केंद्रीय बजट 2025 पूरी तरह चुनावी बजट साबित हुआ – मंत्री दीपिका पांडेय सिंह

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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज बजट पेश किया. बजट पेश होने के निर्मला सीतारमण को बाद पीएम मोदी सहित कई दिग्गज नेताओं ने उन्हें बधाई दी है. वहीं विपक्षी नेताओं ने इस बजट को चुनावी बजट बता दिया है.

इसी कड़ी में झारखंड सरकार की ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि यह बजट चुनावी बजट है. झारखंड को इस बजट में नजरअंदाज किया गया.

केंद्रीय बजट पूरी तरफ चुनावी बजट साबित हुआ

मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि आज पेश की गई केंद्रीय बजट 2025 पूरी तरह से चुनावी बजट साबित हुआ है. यह बजट झारखंड, ग्रामीण भारत और युवाओं के प्रति सरकार की घोर उपेक्षा को उजागर करता है.

बजट में लोकलुभावन वादों की भरमार है, जो केवल चुनावी लाभ के लिए बनाए गए हैं. चुनावों के समय यह सरकार जनता को लुभाने में जुट जाती है, लेकिन चुनाव खत्म होते ही जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है.

झारखंड की उम्मीदें और सरकार की नाकामी

झारखंड के लिए यह बजट विशेष रूप से निराशाजनक साबित हुआ है. राज्य के विकास, रोजगार, शिक्षा और औद्योगिकीकरण के मुद्दे पूरी तरह से नजरअंदाज किए गए हैं,

1.झारखंड को उसका बकाया मिले

झारखंड का केंद्र सरकार पर लंबित बकाया हजारों करोड़ रुपये में है. यह पैसा राज्य के बुनियादी ढांचे, अस्पतालों, स्कूलों और ग्रामीण विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. बजट में इस बकाया का कोई उल्लेख नहीं किया गया है, जो राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है.

2.विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज

झारखंड खनिज संसाधनों से समृद्ध राज्य है, लेकिन इसका लाभ राज्य के नागरिकों को नहीं मिल रहा. झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा और एक विशेष आर्थिक पैकेज दिए जाने की आवश्यकता है, ताकि राज्य का तेजी से औद्योगिकीकरण हो सके और इसके नागरिकों को अधिक केंद्रीय सहायता मिल सके.

आगे मंत्री दीपिका पांडेय ने कहा कि किसान पिछले चार सालों से एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) के लिए कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं. इस बजट में किसानों के लिए कोई ठोस घोषणा नहीं की गई.यह बजट किसानों के अधिकारों की अनदेखी करता है और उन्हें उनके संघर्ष में अकेला छोड़ता है, जो बेहद दुखद है.

ग्रामीण विकास की उपेक्षा

केंद्रीय बजट 2025 में ग्रामीण विकास के लिए सरकार का दृष्टिकोण पूरी तरह से उदासीन और निराशाजनक है. इस बजट में ग्रामीण भारत की जरूरतों और उसकी समृद्धि की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं:

1.ग्रामीण बुनियादी ढांचे की अनदेखी– ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की स्थिति अभी भी कमजोर है। सड़कों, बिजली, पानी और स्वच्छता की सुविधाओं की कमी है, लेकिन बजट में इन समस्याओं को दूर करने के लिए कोई नई पहल नहीं की गई है. यह बजट ग्रामीण जनता के लिए निराशा का कारण बनता है.

2.कृषि और किसानों के लिए कोई नई योजना नहीं – कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ है, लेकिन इस बजट में कृषि क्षेत्र के सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग पर सरकार का ध्यान नहीं गया है.

3.स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में कमजोर कदम – ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति बेहद खराब है। सरकारी अस्पतालों और क्लीनिकों में सुविधाओं की भारी कमी है. इसी तरह, ग्रामीण शिक्षा की स्थिति भी कमजोर है और उच्च शिक्षा के अवसर सीमित हैं। इस बजट में इन दोनों क्षेत्रों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं.

4.कृषि रोजगार और ग्रामीण बेरोजगारी – ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन चुकी है। कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन के कोई नए रास्ते नहीं दिखाए गए हैं. बजट में रोजगार योजनाओं और प्रशिक्षण के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं दी गई है, जिससे ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या और बढ़ सकती है.

5.ग्रामीण महिलाओं की स्थिति – ग्रामीण महिलाओं के लिए इस बजट में कोई ठोस योजना नहीं दी गई है. उन्हें रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से दूर रखा गया है.

मंत्री दीपिका ने यह  भी कहा कि इस बजट में युवाओं के लिए क्या मिला. एक बड़ा शून्य. उन्होंने एक –एक पॉइंटर बनाते हुए बताया कि किस तरह से युवाओं को इस बजट में कुछ नहीं मिला. साथ ही सवाल भी उठाया है.

1.शिक्षा और सरकारी संस्थानों की अनदेखी – झारखंड में उच्च शिक्षा की स्थिति पहले से ही कमजोर है. हमें सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के लिए अधिक फंडिंग की उम्मीद थी, लेकिन बजट में इसकी कोई झलक तक नहीं मिली.

2.छात्रवृत्ति योजनाओं का विस्तार कहां है?

मंत्री दीपिका ने बजट पर सवाल उठाते हुए बताया कि इस बजट में छात्रवृति योजनाओं का विस्तार नहीं है. गरीब और मेधावी छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति की जरूरत है, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया.

3.युवाओं के लिए रोजगार का कोई ठोस प्रस्ताव नहीं- बेरोजगारी झारखंड के लिए एक गंभीर समस्या है, लेकिन इस बजट में रोजगार सृजन के लिए कोई ठोस नीति नहीं है। केवल खोखले वादों से युवाओं का भविष्य सुरक्षित नहीं किया जा सकता.

4.झारखंड को मिनरल-बेस्ड इकोनॉमी बनाने की जरूरत

झारखंड भारत का खनिज भंडार है. कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट और यूरेनियम जैसे खनिज संसाधनों की भरमार है, लेकिन राज्य को इसका उचित लाभ नहीं मिल रहा. हम चाहते हैं कि झारखंड को एक मिनरल-बेस्ड औद्योगिक अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित किया जाए, जिससे स्थानीय उद्योग बढ़ेंगे, निवेश आएगा और लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे.

ऊर्जा क्षेत्र में झारखंड की उपेक्षा क्यों?

झारखंड भारत की ऊर्जा राजधानी बनने की क्षमता रखता है, लेकिन इस क्षेत्र को भी सरकार ने नजरअंदाज किया है:

  • थर्मल पावर प्लांट्स के विस्तार के लिए बजट में कोई ठोस योजना नहीं।
  • राज्य को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं।

मंत्री ने आगे  कहा कि  मोदी सरकार का यह बजट दिखाता है कि झारखंड की जनता उनके लिए कोई प्राथमिकता नहीं रखती. चुनावी वादों के दौरान यह सरकार पैसों की बारिश करती है, लेकिन जहां वास्तविक विकास की जरूरत है, वहां झारखंड जैसे राज्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है.

मंत्री दीपिका पांडेय ने केंद्र सरकार से योजनाओं के लिए फंड और बकाया की भी मांग की है.

  • झारखंड को उसका बकाया फंड तुरंत दिया जाए.
  • विशेष राज्य और विशेष आर्थिक पैकेज का दर्जा मिले.
  • शिक्षा और रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर निवेश किया जाए.
  • झारखंड को मिनरल-बेस्ड अर्थव्यवस्था में बदला जाए.
  • थर्मल पावर प्लांट्स और ऊर्जा क्षेत्र में विकास किया जाए.

इसके अलावे मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने इस बजट को लेकर कहा कि ग्रामीण भारत को भी पूरे तरीके से अनदेखी की गई. आगे कहा कि सरकार ने लोकलुभावन योजनाओं के बजाय वास्तविक जरूरतों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया है. किसानों, गरीबों और ग्रामीण जनता की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया है.

अगर केंद्र सरकार ने ग्रामीण विकास पर ध्यान नहीं दिया, तो इसके दूरगामी नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, और ग्रामीण जनता इसे कभी माफ नहीं करेगी. साथ ही, ग्रामीण विकास के लिए बजटीय आवंटन में 5.51% से घटाकर 5.21% कर दिया गया है, जो इस क्षेत्र के लिए सरकार की नीरस प्राथमिकता को और स्पष्ट करता है.

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