ITI के उपकरण सप्लाई में विशाल चौधरी ने की बड़ी गड़बड़ी, राजीव अरुण एक्का को मिला था 50% मुनाफा का हिस्सा

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कुछ महीनों पहले भाजपा ने एक वीडियो जारी किया था. उस वीडियो में आईएएस आधिकारी और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का कारोबारी विशाल चौधरी के दफ्तर में बैठ कर कुछ फाइलें निपटाते दिख रहे थे. भाजपा का ये आरोप था कि इस वीडियो में ये साफ देखा जा रहा है कि विशाल के दफ्तर में बैठ कर राजीव अरुण एक्का सरकारी फाइल निपटा रहे थे.

इसके बाद राजीव अरुण एक्का को मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के पद से हटा कर पंचायती राज विभाग का प्रधान सचिव बना दिया गया था. लेकिन तब तक ईडी ने इस मामले में संज्ञान ले लिया था. इन सब के बीच एक बड़ी खबर सामने आ रही है. दरअसल राजीव अरुण एक्का पर कमिशन लेने का आरोप सामने आ रहा है.

पूरा मामला विस्तार से समझाते हैं?

दरअसल, राजीव अरुण एक्का के करीबी विशाल चौधरी को सरकार के तरफ से टेंडर मिला था. जिसमें ITI यानी की ‘इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट’ में इस्तेमाल होने वाली मशीनों और उपकरणों की सप्लाई करने वाले थे. उन्होंने किया भी लेकिन इसी में गड़बड़ी है. क्योंकि जो उपकरण टेंडर के माध्यम से आपुर्ति की गई, उस टेंडर में गड़बड़ी है. पहले टेंडर की गडबड़ी पर आते हैं उसके बाद कमिशन का खेल के बारे में बताएंगे.

दरअसल, हुआ ये कि विशाल चौधरी को ‘इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट’ में माल सप्लाई करने का टेंडर तो मिल गया. लेकिन उपकरणों और मशीनों के लिए ‘जेम पोर्टल’ पर जो रेट कोट किया था, उससे कई गुना ज्यादा कीमत पर सरकार को बेचा गया. उदाहरण के लिए जो स्क्रू ड्राइवर बाजार में 57 रुपए में मिल जाता है. उसे विशाल चौधरी ने सरकार को 348 रुपए में बेचा.

इस टेंडर को ऐसी कंपनियों ने भी भरा था जिन्होंने वही स्क्रू ड्राइवर को 18 रुपए और एक दूसरी कंपनी ने 20 रुपए कोट किया था. इसके बावजूद विशाल चौधरी को टेंडर दिया गया. अब जो डेटा हम आपको बताने वाले हैं ये ईडी ने विशाल चौधरी के कंप्यूटर से बरामद की है. इस डाटा में ये लिखा हुआ है कि

  कौन  सा माल का रेट कितना है और सरकार को कितने में बेचा गया.

• सबसे पहले 7 सेगमेंट डीपीएम ट्रेनर ये 2000 रुपए में आता है जिसे सरकार को 7000 में बेचा गया.

  • इसके बाद 57 रुपए का स्क्रू ड्राइवर 15 एमएस 348 रुपए में सरकार को बेचा गया.
    • 247.50 का स्क्रू ड्राइवर 100 एमएस 800 रुपए में दिया गया
    • 800 रुपए का एसी एमआइ आमीटर एनालॉग पोर्टेबल 0-5ए को 5,848 रुपए में दिया गया
    • कंप्यूटराइज्ड ह्वील बैलेंसर जिसकी बाजार में किमत 60,000 रुपए है उसे सरकार को 2 लाख 49 हजार में बेचा गया.
    • 250 रुपए आउटसाइड माइक्रोमीटर 25-50 को 2,405 रुपए में दिया गया है.
    • ऑयल टेस्टिंग किट जिसके किमत 5,500 रुपए में मिलता है उसे 27 हजार 720 रुपए में दिया गया.
    • 1400 के डायल वर्नियर कैलिपर 300 एमएस को 10,840
    • 1200 के डायल वर्नियर 0-200 एमएम को 4,670 रुपए में दिया गया
    • 700 रुपए के थ्री फेज एनर्जी मीटर 25A को 3,117.50 में सरकार को बेचा गया.
    • डिजिटल आइसी ट्रेनर किट जिसकी किमत महज2500 रुपए है उसे 8,500 में दिया गया.
    • 19,500 उस लीनियर आइसी ट्रेनर के लिए गए जिसकी बाजार में किमत मात्र 1500 रुपए है
    • 100 रुपए के फाइल हाफ राउंड सेकंड कट 15 सीएम को 499.50 में दिया गया.

जाहिर सी बात है ऐसा करने के लिए विशाल चौधरी को सरकारी अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त होगा. ऐसा करने के लिए विशाल ने सरकारी अधिकारियों की मदद भी ली है. विशाल चौधरी के कंप्यूटर से आपूर्ति का ब्योरा मिलने के बाद ईडी ने श्रम निदेशालय के निदेशक को पत्र लिखा और टेंडर, एकरारनामा, एमओयू व सामग्री की सूची सहित अन्य जानकारियां मांगी.

निदेशालय ने अगस्त 2023 को ईडी को सारी जानकारी उपलब्ध करा दी है. ईडी ने जांच में पाया कि विशाल ने ‘इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट’ के लिए आपूर्ति के लिए पहले दिल्ली की दो कंपनियों- आईटीआई पावर टेक और एजी इंटरप्राइजेज से मशीनों और उपकरणों के मूल्य की जानकारी मांगी थी. दोनों कंपनी से जब संबंधित मशीनों और उपकरणों के दाम की जानकारी मिल गई, तब विशाल नें अपने कंप्यूटर में एक एक्सेल शीट बनाया जिसमें पहले कंपनियों से मिले रेट को लिखा उसके बाद सरकार को जिस रेट में बेचा जाना है उस रेट को लिखा था.

एक बात जो और सामने आई है.
ईडी ने इंडस्टियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के लिए आपूर्ति को लेकर विभिन्न कंपनियों द्वारा ‘जेम पोर्टल’ पर कोट किए गए रेट की भी जांच की. जेम पोर्टल वो जगह है जहां सभी कंपनी अपना रेट बताते है कि कोई भी प्रोडक्ट वो कितने पैसे में दे पाएगी. इसमें पाया गया कि विशाल नें भी बाकी कंपनियों के सामान ही रेट दिया था. लेकिन बाद में गड़बड़ी कर के अधिकारियों के मदद से उपकरणों को अधिक दाम में सरकार को बेचा गया.

अब बताते हैं कि इसमें राजीव अरुण एक्का की क्या भुमिका रही. दरअसल इस पूरे प्रकरण में विशाल ने आइएएस अधिकारी राजीव अरुण एक्का को भी हिस्सा दिया. इस पूरे घोटाले में जो फायदा विशाल को हुआ उसका 50 % हिस्सा राजीव अरुण एक्का को दिया गया. विशाल ने अपने कर्मचारियों की मदद से मुनाफे की रकम का 50 प्रतिशत हिस्सा एक्का के पारिवारिक सदस्यों के बैंक खातों में जमा कराया. इस पूरे मामले में एक बात तो साफ हो गई की सरकारी अधिकारी के सहयोग से सरकार को चूना लगा कर कमिशन का खेल झारखंड में धड़ल्ले से चल रहा है. ऐसा ही मामला बिरेंद्र राम का भी था. जिसे वे टेंडर देते थे उससे वो मोटी कमिशन लेते थे. देखना होगा ईडी इस मामले में आगे क्या कार्रवाई करती है.

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