा की 81 सीटें हैं. इसे हमेशा कम ही माना गया है. दरअसल, 15 नवंबर 2000 को गठित झारखंड में 2014 के पहले हमेशा त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनती रही है. इसकी वजह केवल 81 विधानसभा सीटों के होने को माना गया.
हालांकि, 2014 में पहली बार भाजपा और 2019 एवं 2024 में इंडिया गठबंधन ने स्पष्ट जनादेश हासिल किया.
इसकी वजह सियासी जानकार पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की नीतियों की वजह से आदिवासियों का भाजपा से मोहभंग होने को मानते हैं. यह 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के नतीजों में भी दिखता है जहां आदिवासी आरक्षित सीटों पर भाजपा को करारी हार मिली है. सियासी जानकार मानते हैं कि भाजपा की मुख्य चिंता संताल परगना में कथित बांग्लादेशी घुसपैठ है.
आंकड़े तस्दीक करते हैं कि मुस्लिम आबादी बढ़ी है.
मुसलमान आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ ही मतदान करते हैं. वहीं, आदिवासी भी अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के पीछे लामबंद हो गये हैं. भाजपा की चिंता यह है कि यदि परिसीमन में संताल परगना में सीटों की संख्या बढ़ती है तो वहां की डेमोग्राफी भी इंडिया गठबंधन के घटक दलों के मुफीद होगी.
मसलन, यदि महागामा से अलग एक मेहरमा या गोड्डा से अलग पथरगामा विधानसभा, वहीं राजमहल में अलग साहिबगंज विधानसभा का गठन हुआ तो भी इंडिया गठबंधन की ही सीटें बढ़ेगी. भाजपा इसलिए यहां एनआरसी चाहती है ताकि अवैध प्रवासियों की पहचान हो सके. आबादी नियंत्रित हो और पार्टी की अपनी योजनाओं की बदौलत न केवल आदिवासियों का विश्वास हासिल किया जा सके बल्कि गैर-मुस्लिम मतदाताओं को हिंदुत्व के नाम पर इकट्ठा कर बड़ा वोट बैंक तैयार किया जा सके.
झारखंड मुक्ति मोर्चा को परिसीमन से क्या समस्या हो सकती है!
वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा को लगता है कि जनसंख्या के आधार पर लोकसभा और विधानसभा की सीटों में इजाफा तो होगा लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठ से बढ़ी मुस्लिम आबादी और घटती आदिवासी जनसंख्या का हवाला देकर केंद्र सरकार यहां आदिवासी आरक्षित सीटों की संख्या कम कर देगी और इसका उनको नुकसान होगा.
अब क्या सच है और क्या नहीं. किनकी आशंकायें सही और कौन फायदे में रहेगा. ये भविष्य के गर्भ में छिपा है.
अभी जो भी चर्चा है वह 2011 की जनगणना के मुताबिक है. नई जनगणना प्रस्तावित है. नियम के मुताबिक हर हाल में 2026 तक परिसीमन का काम पूरा करना है. लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ानी है क्योंकि भारत की आबादी 140 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है. इसलिए नया संसद भवन भी बना है.