67 सालों में पहली बार दो महिला प्रत्याशियों के बीच मुकाबला, चम्पई सोरेन भी आज़मा चुके हैं किस्मत

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Ranchi : झारखंड में चल रहे लोकसभा चुनावों में इस बार सबकी नजरें सिंहभूम सीट पर हैं। यहां पर पहली बार 67 सालों में प्रमुख रूप से दो महिला प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हो रहा है। भाजपा ने आदिवासी समाज से आने वाली गीता कोड़ा को चुनाव मैदान में उतारा है, तथा झामुमो के टिकट पर इंडिया के पक्ष से संताली समाज के विधायक जोबा मांझी को मैदान में खड़ा किया गया है।

1957 से अब तक इस सीट पर कुल 16 लोकसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें से 14 बार हो समाज से आने वाले प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा चुनाव हुआ था। 1952 में देश के पहले लोकसभा चुनाव में सिंहभूम लोकसभा सीट शामिल नहीं थी। 1991 के चुनाव में अंतिम बार यहां से संताल समुदाय के कृष्णा मार्डी ने विजय प्राप्त की थी।

अगर जोबा मांझी इस बार जीत हासिल करती हैं, तो 33 साल बाद यह होगा जब हो बहुल इलाके में कोई संताल जनता का प्रतिनिधित्व करेगा। दूसरी ओर, गीता कोड़ा इस बार मोदी सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख करती हुई जीत की दावेदारी कर रही हैं। यदि वह विजयी होती हैं तो, हो के कब्जे का रिकॉर्ड बरकरार रखेंगी। बता दें कि सिंहभूम सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है और यह हो बहुल है। यहां 61 आदिवासी मतदाता हैं, जिसमें हो समुदाय 54 हैं।

जोबा मांझी के पति भी लड़ चुके हैं चुनाव

सिंहभूम सीट से झामुमो प्रत्याशी जोबा मांझी के पति देवेंद्र मांझी भी चुनाव लड़ चुके हैं। वे झारखंड के बड़े आदिवासी नेताओं में से एक थे। उन्होंने 1984 में निर्दलीय इस सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि, उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी बागुन सुम्बुई से हार का सामना करना पड़ा। बागुन सुम्बुई हो समाज से आते थे। वहीं, देवेंद्र मांझी संताली आदिवासी थे। चुनाव में जीत और हार का अंतर करीब 24.9 प्रतिशत का था।

चंपाई सोरेन ने 1999 में लड़ा था चुनाव

इस सीट से मौजूदा मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन भी चुनाव लड़ चुके हैं। 1999 के चुनाव में उन्होंने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ा था। हालांकि वे तीसरे स्थान पर थे। पहले और दूसरे स्थान पर हो आदिवासी समाज से आने वाले क्रमश लक्ष्मण गिलुआ और विजय सिंह सोय थे। चंपाई सोरेन का वोट प्रतिशत 14.8 प्रतिशत था। चंपाई सोरेन भी संताली आदिवासी समाज से आते हैं।

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