जानें क्या है विश्व आदिवासी दिवस के पीछे का इतिहास

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आदिवासी समाज के उत्थान, उनकी संस्कृति, सम्मान और उनको प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाया जाता है. और झारखंड में तो विश्व आदिवासी दिवस की धूम अलग ही होती है. कल आदिवासी दिवस के मौके पर रांची के जेल रोड स्थित बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान में इसे वृहद पैमाने में और बड़ी धूमधाम से करने की तैयारी है. इस कार्यक्रम में राज्य के सीएम हेमंत सोरेन समेत कई मंत्री और विधायक शामिल होंगे. रांची में 9 और 10 अगस्त को कार्यक्रम होंगे.

इस बार विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राजधानी रांची में कई अलग अलग तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. रांची में पारंपरिक वेशभूषा में 32 जनजातीय वाद्ययंत्रों के साथ रीझ रंग रसिका रैली निकाली जाएगी. जिसमें मांदर की थाप पर थिरकते हुए लोग नजर आयेंगे. नौ अगस्त को दिन के 12 बजे रैली धुमकुड़िया भवन, करमटोली चौक से जेल रोड स्थित बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान के लिए प्रस्थान करेगी. रैली में झारखंड के 32 विभिन्न जनजातीय वाद्ययंत्रों का संगम होगा.

आदिवासी महोत्सव की तैयारी अब अंतिम चरण में है. इस महोत्सव में अरुणाचल प्रदेश, असम, आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, राजस्थान के जनजातीय समुदाय के मेहमान अपनी परंपरा और संस्कृति से रू-ब-रू करायेंगे. सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत नागपुरी, छऊ, डोमकच, पायका समेत अन्य नृत्य की प्रस्तुति होगी.

बता दें कि विश्व आदिवासी दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र हर साल एक थीम जारी करती है. इस वर्ष का थीम है: “Indigenous Youth as Agents of Change for Self-determination.” यानी आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के एजेंट के रूप में स्वदेशी युवा।”

विश्व आदिवासी दिवस के पीछे की इतिहास की बात करें तो रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमरीकी देशों में 12 अक्टूबर को हर साल कोलंबस दिवस मनाया जाता है. उनका मानना था कि कोलंबस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर जनसंहार हुआ था. जिसके बाद आदिवासियों ने मांग की कि कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाया जाए. जिसके बाद साल 1977 में जेनेवा में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ और वहीं से कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस की मांग तेज हुई. इस सम्मेलन के बाद आदिवासी समुदाय के लोगों ने मांग तेज की और अंतत: आदिवासी समुदाय ने साल 1989 से आदिवासी दिवस मनाना शुरू किया. हालांकि अभी तक इसे ऑफिशियल नहीं किया गया था. धीरे-धीरे इस मुहिम को जनसमर्थन मिलता गया और अतत: 12 अक्टूबर 1992 को अमरीकी देशों में कोलंबस दिवस के स्थान पर आदिवासी दिवस मनाने की प्रथा शुरू हो गई. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्यदल का गठन किया. इस कार्यदल की पहली बैठक 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में हुई. जिसके बाद ही 9 अगस्त की तारीख घोषित की गई.साल 1994 में पहली बार अमरीका में विश्व आदिवासी दिवस मनाया गया था.

वहीं रांची में होने वाले कार्यक्रम पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड आदिवासी महोत्सव- 2023 को एक अलग पहचान मिलेगी. इस बार इस महोत्सव का देश भर में प्रचार- प्रसार किया जा रहा है और खुशी की बात है कि देश- दुनिया से इस महोत्सव में शामिल होनेके लिए लोग आ रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी परंपरा, कला- संस्कृति, रहन- सहन, आदिवासी उत्पाद और गीत-संगीत -नृत्य को संरक्षित करने और आगे बढ़ाने की दिशा में सरकार लगातार प्रयास कर रही है. इस कड़ी में झारखंड आदिवासी महोत्सव का आयोजन मील का पत्थर साबित होगा

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