आलमगीर आलम के PS संजीव लाल को लेकर सचिवालय पहुंची ED, खंगाले जा रहे कागजात

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ईडी ने झारखण्ड सरकार में मंत्री आलमगीर आलम के PS संजीव लाल के सहायक जहांगीर आलम और मुन्ना सिंह के ठिकाने से करीब 35 करोड़ रुपये बरामद किये हैं. जांच के मुताबिक, जहांगीर के गाड़ीखाना स्थित फ्लैट से जो 31 करोड़ 20 लाख रुपये बरामद किए गए थे, वह महज तीन माह में जमा किए गए थे. फ्लैट की खरीद भी कुछ माह पूर्व जहांगीर के नाम पर सिर्फ इसलिए की गई थी, ताकि यहां पैसों को रखा जा सके. मुन्ना सिंह के यहां से बरामद 2.93 करोड़ रुपये भी यहीं शिफ्ट किए जाने थे, लेकिन इससे पहले ईडी की टीम ने छापेमारी कर इन पैसों को बरामद कर लिया.

ED की टीम संजीव लाल के साथ सचिवालय पहुंची है. एफपीपी भवन में मौजूद ग्रामीण विकास विभाग के जिस कमरे में संजीव लाल बैठते थे, वहीं उन्हें ले जाया गया है. बताया जा रहा है कि टीम वहां भी कागजात खंगाल रही है. यहां किसी को आने-जाने की अनुमति नहीं दी गई है.

मंत्री आलमगीर आलम के पीएस संजीव लाल और उनके सहायक जहांगीर आलम को मंगलवार को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने दोनों को छह दिनों की रिमांड पर भेज दिया है. अब जानकारी मिल रही है कि पीएस संजीव लाल को सस्पेंड करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. कार्रवाई से संबंधित फाइल कार्मिक विभाग ने बढ़ा दी है.

सीएम चंपाई सोरेन की सहमति मिलते ही उन्हें सस्पेंड करने संबंधित लेटर जारी कर दिया जाएगा. बता दें कि संजीव लाल झारखंड प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं.

ईडी ने जहांगीर आलम और संजीव लाल को मंगलवार को कोर्ट में पेश किया. जहां रिमांड पिटीशन दायर कर अदालत को बताया कि ग्रामीण विकास विभाग की विकास योजनाओं में 15% की दर से कमीशन की वसूली होती है. संजीव लाल टेंडर मैनेज कर कमीशन की रकम वसूलता है. वसूली के लिए बने सिस्टम में इंजीनियर और ठेकेदार शामिल हैं. कमीशन की रकम जहांगीर आलम के पास रखी जाती है और यह राशि बड़े अफसरों और राजनीतिज्ञों तक जाती है. ईडी ने यह भी बताया कि संजीव लाल ने जहांगीर के नाम पर गाड़ी भी खरीदी है. इससे जहांगीर और संजीव के बीच गहरे संबंध होने की पुष्टि होती है.

झारखंड प्रशासनिक सेवा के अधिकारी संजीव कुमार लाल फिलहाल ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के सरकारी निजी सहायक हैं. इससे पहले वह दो-दो मंत्रियों के सहायक रह चुके हैं. वहीं, रांची में अंचलाधिकारी और कार्यपालक दंडाधिकारी के पद पर भी कार्यरत रहे हैं. मूल रूप से खूंटी के रहनेवाले संजीव की विभाग में अच्छी धाक थी. एक-एक टेंडर उनकी नजर से गुजरता था. छोटी-मोटी खरीद से लेकर अधिकारियों के पदस्थापन और तबादले पर उनकी नजर रहती थी.

कहा जाता है कि वह छोटे-छोटे काम में भी हस्तक्षेप करते थे. उनकी इच्छा के बगैर अधिकारी एक चपरासी तक का तबादला भी नहीं कर सकते थे. कई बार तो चपरासियों का तबादला रोकने के लिए अधिकारियों को मजबूर किया गया था. संजीव के कामकाज को लेकर कई बार अधिकारियों ने विभागीय मंत्री से शिकायत भी की थी.

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