झारखंड

मंईयां सम्मान की कीमत चुकाएगा झारखंड का ‘विकास’, एक योजना की भेंट चढ़ गई विभागों की राशि

,

|

Share:


झारखंड के वित्तमंत्री राधाकृष्ण किशोर ने सोमवार को 1 लाख 45 हजार 400 करोड़ रुपये का बजट पेश किया.

हेमंत सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट का आकार उनके पहले कार्यकाल के आखिरी बजट से बड़ा है. हेमंत सरकार ने यह दावा किया है कि विकासोन्मुखी इस बजट में राज्य के प्रत्येक वर्ग का खयाल रखा गया है. वहीं, विपक्षी दल के पास इस दावे को झुठलाने के लिए अपने तर्क हैं.

वित्तमंत्री ने अपने बजटीय भाषण में ये भी जानकारी दी है कि किस विभाग के लिए कितनी राशि का प्रावधान किया गया है.

सबका ध्यान खींचा है मंईयां सम्मान योजना ने.

हेमंत सरकार की इस एक महात्वाकांक्षी योजना के लिए बजट में 13,363 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

ये राज्य के इतिहास में संभवत पहली बार होगा जबकि किसी एक योजना के लिए इतनी बड़ी रकम का प्रावधान किया गया है. वह भी तब, जबकि अपने बजटीय भाषण में वित्त मंत्री ने खुद ही स्वीकार किया है कि राज्य के पास जितना पैसा है और जो हिस्सा केंद्र सरकार से मिलता है, झारखंड के विकास के लिए वो पर्याप्त नहीं है.

गौर कीजिए कि जब हेमंत सरकार दोबारा सत्ता में आई और मंत्रियों का शपथ ग्रहण हुआ तो वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा था कि हमें राजस्व वसूली के नए-नए स्त्रोत तलाशने होंगे. इसमें खनिज संसाधनों पर मिलने वाली रॉयल्टी से लेकर पर्यटन और उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग से होने वाली राजस्व की वसूली तक शामिल है.

कोल रॉयल्टी के बकाया राशि पर हुई थी लंबी जिरह
आज ही बजटीय भाषण के ठीक पहले प्रश्नकाल के दौरान सदन में वरीय विधायक सरयू राय, पूर्व मंत्री सीपी सिंह और वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर के बीच केंद्र के पास बकाया कोल रॉयल्टी के 1.36 लाख करोड़ रुपये को लेकर लंबी जिरह हुई.

सत्तापक्ष का दावा है कि पिछले 5 वर्षों में 6 बार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार के विभिन्न अथॉरिटीज को बकाया राशि के भुगतान के लिए चिट्ठी लिखी है.

सरयू रॉय जानना चाहते थे कि आखिर हेमंत सरकार बकाया राशि पाने के लिए क्या वैधानिक उपाय कर रही है.

जवाब में जब वित्त मंत्री ने 1 मार्च 2025 को एक समिति का गठन किए जाने की जानकारी दी तो सीपी सिंह ने कहा कि यदि कमिटी अभी बनी है तो पिछले 5 साल में राजनीतिक बयानबाजी के अलावा हेमंत सरकार ने बकाया राशि हासिल करने की दिशा में क्या ठोस प्रयास किया है?

झारखंड में देशभर का 45 फीसदी खनिज संसाधन है.

हालांकि, इससे केवल रॉयल्टी ही मिलती है जोकि सरकार का तर्क है पिछले कई वर्षों से नहीं मिली.

पिछले साल सरकार ने राजस्व के रूप में 49,700 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन इसके मुकाबले जनवरी 2024 तक 30,474 करोड़ रुपये ही वसूल हो पाए थे.

सरकार हर साल राजकोषीय घाटे का आंकड़ा भी जारी करती है.

राजकोषीय घाटे का मतलब है कि जितना पैसा राजस्व के रूप में वसूला गया, विभिन्न कार्यों में सरकार ने उससे ज्यादा रकम खर्च की. निर्धारित राजस्व से जितनी ज्यादा रकम खर्च की गयी वही राजकोषीय घाटा है.

अब सवाल है कि मंईयां सम्मान योजना के लिए ये 13,363 करोड़ रुपये कहां से आएंगे.

मंईयां सम्मान योजना के औचित्य पर उठते सवाल
हमेशा से विभिन्न मंचों पर सवाल उठता रहा है कि मंईयां सम्मान योजना का औचित्य क्या है.

क्या महिलायें इन पैसों का इस्तेमाल स्वरोजगार के लिए करती है. सरकार राज्य की करीब 57 लाख महिलाओं को प्रतिमाह जो 2500 रुपये देती है, उसका इस्तेमाल स्वरोजगार के लिए किया गया, क्या इसे जानने का कोई मैकेनिज्म राज्य सरकार के पास है? इस योजना का आउटकम क्या है? सरकार, कैसे ये साबित कर पाएगी कि मंईयां सम्मान योजना को लेकर खर्च की गई बड़ी रकम से महिलाओं का आर्थिक, सामाजिक उत्थान हुआ है.

ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि रसोइया, सहिया और सेविकाओं को मिलने वाला वेतन, मंईयां सम्मान की राशि से कम है.

यदि आर्थिक और सामाजिक स्वाबलंबन ही लक्ष्य है तो फिर घर से बाहर निकलकर स्कूलों में नौनिहालों के लिए भोजन पकाने वाली रसोइया और घर-घर घूमकर टीकाकरण, मतदाता पुनरीक्षण और गर्भवती महिलाओं की देखभाल करने जैसे काम करने वाली सेविका-सहायिका का वेतन कम क्यों है?

ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि सुदूरवर्ती दुर्गम ग्रामीण इलाकों वाले झारखंड प्रदेश में ग्रामीण विकास विभाग के लिए केवल 900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

पंचायती राज व्यवस्था के सुदृढ़िकरण के लिए महज 2,144 करोड़ 78 लाख 14 हजार रुपये प्रस्तावित हैं.

विधानसभा चुनाव के समय से लेकर अब तक राज्यभर के बुजुर्ग, दिव्यांग और विधवा महिलाओं ने दावा किया है कि उनको महीनों पेंशन नहीं मिला. जिस सर्वजन पेंशन स्कीम के तहत बुजुर्गों, दिव्यांगों और विधवा महिलाओं को प्रतिमाह 1000 रुपये दिए जाते हैं, उसके लिए बजट में महज 3,850.66 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.

इसमें यह भी जोड़ लीजिए कि हेमंत सोरेन सरकार ने सर्वजन पेंशन स्कीम की राशि को 1000 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये करने का वादा किया था. राशि के प्रावधान से तो ऐसा ही लगता है कि वृद्धि नहीं होगी.

ग्रामीण विकास विभाग को केवल 900 करोड़ का आवंटन
ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत ही मनरेगा योजना का क्रियान्वयन किया जाता है.

ग्रामीण सड़कें, झारखंड की एक बड़ी आबादी की लाइफ लाइन हैं. ग्रामीण इलाकों में पक्की सड़क, पक्का मकान और पेयजल जैसी सुविधाओं को पहुंचाना काफी हद तक ग्रामीण विकास विभाग का काम है.

हम झारखंड में सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में खटिया पर मरीजों को ढोने की दर्जनों तस्वीरें देख चुके हैं. ऐसा इसलिए कि वहां सड़क नहीं है. तब मंईयां सम्मान के लिए 13,363 करोड़ रुपये के मुकाबले ग्रामीण विकास विभाग को महज 900 करोड़ रुपये का आवंटन कितना जायज है?

झारखंड में शिशु मृत्यु दर कम हुआ है. मातृ मृत्यु दर में सुधार आया है लेकिन अभी भी ये निर्धारित लक्ष्य से काफी कम है. सरकार मंइयां सम्मान का दावा करती है लेकिन गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के लिए महज 60 करोड़ रुपये प्रस्तावित हैं.

महिलाओं और बच्चों में कुपोषण झारखंड में गंभीर समस्या है.

कुपोषण के खिलाफ जंग में आंगनबाड़ी केंद्र ही फ्रंटलाइन योद्धा हैं लेकिन इनके लिए केवल 250.17 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. मंईयां सम्मान के लिए आंवटित राशि में यह कितना कम है, बताने की जरूरत नहीं है.

कृषि पशुपालन को केवल 4,000 करोड़ रुपये ही मिले
अपने बजटीय भाषण में वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि झारखंड कृषि प्रधान प्रदेश है. कृषि को रोजगारोन्मुखी बनाकर किसानों का पलायन रोका जा सकता है.

सिंचाई, बीज उत्पादन एवं वितरण, सब्जियों की खेती, कृषक प्रशिक्षण, दुग्ध उत्पादन और पशुपालन जैसे कार्यों में अलग-अलग राशि का प्रावधान किया गया है. यदि पूरे विभाग को आवंटित राशि को अलग-अलग मदों से जोड़कर देखें तो बमुश्किल 1000 करोड़ रुपये तक पहुंचता है.

झारखंड में कृषि मानसून का जुआ है. सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं हैं.

यहां प्रमुख रूप से धान की फसल ही उगाई जाती है. झारखंड पूरे 2 साल तक अनियमित मानसून की वजह से सूखाड़ की समस्या से जूझता रहा. जानकारों का मानना है कि इस बजट में कृषि को बढ़ावा देने के लिए वैसे प्रावधान नहीं किए गए हैं जिसे उल्लेखनीय कहा जा सके. जिससे भरोसा जगता हो.

प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में सुधार कैसे होगा
हां, प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए जरूर बजट में बड़ी राशि का प्रावधान किया गया है.

वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए 15 हजार 198 करोड़ 35 लाक 30 हजार रुपये का प्रावधान किया है. उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के लिए 2 हजार 409 करोड़ 20 लाख 96 हजार रुपये का प्रावधान किया गया है.

2 नई यूनिवर्सिटी, स्किल यूनिवर्सिटी और फिन-टेक यूनिवर्सिटी की स्थापना की जायेगी. जमशेदपुर, पलामू, रांची, धनबाद, हजारीबाग और देवघर में स्कूल ऑफ बिजनेस एंड मास कम्युनिकेशन की स्थापना की जायेगी.

रांची, धनबाद, दुमका और पलामू में 5 नए लॉ कॉलेज की स्थापना होगी. रांची, जमशेदपुर, गुमला, साहिबगंज और गिरिडीह में इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की जायेगी.

इन तमाम घोषणाओं और वादों के बावजूद अभी ये समझना है कि झारखंड में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए क्या ठोस प्रयास किए जाएंगे.

स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं.

सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में स्कूली शिक्षा की बेहतर निगरानी के लिए अच्छा सिस्टम नहीं है. सहायक अध्यापक की नियुक्ति पिछले 3 साल से अटकी है. कई स्कूल महज 1 शिक्षक के भरोसे हैं.

देखना होगा कि इस राशि का स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाता है.

राजस्व संग्रहण के नये स्त्रोत तलाश रही है हेमंत सोरेन सरकार
सरकार ने राजस्व संग्रहण के लिए नई व्यवस्था बनाने की बात कही है.

वित्त मंत्री ने दावा किया है कि जल जीवन मिशन के लिए राशि का प्रावधान झारखंड सरकार खुद कर लेगी. पर्यटन को उद्योग के रूप में विकसित करने के लिए कई ऐलान किए गये हैं. ॉ

राजस्व प्राप्ति के नये स्त्रोत तलाने के लिए कमिटी बनाने की बात भी कही गयी है. हमें विश्वास है कि सरकार के इरादे नेक हैं. उम्मीद है कि सरकार अपनी महात्वाकांक्षी मंईयां सम्मान योजना को फलीभूत करने के लिए बाकी कामों की तिलांजलि नहीं देगी.

हमें यकीन है कि राज्य वाकई प्रगति पथ पर आगे बढ़ेगा.

Tags:

Latest Updates