एसपी रणधीर वर्मा

खालिस्तानी आतंकियों से अकेले भिड़ जाने वाले शहीद एसपी रणधीर वर्मा की कहानी

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मरते हैं डरपोक घरों में बांध गले में रेशम का फीता
यह तो समरभूमि, मुट्ठी भर मिट्टी जिसने चूमी वह जीता!!

तारीख 3 जनवरी 1991. दोपहर का वक्त. गुनगुनी धूप के साथ ठंडी बयार ने मौसम सर्दीला बना रखा था.

पटना स्थित अपने दफ्तर में बैठे अविभाजित बिहार के तात्कालीन डीजीपी गजेंद्र नारायण को एक पुलिस अधीक्षक के शहादत की खबर मिली तो उनके मुंह से पहली प्रतिक्रिया में कवि गोपाल सिंह नेपाली की उपरोक्त उक्ति निकली.

ये किसकी शहादत की खबर थी. वह एसपी कौन थे जिनकी शहादत पर डीजीपी गजेंद्र नारायण के मुंह से शोक भरी आह की जगह कविता की ये दो ओजस्वी पंक्तियां निकली. क्यों, एसपी की शहादत ने पंजाब, बंगाल और दिल्ली तक, मीडिया, सरकार और सियासी दलों को हिलाकर रख दिया था.

यह शहादत हुई कहां थी.

3 जनवरी 1991 को धनबाद में हुई थी मुठभेड़
3 जनवरी 1991. जगह कोयला नगरी धनबाद. यह सर्दी के मौसम का एक आम दिन था. धनबाद के तात्कालीन एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा एसपी कोठी में मौजूद थे तभी फोन की घंटी बजी. उधर से घबराई सी आवाज आई.

सूचना थी. भयानक सूचना. फोन करने वाले ने बताया कि बैंक ऑफ इंडिया के हीरापुर शाखा में 3 हथियारबंद डकैत घुस आये हैं. लूटपाट कर रहे हैं. वारदात बड़ी थी और समय कम.

तब सूचना के बहुत साधन भी नहीं थे.

एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा ने आवास में तैनात अपने ब़ॉडीगार्ड को साथ लिया. वर्दी पहनी और अपनी सर्विस रिवॉल्वर लेकर आवास से बैंक ऑफ इंडिया की ओर जीप दौड़ा दी. पहुंचे तो देखा अफरा-तफरी मची है.

उस बिल्डिंग की पहली मंजिल पर बैंक था. तीनों डकैत वहीं मौजूद थे.

एसपी रणधीर वर्मा को वहां जाकर पता चला कि तीनों के तीनों डकैत अत्याधुनिक एके-47 राइफल से लैस हैं. री-इफोर्समेंट आने में अभी समय लगता. एसपी रणधीर वर्मा ने तब तक खुद ही मुकाबला करने का फैसला किया.

वह सीढ़ियों से पहली मंजिल की ओर बढ़े और डकैतों को ललकारा. ऊपरी मंजिल पर बैंक में एके-47 से लैस 3 डकैत और नीचे सीढ़ियों पर अपनी सर्विस रिवॉल्वर और बेशुमार हिम्मत लिए एसपी रणधीर वर्मा. डकैत घबरा गये.

उनको यकीन नहीं हो रहा था कि कोई उनसे यूं सामने से ललकार रहा है.

सर्विस रिवॉल्वर से किया था एके-47 राइफल का मुकाबला
डाकुओं ने फायरिंग झोंक दी.

सीढ़ियों से ऊपर जाने की कोशिश कर रहे एसपी रणधीर वर्मा को गोली लग गयी. लगा सब खत्म लेकिन एसपी रणधीर वर्मा किसी और ही मिट्टी के बने थे. गोली लगने से गंभीर रूप से जख्मी रणधीर वर्मा ने फिर भी मुकाबला किया.

उनके औऱ डाकुओं के बीच मुठभेड़ शुरू हो गयी. पूरा हीरापुर इलाका फायरिंग की आवाज से थर्रा उठा. एसपी रणधीर वर्मा ने एक डाकू को मार गिराया. तब तक री-इन्फोर्समेंट आ चुकी थी. पुलिस मोर्चा संभाल चुकी थी.

उन्होंने दूसरे डाकू को भी मार गिराया. तीसरा, हथियार छोड़कर निहत्था ही भागने लगा लेकिन तब तक वहां इकट्ठा हो चुकी भीड़ के हत्थे चढ़ गया. भीड़ ने उसे पीटकर मार डाला.
इस मुठभेड़ में गंभीर रूप से घायल हो चुके एसपी रणधीर वर्मा शहीद हो गये.

एक युवा और जाबांज पुलिस ऑफिसर, अपनी जान की परवाह किए बिना, जनसेवा की खातिर अपना

सर्वोच्च बलिदान दे चुके थे. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती.

डाकू के वेश में बैंक लूटने आये थे खालिस्तानी आतंकी
मृत डाकुओं की तलाशी ली गयी तो कुछ दस्तावेज मिले.

इन दस्तावेजों से डाकुओं की पहचान हुई और जो पता चला, उसने न केवल पुलिस डिपार्टमेंट को बल्कि बिहार और केंद्र सरकार को सकते में ला दिया. दरअसल, ये सभी खालिस्तानी आतंकी थी.

जांच का दायरा बढ़कर कोलकाता में एक दंपति तक पहुंचा. छानबीन में पता चला कि ये आतंकी, बांग्लादेश में कुछ अतिवादियों के सहयोग से पूर्वी भारत में खालिस्तानी मूवमेंट को फैलाने की साजिश कर रहे थे.

इसी मूवमेंट की खातिर धन जुटाने के लिए उन्होंने धनबाद में बैंक ऑफ इंडिया की हीरापुर शाखा को लूटने का प्लान बनाया था लेकिन एसपी रणधीर वर्मा ने उनके नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया.

पूर्वी भारत में खालिस्तानी मूवमेंट का इरादा खत्म हुआ
एसपी रणधीर वर्मा की वजह से केवल 3 आतंकी ही नहीं मारे गये बल्कि पूर्वी भारत में खालिस्तानी मूवमेंट को जन्म देने का उनका इरादा भी हमेशा के लिए खत्म हो गया.

एक युवा आईपीएस अधिकारी के सर्वोच्च बलिदान ने केवल अविभाजित बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में लोगों की आंखें नम कर दी. लोग उस युवा अधिकारी की वीरता, साहस और कर्तव्यपरायणता की मिसालें देते नहीं थकते.

अशोक चक्र से सम्मानित होने वाले पहले पुलिस ऑफिसर
26 जनवरी 1991 को गणतंत्र दिवस समारोह में तात्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरामन ने शहीद एसपी रणधीर वर्मा को अशोक चक्र से सम्मानित किया. सेना से इतर, अशोक चक्र पाने वाले एसपी रणधीर वर्मा पहले पुलिस अधिकारी थे.

अविभाजित बिहार की तब की सरकार ने धनबाद के गोल्फ ग्राउंड का नाम रणधीर वर्मा स्टेडियम कर दिया.

3 जनवरी 1994 को तब लोकसभा में नेता विपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने धनबाद में रणधीर वर्मा चौके में उनकी आदमकद प्रतिमा का अनावरण किया था.

आज भी लोग प्रतिवर्ष 3 जनवरी को अपने जाबांज पुलिस अधिकारी को श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं.

रणधीर वर्मा के नाम से धनबाद में चौक और स्टेडियम है
वर्ष 1991 के मध्यावधि चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शहीद रणधीर वर्मा की पत्नी रीता वर्मा को धनबाद संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया. उन्होंने जीत हासिल की. रीता वर्मा 4 बार धनबाद से सांसद चुनी गयीं.

वह केंद्र में मंत्री भी बनीं. शहीद रणधीर वर्मा के 2 बेटों में से एक अमेरिका में जॉब करते हैं जबकि दूसरे बेटे सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते हैं.

आज भी रणधीर वर्मा का नाम बहुत आदर औऱ सम्मान के साथ लिया जाता है.

आज 3 जनवरी है. आज शहीद रणधीर वर्मा की 35वीं पुण्यतिथि है. लोग आज शहीद रणधीर वर्मा को बहुत प्रेम और आदर से याद कर रहे हैं.

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