मनोज तिवारी या प्रवेश वर्मा कौन होगा दिल्ली का अगला सीएम?

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दिल्ली चुनाव में पूर्वांचल का दबदबा रहा और भारतीय जनता पार्टी ने एक आसान मैजोरिटी हासिल कर ली है। दिल्ली में बहुमत का आंकड़ा 36 है और भाजपा 45 से अधिक सीटें जीतती हुई दिख रही है। जाहिर है, 27 सालों बाद दिल्ली में भाजपा की वापसी हो रही है और एक बार फिर दिल्ली में भाजपा की सरकार बनने जा रही है।

देखिए चुनाव की कई तरीकों से समीक्षा या विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन जो सवाल सभी के दिलों में कौंध रहा है, वो है कि दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन होगा? क्या वो पूर्वांचल के क्षेत्र से होगा, क्या वो बिहार से होगा और क्या वे मनोज तिवारी हो सकते हैं। क्यों नहीं, मनोज तिवारी दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा दिल्ली में चुनाव लड़ चुकी है, तो फिर मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम पर मुहर क्यों नहीं लग सकती?क्या कोई पेंच हैं, किसी तरह की अटकल है? दिल्ली में पूर्वांचल कितना प्रभावी है और मनोज तिवारी के मुख्यमंत्री बनने के कयासों में कितना दम है? इन सभी सवालों का हम आपको बहुत की सटीक और तर्कसंगत जवाब देने जा रहे हैं।

तो फिर चलिए शुरू करते हैं आज का विश्लेषण और बताते हैं आपको कि मनोज तिवारी के दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने की चर्चाओं में कितना है दम और क्या है सच्चाई।

देखिए, सीधे शब्दों में बात करते हैं, दिल्ली मुख्यमंत्री की रेस में भाजपा की तरफ से कई नाम हैं, उनमें से दो-तीन नाम प्रमुख हैं। पहला नाम, मनोज तिवारी। मनोज तिवारी भाजपा के प्रमुख नेताओं में से एक हैं, जो उत्तर पूर्वी दिल्ली से सांसद हैं और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे विशेष रूप से पूर्वांचल के मतदाताओं के बीच लोकप्रिय है। कितनी संख्या है पूर्वांचलियों की दिल्ली में? 30 प्रतिशत। आप भी जानते हैं कि यह आबादी कितनी बड़ी है। तो अगर भाजपा पूर्वांचलियों को खुश करना चाहेगी, तो फिर मनोज तिवारी का पलड़ा भारी है और लगभग तय है के वे मुख्यमंत्री बनेंगे।

दूसरा और उतनी ही प्रभावी नाम है प्रवेश वर्मा का। प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से सांसद हैं और इस चुनाव में उन्होंने अरविंद केजरीवाल को 3000 वोटों से हरा दिया है। पहली बात तो ये है कि वे पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र हैं, इस लिहाज से उनकी दावेदारी मजबूत हो जाती है। प्रवेश वर्मा दिल्ली के हैं, अगर भाजपा दिल्ली से मुख्यमंत्री चाहती है, तो वे प्रवेश वर्मा के साथ जाएंगे।

प्रवेश वर्मा जाट समाज से आते हैं और बाहरी दिल्ली में जाट वोट बड़ी संख्या में है। जाट समीकरण के चलते ही उनके पिता साहिब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जाट समीकरण के लिहाज से प्रवेश वर्मा फिट बैठते हैं, लेकिन परिवारवाद उनकी राह में रोड़ा बन सकता है। बीजेपी ने किसी भी मुख्यमंत्री के बेटे को अभी तक सीएम नहीं बनाया है। देखना होगा कि भाजपा क्या फैसला करती है।

नाम और भी हैं, मुख्यमंत्री पद की रेस में भी हैं। मुख्यमंत्री न भी बने, तो भी बड़ा पद मिल सकता है।
जैसे विजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सचदेवा, दुष्यंत गौतम, मोहन सिंह बिष्ट ये सभी रेस में हैं। इनमें से दुष्यंत कुमार गौतम का नाम भी काफी चर्चा में है। बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और दिल्ली के करोल बाग विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं। वे बीजेपी के दलित चेहरा माने जाते हैं और पार्टी के तमाम अहम पदों पर रह चुके हैं। दुष्यंत अमित शाह और पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं। अगर दलित विकल्पों की तरफ भाजपा जाती है, तो दुष्यंत का नाम सबसे पहले आएगा।

देखिए हम किसी तरह का दावा नहीं कर रहे। लेकिन अब यह देखें कि दिल्ली चुनाव में इस बार सबसे प्रभावी मुद्दे क्या रहे? वे सभी मुद्दे पूर्वांचलियों से जुड़े रहे। पूर्वांचल पूरे चुनाव के दौरान चर्चाओं और विवादों में रहा। 30 प्रतिशत की बड़ी आबादी भाजपा की जीत में निर्णायक रही, इस बात में कोई शक नहीं है।

दूसरी और सबसे अहम बात है कि दिल्ली के बाद अब बिहार में चुनाव है। लगभग पांच महीने बाद घोषणा हो सकती है। ऐसे में दिल्ली चुनाव से भाजपा बिहार को क्या संदेश देना चाहेगी, यह बड़ा सवाल है। दिल्ली के तीर से भाजपा अगर बिहार में निशाना साधती है, तो इसका मतलब है कि उन्हें दिल्ली में पूर्वांचल को जगह देनी होगी। इसके दो तरीके हैं, या तो वे मुख्यमंत्री पद दें या फिर बड़े पोर्टफोलियो का मंत्रीपद।

अगर मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जाती है, तो बिहार की जनता में साफ मैसेज जाएगा कि भाजपा बिहार को लेकर क्या सोच रही है। हाल में बजट में इसकी झांकी देखने को मिली। और भाजपा ऐसे एक्सपेरिमेंट करने से नहीं चूकती है, आप भी जानते हैं। यह भी सत है कि दिल्ली में भाजपा के निर्णय का सीधा असर बिहार चुनाव पर पड़ेगा। भाजपा के पास पर्याप्त समय है, वो सोच समझकर निर्णय लेगी।

मनोज तिवारी ने खुद भी मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी इच्छा जताई है। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि चेहरा तो हम हैं, वो भी तीसरी बार। दिल्ली में अगर एक जगह से तीसरी बार किसी को टिकट दिया गया तो वो पूर्वांचली ही है। उन्होंने आगे कहा था कि मुख्यमंत्री जितनी सुविधाएं देता है प्रदेश को वो सुविधाएं देने की मैं गारंटी देता हूं। मुख्यमंत्री BJP का ही होगा। हमारा उद्देश्य है कि हम दिल्ली के प्रदूषण को खत्म करें। गरीबों का राशन कार्ड बने। बुजुर्गों की पेंशन शुरू हो जाए, सबको साफ पानी मिले। बच्चों को फेल न होना पड़े और अवैध घुसपैठियों को सारा सिस्टम बंद किया जाए।

मनोज तिवारी खुले तौर पर खुद के मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार बता चुके हैं। जबकि ऐसी कोई बात प्रवेश वर्मा ने नहीं की है, कम से कम इतने खुले तौर पर तो नहीं ही की है। लेकिन प्रवेश वर्मा जिस सीट से जीते हैं, वह सीट अरविंद केजरीवाल की सीट रही है। पूर्व मुख्यमंत्रियों की सीट रही है। ट्रेंड कहता है कि उसी सीट से मुख्यमंत्री जीत कर आते रहे हैं। सबसे अहम बात, कि प्रवेश वर्मा चुनाव लड़े हैं, जबकि मनोज तिवारी को इस चुनाव से दूर रखा गया था, वे सांसद हैं। क्या भाजपा ने चुनाव से पहले ही यह तय कर लिया था कि मुख्यमंत्री किसे बनाना है, अगर हां, तो इसकी घोषणा क्यों नहीं की?

हम फिर यह दोहराते हैं, कि कौन मुख्यमंत्री बनेगा, यह अभी कहना मुश्किल है। हम किसी तरह का दावा, घोषणा या भविष्यवाणी नहीं कर रहे। सिर्फ आपको तमाम कयासों के बारे में तर्क और विश्लेषण के साथ बता रहे हैं। तो, मनोज तिवारी या प्रवेश वर्मा के बीच चुनाव का निर्णय हम भाजपा पर छोड़ते हैं। उनकी सरकार में कौन मुख्यमंत्री होगा, यह वे ही तय करेंगे। हमारा काम है आपको बताना कि बिहार कहां, कब और क्यों चर्चा में है।

दिल्ली चुनाव में पूर्वांचलियों के प्रभाव पर हमने एक और वीडियो बनाया है, आप प्लीज उसे भी देखें। और समझें कि आखिर कैसे दिल्ली में पूर्वांचल की सबसे अहम भूमिका रही।
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