TFP/BIHAR : पटना के गांधी मैदान से प्रशांत किशोर को डिटेन किये जाने से क्या मायने हैं? क्या सरकार उनके अनशन से घबरा गई?
क्या सरकार नहीं चाहती थी कि इस आंदोलन का माइलेज पीके को मिले ? क्या नीतीश ने उन्हें डिटेन कर एक बड़ी गलती कर दी है? और अबप्रशांत किशोर में जमानत की शर्त क्यों ठुकराई, उन्होंने अनशन नहीं करने की बात क्यों नहीं मानी ? पीके के इस कदम का क्या अर्थ है?
PK ने शर्त पर बॉन्ड भरने से किया मना
पीके को सिविल कोर्ट से 25 हजार के बॉन्ड के साथ जमानत मिल रही थी, लेकिन शर्त थी कि वे ऐसे किसी भी अशनस पर नहीं बैठेंगे और आंदोलन नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने इस शर्त पर बॉन्ड भरने से मना कर दिया। संदेश साफ है कि वे किसी भी सूरत में आंदोलन से दूर नहीं होंगे।
अब किस ओर जाएगी पीके की राजनीति ?
यहां से किस तरफ जाएगी पीके की राजनीति ? हमने आपको इससे पहले बताया था कि प्रशांत किशोर इस आंदोलन के माध्यम से अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। इसलिए वे आंदोलन के बीच में आए और अनशन पर बैठे।
लेकिन आंदोलन बेनतीजा रही और अब उन्हें डिटेन कर लिया गया है। सवाल है कि जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पीके आए थे, क्या वो पूरा हुआ? क्या पीके स्थापित हो सके? और अब डिटेंशन के बाद पीके क्या करेंगे?
आज के इस आर्टिकल में इन्हीं सवालों पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे और बताएंगे कि आखिर इस पूरे अनशन का हासिल पीके के लिहाज से क्या रहा? और नीतीश कुमार को उन्हें डिटेन करने का निर्णय क्यों लेना पड़ा।
आखिर PK को डिटेन क्यों किया गया ?
पहली बात, प्रशांत किशोर का आंदोलन शांति प्रिय था, किसी तरह का हंगामा या तोड़-फोड़, हिंसा, आगजनी जैसी कोई बात नहीं थी, किसी सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान नहीं पहुंचाया जा रहा था। गांधी की प्रतिमा के सामने गांधी के ही तरीके से वे सत्याग्रह कर रहे थे।
लेकिन फिर भी उन्हें डिटेन किया गया। क्यों? क्योंकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात को समझ रहे थे कि पीके जितनी देर बैठेंगे, छात्रों का जुड़ाव उनसे उतना ही बढ़ेगा। 26 जनवरी को गांधी मैदान में बड़े आंदोलन की चेतावनी पीके पहले ही दे चुके थे। और जिस तरह यह मामला बढ़ रहा था, 26 तक पूरा माहौल बदलने की उम्मीद थी।
इसी से बचने के लिए और पीके के रेलेवैंसी को खत्म करने के लिए सरकार के पास एक ही उपाय था – आंदोलन को खत्म करना। प्रशांत किशोर को पुलिस ने अकारण ही डिटेन किया और गांधी मैदान का खाली करा लिया गया। लेकिन क्या आंदोलन खत्म हो गया? नहीं।
अब जेल जाने को भी है तैयार !
जहां तक मेरी समझ कहती है। प्रशांत किशोर को डिटेन करने से उन्हें फायदा ही हुआ है। छात्रों की संवेदना उनके लिए और बढ़ गई है, उनकी स्वीकार्यता में इजाफा ही हुआ है। अब संदेश है कि छात्रों के हित के लिए पीके पहले आमरण अनशन पर बैठे और अब जेल जाने को भी तैयार हैं।
जहां से खड़े होकर मैं देख पा रहा हूं, प्रशांत किशोर जैसा चाहते थे, वैसा ही हुआ है। डिटेन किये जाने से उनकी लोकप्रियता और बढ़ी है। जैसे ही पीके छात्रों के बीच आते हैं, मामला और भी बढ़ेगा औऱ आंदोलन वृहद हो सकता है।
दोस्तों, साथियों। बिहार की धरती पर जेपी के आंदोलन की शुरुआत भी छात्र आंदोलन से ही हुई थी। मैं पीके की तुलना जेपी से नहीं कर रहा, मैं सिर्फ यह कहना चाह रहा हूं कि इस आंदोलन के बड़े होने की संभावनाएं मुझे दिख रही हैं। यह यहां खत्म नहीं होने वाला है।
सवाल है कि पीके अब क्या करेंगे?
मेरी राजनीतिक समझ कहती है कि वे छात्रों के मुद्दे को और भी जोर-शोर के उठाएंगे और इस आंदोलन के ज्वार को कम नहीं होने देंगे। जबतक वे पुलिस की गिरफ्त में हैं, उनकी पार्टी के बाकी नेता, छात्र और अन्य लोग विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे और उनके बाहर आते ही आंदोलन नए सिरे से खड़ा होगा।
इसके दो कारण हैं, पहला कि पीके को एक अच्छा और बड़ा मौका मिल गया है, जहां से वे खुद को आम लोगों को जोड़ सकें। और दूसरा कि पीके के पास कोई और ऐसा मुद्दा ही नहीं है, जिसके दम पर वे आगे अपनी राजनीति कर सकें।
इसलिए उनके लिए छात्रों के साथ चलने की मजबूरी है, जिसे वे अवसर में बदलना चाह रहे हैं। बिहार में छात्रों का इतिहास रहा है कि वे सरकार बनाने या गिराने में हमेशा भागीदार रहे हैं। और ये बात बिहार के सभी नेता जानते हैं।
इसलिए प्रशांत किशोर छात्रों के मुद्दे को फिलहाल तो नहीं छोड़ने वाले हैं, और ना ही वे आंदोलन की राह से खुद को हटाएंगे। बस इंतजार है बिहार में इसी आंदोलन के दूसरे फेज का, जो ज्यादा स्ट्रेटजिक और ज्यादा ऑबजेक्टिफाइड होगा।
ऐसा करते हुए मुझे इंडिया टुडे में छपा पत्रकार पुष्यमित्र का वह कॉलम याद आ रहा है, जिसमें वे बता रहे हैं कि कैसे आंदोलनों का विरोध करने वाले पीके खुद आंदोलन की शरण में बैठे हैं। चलिए कम से कम पीके को यह तो समझ आया कि यह देश आंदोलनों से बना है, आंदोलनों से संचालित हो रहा है और आगे भी इस
देश की दिशा और दशा आंदोलनों से ही तय होंगे। इसी बिहार की धरती पर जन्में राम मनोहर लोहिया कह चुके हैं कि जिस दिन सड़कें खाली हो जाएंगे, सदन आवारा हो जाएगा।
BPSC मामले में कल को होगी सुनवाई
बहरहाल, बीपीएससी में कथित धांधली के मामले में कल यानी 7 जनवरी को सुनवाई हो सकती है, इधर छात्रों पर लाठी चार्ज और बल प्रयोग को लेकर प्रशांत किशोर ने पटना हाईकोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया है। इसपर भी जल्द सुनवाई होने की उम्मीद है।
फैसला आने के बाद ही बीपीएससी के मामले पर साफ तौर से कुछ कहा जा सकेगा, लेकिन यह बात तो तय है कि इस आंदोलन से पीके का राजनीतिक जमीन हासिल होती हुई दिख रही है। य़हां से आगे का रास्ता उनके लिए आसान हो जाएगा।
मैं आपको आंकड़ों के आधार पर लेकर चलता हूं। बिहार की आबादी 13 करोड़ से अधिक है। और ताज्जुब की बात है कि इस आबादी का 58 प्रतिशत हिस्सा 25 साल से कम उम्र का है। इतना पूरे देश में कहीं नहीं है। बिहार इस देश का सबसे यंग राज्य है। यहां युवाओं का अनुपात सबसे अधिक है।
ये युवा कौन हैं? अधिकतर लोग छात्र हैं या रोजगार की तलाश में हैं। अब आप सोंचिए कि जिस आंदोलन की शुरुआत अभी हुई है, अगर ये बड़ा होता है, तो इससे जुड़ने वाले लोग कौन होंगे और कितने होंगे? साथ ही अगर ये संख्या वोट में तवब्दील होती है, तो स्थिति क्या होगी?
मैं जानता हूं कि इन्हें वोट में तब्दील करना बहुत टेढ़ी खीर है, लेकिन पीके तो यही चाह रहे हैं। उनके पास आइडिया है, विजन है, स्ट्रैटजी है और रिसोर्स है। अगर इनमें से 3-4 प्रतिशत युवाओं के भी वे अपने पाले में करने में कामयाब हो जाते हैं, तो आने वाले चुनाव की तस्वीर बदल जाएगी।
पीके लंबी छलांग की कोशिश कर रहे हैं। कितना सफल होंगे यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना जरूर है कि जो रास्ता उन्होंने चुना है, वो गांधी का रास्ता है, वो जेपी का रास्ता है और वो रास्ता गलत नहीं है।
विवादो में PK की वैनिटी वैन
रहा सवाल वैनिटी वैन का, और कुछ विवादों का, तो मेरी समझ कहती है कि ये चीजे बाद में लोग भूल जाते हैं और इसका बहुत बड़ा इंपैक्ट नहीं रहने वाला है। अभी ही देखिए उनके डिटेंशन के बाद कंबल और वैनिटी का मुद्दा गौण हो गया।