महिलाएं

इन राज्यों में महिलाओं ने पलट दी बाजी, लेकिन हिला दिया सरकार का बजट !

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2024 चुनावों का साल रहा. पहले लोकसभा चुनाव ,फिर कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और उपचुनाव. झारखंड और महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव चर्चों में रहा. चर्चा में रहने का कारण इन दोनों राज्य की महिला बनी. दोनों राज्यों में जिस भी पार्टी ने जीत हासिल की वहां की महिलाओं ने विजयी पार्टी की जीत में निर्णायक भूमिका निभाई. झारखंड में मंईयां सम्मान योजना ने हेमंत सोरेन को दुबारा मुख्यमंत्री बना दिया तो वहीं महाराष्ट्र की लाडकी बहिन योजना की भाजपा सरकार की वापसी करा दी.

DBT योजनाओं का असर

न केवल महाराष्ट्र और झारखंड बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी पिछले कुछ सालों में चुनाव हुए तो इस तरह के डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर यानी DBT योजनाओं ने सरकार बनाने में मुख्य भूमिका अदा की है. पिछले 2 दशकों पर नजर डालें तो एक बड़ी गेमचेंजर स्कीम के रूप में 2006 में मनरेगा योजना लागू की गई। मकसद था ग्रामीण इलाकों को बेरोजगारी के कुचक्र से निकालना। इस स्कीम ने 2009 के लोकसभा चुनाव में असर दिखाया। बाद में आधार लिंक्ड डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर से जुड़ी किसान सम्मान निधि सहित कई योजनाएं केंद्र और राज्यों के स्तर पर लागू की गईं, जिनका चुनावी असर दिखा.

इन राज्यों में पलटी बाजी

पिछले साल कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस घोषणापत्र में गृह ज्योति, गृह लक्ष्मी, अन्न भाग्य, शक्ति और युवानिधि नाम से महिलाओं और युवाओं पर केंद्रित 5 गारंटी योजनाओं का नारा दिया गया। कांग्रेस को इसका चुनावी फायदा मिला.वहीं मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भी जनवरी में लाडली बहना योजना का ऐलान कर दिया था। मार्च से हर गरीब परिवार की महिला के खाते में 1250 रुपये महीने भेजने का इंतजाम कर दिया गया। साल के अंत में हुए चुनावों में चौहान का यह दांव अमोघ अस्त्र साबित हुआ. 2023 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कमोबेश सभी एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना जताई गई थी। लेकिन नतीजे आए तो बीजेपी ने बाजी पलट दी। दरअसल, BJP ने चुनाव से पहले महिलाओं के खाते में सीधे 1000 रुपए प्रतिमाह भेजने का वादा किया। इसके लिए फॉर्म भी भरवाने शुरू कर दिए।छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल जब तक इस वादे की गंभीरता को समझ पाते देर हो चुकी थी.

इन पार्टियों को लगा झटका

इसी तरह झारखंड में बीजेपी ने मंइयां सम्मान योजना की तर्ज पर महिलाओं को हर महीने 2100 रुपये की स्कीम का वादा किया। वहीं, महाराष्ट्र में MVA ने गरीब महिलाओं को 2000 रुपये महीने देने का वादा किया। लेकिन दोनों ही जगहों पर वोटरों ने विपक्षी वादों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। इसका मतलब यह है कि लाभार्थी वोटर वादों के बजाए जो कुछ मिल रहा है, उस पर ज्यादा भरोसा कर रहा है।

इम मामले पर विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी बड़ी वजह यह है कि दमदार GDP ग्रोथ के बीच आबादी का एक बड़ा हिस्सा मुश्किलों में घिरा हुआ है और किसी भी राहत को वह नजरंदाज करने की हालत में नहीं है।

अर्थशास्त्री बताते हैं कि छत्तीसगढ़ हो या मध्य प्रदेश इन राज्यों में महिलाओं की एक बड़ी संख्या ऐसी है, जिसके पास पैसे कमाने का कोई जरिया नहीं है। परिवार में उनके साथ कभी भी अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था, लेकिन ऐसी योजनाओं से इन महिलाओं को कुछ पैसे मिल रहे हैं और उनके परिवारों में उनकी स्थिति सुधर रही है। यही वजह है कि महिलाएं उनके खाते में सीधे पैसा भेजने वाले राजनीतिक दलों को वोट करने के लिए घर से निकलकर पोलिंग बूथ तक जा रही हैं।

राज्यों की आर्थिक स्थिति डगमगाई

रिपोर्ट्स की मानें तो बजट प्लानिंग और आर्थिक नीतियों पर भारी पड़ती राजनीति राज्यों को कंगाली की ओर ले जा रही है। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स राजस्व बढ़ाने के सीमित उपायों के बीच डायरेक्ट कैश ट्रांसफर योजनाओं के चलते राज्य सरकारों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है.

राज्यों के खजाने पर इस समय कितना तनाव है, इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि आज के समय में राज्य सरकारें अपनी राजस्व आय का 84 फीसदी हिस्सा सैलरी, पेंशन और ब्याज चुकाने पर खर्च कर रही हैं, जबकि विकास कार्यों पर खर्च के लिए उनके पास सिर्फ 16% हिस्सा बच रहा है। इसमें भी बीते वित्त वर्ष 11 राज्यों ने राजस्व घाटे का बजट पेश किया, यानी उन्हें सैलरी, पेंशन और ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज का सहारा लेना पड़ा।

अब राज्यों की सरकार सभी योजनाओं के साथ राज्य का विकास कैसे कर पाती है ये उनके लिए बड़ी चुनौती है.

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