TFP/DESK : झारखंड के अलग- अलग जिलों में आज भी ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोग पानी की किल्लत झेल रहे हैं. यह 21वीं सदी का भारत है. झारखंड 24 साल का हो गया लेकिन लोगों को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है. अभी गर्मियां आनी बाकी है. सर्दियां हो या गर्मियां, इन गांवों में पानी की किल्लत हमेशा रहती है. लोग कुआं, चुआं और दाड़़ी के पानी से प्यास बुझाते हैं. इतना ही नहीं! कई गांव वैसे भी हैं जहां लोग झरने का पानी पीकर गुजारा करते हैं.
धरातल पर यही हालात हैं तो फिर सरकारी दावों की हकीकत क्या है. सरकार तो छाती ठोंककर कहती है कि नल जल योजना के तहत हमने सुदूरवर्ती इलाकों में पाइपलाइन के माध्यम से पीने का पानी पहुंचाया है. हालांकि, सरकारी दावों से इतर ये नये आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं. कहानी जो सरकारी दावों की पोल खोलती है और हमें रूबरू कराती है एक स्याह सच्चाई से.
देश के 34 राज्यों में 32 स्थान में झारखंड !
केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गये जीवन मिशन की स्थिति झारखंड में बेहद ही खराब है. एक रिपोर्ट के मुताबिक जल जीवन मिशन के तहत हर घर जल योजना में झारखंड देश के 34 राज्यों में 32वें स्थान पर है. माने राष्ट्रीय औसत से झारखंड काफी पीछे है. आज हम इसी मुद्दे पर विस्तार में बात करेंगे. जानेंगे कि जल जीवन मिशन योजना झारखंड में इतनी क्यों पिछड़ गई है. जानेंगे कि अभी तक कितने घरों को इस योजना का लाभ मिला है.
हिंदी दैनिक अखबार हिन्दुस्तान में छपी खबर के मुताबिक झारखंड में जल जीवन मिशन योजना के लिए बीते 6 साल में 11 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया गया है. इतना पैसा खर्च करने के बावजूद धरातल पर महज 54.61 फीसदी ही काम हो पाया है.
6 साल में करोडों रूपए हुए खर्च !
बता दें कि केंद्र सरकार के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक घर में नल से पर्याप्त एवं नियमित रूप से शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए महात्वाकांक्षी जल जीवन मिशन की शुरुआत की गयी थी. इस योजना के तहत ग्रामीण तथा शहरी इलाकों में प्रत्येक घर तक पाइपलाइन के माध्यम से पीने योग्य पानी पहुंचाना था.
जल जीवन मिशन के तहत झारखंड सहित अन्य राज्यों में हर घर नल जल स्कीम शुरू हुई थी. हालांकि, यह दुर्भाग्य की बात है कि झारखंड में योजना की हालत काफी लचर है. 6 साल में 11 हजार करोड़ रुपये फूंकने के बाद भी आधी आबादी शुद्ध पेयजल से वंचित है.
सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती
गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 से आज तक योजना को धरातल में उतारने में 11,835 करोड़ रूपए खर्च हो चुके है. बावजूद राज्य सरकार अब तक शुद्ध पेयजल से वंचित 54.61 % परिवारों तक ही पहुंच सकी है. राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में देखें तो योजना के मानकों के अंतर्गत झारखंड देश के 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 32वें स्थान पर हैं.
पांच पड़ोसी राज्यों में केवल पश्चिम बंगाल ही झारखंड से पीछे है. योजना की लचर स्थिति को देखते हुये अब भी समय पर सभी घरों तक पेयजल पहुंचा पाना राज्य के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के लिए बड़ी चुनौती है.
मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने क्या कहा ?
बता दें कि विभाग के नए मंत्री योंग्रेद प्रसाद ने भी योजना को प्राथमिकता में रखा है. उन्होंने कहा है कि योजना की प्रगति को लेकर जल्द ही एक उच्च स्तरीय बैठक की जाएगी. योजना में जो भी तकनीकी खामियां हैं चाहें वह कर्मियों की ओर से हो या पदाधिकारी की ओर से. निश्चित तौर पर उसे दूर करेंगे.
इस योजना को झारखंड के 29,398 गांव तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में 4,442 गांवों में ही नल कनेक्शन का 100 फीसदी कवरेज हो पाया है. लेकिन इसमें से 2,167 गांव माने 48.78 फिसदी ही अब तक सर्टिफाइड है.
केंद्र सरकार के आकंड़े क्या कहते हैं ?
वहीं केंद्र सरकार के जेजेएम डैशबोर्ड में जारी आकड़ें बताते हैं कि झारखंड के 62.54 लाख परिवार में से अब तक 34.15 लाख परिवारों तक ही नल जल की सुविधा उपल्बध कराई जा सकी है. जो 54.61 फीसदी है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर जल जीवन मिशन की उपलब्धि 79.28 है.
15 अगस्त 2019 को योजना की हुई थी शुरूआत
यह योजना 15 अगस्त 2019 को देशभर में शुरू हुई थी. तब राज्य के 3.45 लाख ग्रामीण घरों में नल से जल की सुविधा थी. पिछले पांच सालों में 30.71 लाख माने 52 फीसदी घरों को इस योजना से जोड़ा गया. अब देखना होगा कि गर्मी आने से पहले सरकार इस योजना को लेकर क्या कुछ तैयारी करते हैं जिससे कि ग्रामिण इलाकों में पानी की किल्लत की परेशानी कम हो.