झारखंड विश्वविद्यालय एक्ट में होगा बदलाव, असिस्टेंट प्रोफेसर भी बन सकेंगे विभागाध्यक्ष

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इस स्टोरी की शुरुआत हम झारखंड के स्टेट यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत शिक्षकों के लिए खुशखबरी के साथ करते हैं. अगर हम कहे कि स्टेट यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर भी अब विभागाध्यक्ष यानी हेड ऑफ डिपार्टमेंट, बन सकेंगे तो शायद आपको हमारी बात पर फिलहाल विश्वास ना हो. लेकिन ये बात बिल्कुल सही  है. सरकार जल्द ही झारखंड विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन कर इसे  बिहार की तर्ज पर लागू करने जा रही है.

इस अधिनियम के लागू होते ही स्टेट यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर भी विभागाध्यक्ष बन सकेंगे. लेकिन इस अधिनियम के पास होने के बाद भी सभी असिस्टेंट प्रोफेसरों को विभागाध्यक्ष बनने का मौका नहीं मिलेगा. किसी भी असिस्टेंट प्रोफेसर को अगर विभागाध्यक्ष बनाया जाएगा तो उसके लिए असिस्टेंट प्रोफेसर के पास पांच साल का टीचिंग एक्सपीरियंस और पीएचडी डिग्री होना अनिवार्य है. अगर असिस्टेंट प्रोफेसर के पास पीएचडी डिग्री नहीं है, तो संबंधित स्ट्रीम के डीन को एचओडी का प्रभार मिल जाएगा.

वर्तमान में चल रहे झारखंड विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर को ही विभागाध्यक्ष बनाया जा सकता है. वहीं, अगर संबंधित विभाग में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर नहीं हैं, तो ऐसी स्थिति में असिस्टेंट प्रोफेसर को एक्टिंग एचओडी बनाया जाता है. और यही वजह है कि राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में सुमार रांची विश्व विद्यालय और डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे विश्वविद्यालयों में वर्तमान में विभागों में एक्टिंग एचओडी कार्यरत हैं, जिसका सीधा असर उस विभाग के छात्रों के काम और पढ़ाई पर पड़ता है.

इस अधिनियम में असिस्टेंट प्रोफेसर को एचओडी बनाने के अलावा और भी कई बदलाव होंगे, जैसे झारखंड के स्टेट यूनिवर्सिटी में फिलहाल किसी भी विभाग के एचओडी का कार्यकाल दो साल का होता है. अब इसे बढ़ाकर तीन साल कर दिया जाएगा. जिस विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन की बात हम कर रहे हैं उस प्रस्ताव का ड्राफ्ट डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी ने तैयार कर लिया है. DSPMU यानी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ तपन कुमार शांडिल्य की अध्यक्षता में 13 सितंबर को सिंडिकेट की बैठक होगी, जिसमें इस नए अधिनियम को स्वीकृति दी जाएगी. फिर ड्राफ्ट पर राज्य कैबिनेट की मुहर लगेगी और बाद में राज्यपाल सह कुलाधिपति से सहमति ली जाएगी.

राज्यपाल से सहमति के बाद नए अधिनियम का गजट में प्रकाशन होगा और इसके साथ ही संशोधित विश्वविद्यालय अधिनियम लागू हो जाएगा. अब आपको हम कड़ी दर कड़ी बताते हैं कि नए अधिनियम के लागू होने के बाद किसी भी डिपार्टमेंट में विभागाध्यक्ष का चयन कैसे होगा. नए अधिनियम के लागू होने के बाद एचओडी की नियुक्ति के लिए सबसे पहले संबंधित विषय में वरीयता के अनुसार पहले प्रोफेसर को एचओडी के पद पर नियुक्त किया जाएगा. विभाग में प्रोफेसर के नहीं होने पर संबंधित विषय के एसोसिएट प्रोफेसर को एचओडी बनाया जाएगा.

वहीं, अगर संबंधित विषय में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर दोनों नहीं हैं तब असिस्टेंट प्रोफेसर को एचओडी के पद नियुक्त किया जा सकेगा. नए अधिनियम में यह भी प्रस्ताव रखा गया है कि अगर किसी भी विभाग के एचओडी को कार्यकाल पूरा होने से पहले यानी तीन साल से पहले हटाया जाता है तो इसके लिए राज्यपाल की अनुमति जरूरी होगी. अभी एचओडी का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद से हटा दिया जाता है और इसके लिए कुलपति को राज्यपाल से अनुमति लेना जरूरी नहीं है.

इसके अलावा डीएसपीएमयू ने विश्व विद्यालय शिक्षकों के लिए प्रमोशन सेलेक्शन कमेटी का भी प्रस्ताव बनाया है. इस कमेटी के चेयरमैन, यूनिव्सिटी के वीसी होंगे. वहीं अन्य सदस्यों में चांसलर द्वारा नामित प्रोफेसर रैंक का एक शिक्षक, उच्च शिक्षा विभाग द्वारा नामित प्रोफेसर रैंक के एक शिक्षक होंगे. इसके अलावा संबंधित विषय के तीन एक्सपर्ट प्रोफेसर रैंक के होंगे, जिनका चयन खुद वीसी करेंगे.

इसके अलावा असिस्टेंट प्रोफेसर यानी लेक्चरर के पद पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम अर्हता का रेगुलेशन ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया गया है. नए डॉफ्ट को DSPMU प्रशासन ने यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) और उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग की गाइडलाइन के अनुसार तैयार किया है. इस नियम के पास होते ही असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए न्यूनतम अर्हता यानी मिनिमम क्वालीफिकेशन, यूजीसी नेट होगी. अभी विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की पद पर नियुक्ति यूजीसी रेगुलेशन-2018 के तहत की जाती है. इस एजेंडे को भी 13 सितंबर को कुलपति डॉ. तपन कुमार शांडिल्य की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में स्वीकृति दी जाएगी.

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