झामुमो से बगावत करने वाले नेताओं का हुआ ये हाल…

, ,

Share:

Ranchi : झारखंड की सियासत में कुछ दिनों से अटकलों का बाजार गर्म था कि झामुमो के सबसे कद्दावर नेता व शिबू सोरेन के बेहद भरोसेमंद चंपई सोरेन भाजपा में शामिल हो सकते हैं. हालांकि अब इन अटकलों पर विराम लग गया है. चंपाई सोरेन ने खुद साफ कर दिया है कि अब वे अलग संगठन बनाएंगे.

बहरहाल, झामुमो राज्य की सबसे पुरानी और ताकतवर पार्टियों में से एक है. क्या इस पुरानी पार्टी में पहली बार केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठ रहे है. क्या पहली बार ऐसा हो रहा है, जब पार्टी का कोई बड़ा नेता अलग होने जा रहा है. अगर नहीं तो वैसे कौन से झामुमो के कद्दावर नेता रहे हैं जिन्होंने पार्टी से बगावत कर किसी दूसरे दल को ज्वाइन कर लिया है.

झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है. यही नहीं!  राजनीतिक गालियारों में झामुमो को अक्सर झारखंड की राजनीति की पाठशाला भी कहा जाता है. इसके पीछे झामुमो के कई नेता ऐसे रहे हैं जिन्होंने यहां सियासत का ककहरा सीखने के बाद दूसरे दल की ओर रुख कर अपने राजनीतिक पारी का आगाज किया.

हालांकि कुछ नेता ही सफल होकर प्रदेश की राजनीति में कद्दावर होने का तमगा हासिल कर पाये. जबकि कुछ ऐसे नेता रहे है जिन्हें दोबारा वो कद नहीं मिल सका, जो उन्हें झामुमो में मिला था. झामुमो छोड़ चुके नेताओं की बात करें तो, कृष्णा मार्डी, पूर्व मंत्री दुलाल भुइंया, पूर्व विधायक कुणाल षाड़गी, पूर्व सांसद सूरज मंडल, हेमलाल मुर्मू, साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी, अर्जुन मुंडा, विद्युत वरण महतो और जेपी पटेल का नाम शामिल है.

मीडिया रिर्पोट्स की मानें तो झामुमो के सबसे बड़े नेता में से एक थे कोल्हान से आने वाले कृष्णा मार्डी. कृष्णा जेएमएम में साल 1981 में जुड़े. ये सरायकेला से 2 बार के विधायक और सिंहभूम लोकसभा से साल 1991 में झामुमो से सांसद भी बने.

लेकिन 1992 में इन्होंने पार्टी से बगावत कर इस्तीफा दे दिया और अपने साथ 9 विधायकों को भी ले गए. झामुमो मार्डी गुट बनाया हालांकि उनका ये गुट लंबा नहीं चला सका अंतत 1996 में झामुमो में ही अपने गुट का विलय कर दिया.

कृष्णा मार्डी साल 2006 में भाजपा में शामिल हो गए. 2 साल के बाद वर्ष 2008 में आजसू गए फिर इसे छोड़ 2013 में कांग्रेस में शामिल हुए. हालांकि 2014 में कांग्रेस ने उन्हें पार्टी ने निकाल दिया. ठीक इसके एक साल बाद यानी 2015 में झामुमो उलगुलान संगठन बनाया, लेकिन उसे भी ज्यादा लंबा नहीं चला सके.

इसी तरफ दुलाल भुइंया की बात करें तो उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से साल 1995 में पहली बार जुगसलाई रिजर्व सीट पर झामुमो की टिकट पर चुनाव जीता और विधायक बने. 2000 में झामुमो से दोबारा विधायक बने, 2005 में जीत की हैट्रिक लगाई.

जिसके बाद 2009 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने चौथी बार जुगसलाई से उतारा, लेकिन आजसू प्रत्याशी रामचंद्र सहिस के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद दुलाल झामुमो छोड़कर झाविमो में चले गए.

2014 विधानसभा चुनाव से पहले समरेश सिंह के नेतृत्व में दुलाल भुइयां भाजपा में शामिल हुए, लेकिन जुगसलाई सीट गठबंधन के तहत आजसू के खाते में चली गई और फिर वे कांग्रेस में चले गए. जुगसलाई से कांग्रेस के टिकट पर 2014 में चुनाव लड़े, मगर इस बार भी हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद साल 2019 में बसपा का दामन थामा.

इसी क्रम में आगे बढ़ते है सूरज मंडल की ओर. बता दें कि युवा कांग्रेस से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले सूरज मंडल कभी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन का दाहिना हाथ भी कहे जाते थे. हालांकि बाद में पार्टी की नीतियों का विरोध कर अलग हो गए.

झामुमो से अलग होकर झारखंड विकास दल नाम का राजनीतिक संगठन बनाया, लेकिन सफलता नहीं मिली. फिलहाल वे भाजपा में है. इसी तरह 2014 तक झामुमो के कद्दावर नेताओं में हेमलाल मुर्मू की भी गिनती होती रही. वे 2014 में भाजपा में शामिल हो गए. जिसके बाद राजमहल संसदीय सीट पर 2014 और 19 में लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हो सकी. जिसके बाद फिर झामुमो में घर वापसी कर ली.

इसी तरफ पूर्व विधायक कुणाल षाड़गी, स्टीफन मरांडी और झामुमो विधायक जेपी पटेल का नाम है जिन्होंने झामुमो छोड़ दूसरे दलों को ज्वाइन किया. स्टीफन मरांडी ने घर वापसी कर ली है. वहीं कुणाल को लेकर खबरें हैं कि चुनाव से पहले वे घर वापसी कर सकते हैं.

जबकि झामुमो के पूर्व विधायक जेपी पटेल ने 2019 में भाजपा की टिकट पर मांडू सीट पर कब्जा जमाया लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामा लिया.

बहरहाल, जिन नेताओं ने झामुमो से अलग होकर भी अपना सियासी कद बनाए रखा उनमें अर्जुन मुंडा व विद्युत वरण महतो का नाम शामिल है.

बता दें कि कोल्हान से ही आने वाले अर्जुन मुंडा ने अपनी राजनीतिक सफर झारखंड मुक्ति मोर्चा से शुरू किया था फिर भाजपा में शामिल होकर 3 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. केंद्र में मंत्री पद भी संभाला.
वहीं विद्युतवरण महतो ने भी झारखंड मुक्ति मोर्चा से अलग होकर भी अपनी पहचान कायम रखी. लगातार भाजपा की टिकट पर तीसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

Tags:

Latest Updates