अलग झारखंड राज्य के आंदोलन से उपजे झामुमो ने अपनी स्थापना के 53 साल पूरे कर लिए हैं. 5 दशक पुरानी इस पार्टी ने 2019 से लेकर अब तक लगातार 6 साल तक प्रदेश की सत्ता में रहने का गौरव हासिल किया है.
14 और 15 अप्रैल को रांची के खेलगांव में झामुमो का 2 दिवसीय महाधिवेशन संपन्न हो गया.
इस महाधिवेशन से झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखंड की सियासत में नये दौर में प्रवेश किया है. पार्टी का नेतृत्व, कार्यशैली, गतिविधियां और योजनाएं सबकुछ बदलने वाली है.
13वां महाधिवेशन झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व नई पीढ़ी के हाथों में जाने की प्रक्रिया का गवाह बना है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के सर्वमान्य नेता बन गए हैं.
झामुमो में खत्म कर दिया गया कार्यकारी अध्यक्ष का पद
झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी नेता होने की पहचान तो उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही हासिल कर ली थी. हेमंत सोरेन अब झामुमो के नये केंद्रीय अध्यक्ष हैं.
कहना गलत नहीं होगा कि हेमंत सोरेन ही अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के सुप्रीम लीडर हैं.
दिशोम गुरु दिशोम गुरू अब मार्गदर्शक मंडल में होंगे. गौरतलब है कि इस महाधिवेशन में पार्टी के संविधान में संशोधन के जरिए कार्यकारी अध्यक्ष का पद खत्म कर दिया गया. 2015 से अब तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पद पर थे. एक नया पद शामिल किया गया है जिसे नाम दिया गया है संस्थापक संरक्षक. इसे गुरुजी सुशोभित करेंगे.
चर्चा थी कि कल्पना मुर्मू सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जायेगा और हेमंत सोरेन केंद्रीय अध्यक्ष होंगे लेकिन, फिलहाल ऐसा कुछ नहीं हुआ. अब झारखंड मुक्ति मोर्चा में केवल और केवल हेमंत सोरेन ही पावर सेंटर हैं.
दरअसल, यह पिछले 5 साल में उपजे सियासी हालात, वक्त की नजाकत और हेमंत सोरेन का सियासत में उभार का नतीजा है.
2015 में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष बने थे हेमंत सोरेन
2015 में जब जमशेदपुर में आयोजित पार्टी के 10वें महाधिवेशन में हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो कई सवाल उठे थे. परिवारवाद का आरोप लगा. हेमंत सोरेन की योग्यता पर सवाल उठे क्योंकि, 2005 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले हेमंत सोरेन 2013 तक कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर पाए थे.
2014 का विधानसभा चुनाव कमोबेश उनके ही नेतृत्व में लड़ा गया लेकिन झामुमो को आशातीत कामयाबी नहीं मिली थी.
2015 में जब हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया तो भी सियासी जानकारों को उनके और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सियासी भविष्य पर शंका थी लेकिन, हेमंत सोरेन शायद कुछ अलग ही ठान कर आये थे.
2015 से लेकर 2019 तक, हेमंत सोरेन ने नेता प्रतिपक्ष रहते हुए तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ ऐसा माहौल तैयार किया कि 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी.
रोजगार के मुद्दे पर युवा हेमंत सोरेन झारखंड लड़के और लड़कियों को ये यकीन दिलाने में कामयाब रहे कि जेपीएससी और जेएसएससी के मार्फत सरकारी नौकरियों की बहार आयेगी.
हेमंत सोरेन की सियासी समझ की दाद देनी होगी. तब, उन्होंने तकरीबन हर मुद्दे को छुआ जिससे झारखंड का अलग-अलग तबका परेशान था. चाहे वह पारा शिक्षकों के स्थायीकरण और वेतनमान की मांग हो या आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के मानदेय में वृद्धि का मामला हो. चाहे वह संविदाकर्मियों के स्थायीकरण का मुद्दा हो या फिर जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षाओं के आयोजन का वादा हो.
जिन मुद्दों पर जनता रघुवर सरकार से त्रस्त थी, हेमंत सोरेन ने हर उस मुद्दे को अपना हथियार बना लिया.
यही नहीं! 2019 के झामुमो के घोषणापत्र में आदिवासी भावनाओं से जुड़े सरना धर्मकोड बिल और 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीय नीति के बिल को शामिल किया.
परिणाम ये हुआ कि हेमंत सोरेन की अगुवाई में झामुमो-कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन ने स्पष्ट जनादेश हासिल किया.
दिसंबर 2023 में शपथ ग्रहण के तुरंत बाद फरवरी 2020 में देश में कोरोना महामारी ने दस्तक दी. पूरे देश में लॉकडाउन लगा. इस समय राज्य में कोविड प्रबंधन से लेकर, देश और विदेश में फंसे झारखंडी श्रमिकों को हवाई, बस और रेलमार्ग के जरिए वापस लाकर, हेमंत सोरेन ने खूब वाहवाही बटोरी.
सियासी पिच पर हेमंत सोरेन ने भाजपा को इन मौकों पर दी मात
नीतिगत मुद्दों पर हेमंत सोरेन कामयाबी के झंडे गाड़ रहे थे लेकिन वह एक मंझे हुए राजनेता हैं, इसकी पहचान होना बाकी था.
ये वक्त भी आया जब हेमंत सोरेन के सियासी समझ की परख हुई.
दरअसल, अप्रैल 2022 में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राज्यपाल से मुलाकात करके ये शिकायत की कि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अनगड़ा में खनन पट्टा लीज पर ले रखा है. ये जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9 (ए) के तहत ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला बनता है. कार्रवाई होनी चाहिए.
राज्यपाल ने चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा.
कहते हैं कि अगस्त 2022 में चुनाव आयोग ने राज्यपाल से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी रद्द करने की अनुशंसा की थी. झारखंड में सियासी बवाल मचा था. रांची में राजभवन में पड़े एक सीलबंद लिफाफे की चर्चा थी.
अटकलें लगने लगी कि यदि हेमंत सोरेन की विधायकी गई तो झामुमो और कांग्रेस के विधायक टूटेंगे और भाजपा सरकार बना लेगी. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं. दरअसल, हेमंत सोरेन ने तुरंत सत्तापक्ष के सभी विधायकों को समेटा और लतरातू डैम घुमाने ले गए. मीडिया की गाड़ियां पीछे लगी. इसके बाद सभी विधायकों को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ले जाया गया.
वहां विधायकों को रिसॉर्ट में ठहराया गया.
इस घटनाक्रम से मुख्यमंत्री की साख को बट्टा लग रहा था. राज्यभर में सरकार विरोधी माहौल बनने लगा था लेकिन, सबकुछ इतना सीधा नहीं था.
14 सितंबर 2022 को हेमंत सोरेन कैबिनेट में 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति और 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का प्रस्ताव लाये. प्रस्ताव को मंजूरी मिली. दो वर्ग एकदम से खुश हो गया. राज्य के करीब 40 फीसदी ओबीसी वर्ग में खुशी की लहर थी और आदिवासी तो खैर लहालोट हो गये.
लिफाफा कभी खुला नहीं और हेमंत सोरेन एक मास्टस्ट्रोक से भाजपा को मात दे गये.
कहते हैं कि सरकार गिराने की एक और कोशिश हुई थी.
दरअसल, 30 जुलाई 2022 को झारखंड कांग्रेस के तीन विधायक डॉ. इरफान अंसारी, नमन बिक्सल कोंगाड़ी और राजेश कच्छप को पश्चिम बंगाल पुलिस ने हावड़ा के पास 48 लाख रुपये कैश के साथ गिरफ्तार किया था. गिरफ्तारी के तुरंत बाद 31 जुलाई को कांग्रेस के एक और विधायक अनूप सिंह ने अरगोड़ा थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी.
आरोप लगाया कि इरफान अंसारी, भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर हेमंत सोरेन सरकार को गिराने की साजिश कर रहे थे.
अनूप सिंह ने दावा किया था कि इरफान अंसारी ने उनको मंत्रिपद और 10 करोड़़ रुपये का ऑफर दिया था. कोलकाता हाईकोर्ट में केस चला. कोर्ट ने हालांकि, कांग्रेस के तीनों विधायकों को क्लीन चिट दी लेकिन एक थ्योरी ये भी थी कि वाकई ऐसी साजिश थी. असम और बंगाल के कुछ भाजपा नेताओं को इस डील को फाइनल करने का जिम्मा दिया गया था.
हालांकि, समय रहते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इसकी भनक लग गई और उन्होंने बंगाल सरकार से कोऑर्डिनेट करके तीनों विधायकों को पकड़वा दिया. इस तरह से भाजपा की हेमंत सरकार को गिराने की साजिश नाकाम हो गयी.
एक और घटनाक्रम ऐसा है जिसमें हेमंत सोरेन ने अपनी सियासी योग्यता साबित की.
दरअसल, हेमंत सोरेन का नाम रांची के बरियातू में कथित जमीन घोटाला केस में जोड़ा गया. ईडी मामले की जांच कर रही थी. ईडी ने इस केस में अक्टूबर 2023 से लेकर जनवरी 2024 तक, हेमंत सोरेन को कुल 10 समन किए.
हेमंत सोरेन और सत्तापक्ष को यह आशंका थी कि गिरफ्तारी हो सकती है.
दिलचस्प है कि हेमंत सोरेन ने इसकी काट तैयार कर ली थी. 31 दिसंबर 2023 को गांडेय विधायक डॉ. सरफराज अहमद ने निजी कारण बताकर इस्तीफा दे दिया. कहते हैं कि प्लान ये था कि यदि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हो गयी तो कल्पना मुर्मू सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया जायेगा. फिर वह गांडेय से उपचुनाव जीतकर विधायक बन जायेंगी.
हेमंत सोरेन, पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन के अलावा और किसी को यह पद नहीं देना चाहते थे.
क्यों? यह बात बाद में साबित हो गयी.
दरअसल, 31 जनवरी 2024 को हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी से एक दिन पहले यानी 30 जनवरी को ये चर्चा आम थी कि कल्पना मुर्मू सोरेन राज्य की अगली और पहली महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं. ऐसा होना लगभग संभव था कि तभी सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन ने बगावत कर दी. विरोध के कुछ और स्वर भी उठे.
जमीन घोटाला केस में पूछताछ जैसी मुश्किलों का सामना कर रहे हेमंत सोरेन विपक्ष को एक और मौका नहीं देना चाहते थे इसलिए, मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी के सबसे वरीय नेता चंपाई सोरेन को चुना गया.
1 फरवरी को ही, सत्तापक्ष के सभी विधायकों को हैदराबाद ले जाया गया. 3 फरवरी को जब नये मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने शपथ ली तब विधायकों को वापस झारखंड लाया गया.
अपनी बेहतर राजनीतिक सूझबूझ और त्वरित फैसलों की बदौलत हेमंत सोरेन पार्टी और सरकार, दोनों को बचाने में कामयाब रहे.
मुश्किलें अभी थमी नहीं थी.
मार्च 2024 को लोकसभा चुनाव से ऐन पहले उनकी भाभी सीता सोरेन ने झामुमो से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया. सीता सोरेन ने सोरेन परिवार पर आरोपों की झड़ी लगा दी. वह खासतौर पर हेमंत सोरेन और कल्पना मुर्मू सोरेन पर हमलावर रहीं. पति दुर्गा सोरेन के आकस्मिक निधन को साजिश बताकर सीबीआई जांच की मांग कर दी.
हेमंत सोरेन जेल में थे. गुरुजी और हेमंत सोरेन की मां रूपी सोरेन बीमार थीं. तब, हेमंत सोरेन ने धर्मपत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन को आगे किया. कल्पना मुर्मू सोरेन जेल में बंद पति से निर्देश लेतीं और बाहर चुनावी मंच पर पूरजोर गरजतीं.
इस दौरा सीता सोरेन भले ही बिलो द बेल्ट जाकर आरोपों की झड़ी लगा रही थीं लेकिन कल्पना मुर्मू सोरेन ने एक शब्द नहीं कहा. कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
हेमंत सोरेन के जेल जाने को कल्पना मुर्मू सोरेन ने आदिवासियों के बीच झामुमो के पक्ष में ऐसे भुनाया कि भाजपा राज्य की सभी 5 लोकसभा सीटों पर हार गयी. हेमंत सोरेन और कल्पना मुर्मू सोरेन की जोड़ी ने भाजपा को चारों खाने चित्त कर दिया.
जेल में रहकर भी, हेमंत सोरेन झारखंड के सर्वाधिक सर्वमान्य और बड़ा आदिवासी चेहरा बन गये.
जून 2025 में हेमंत सोरेन जेल से निकले और दोबारा सीएम पद की शपथ ली.
तब खूब सवाल उठे. कहा गया कि वह सत्ता लोलुप व्यक्ति हैं. वरीय चंपाई सोरेन का अपमान किया है लेकिन हेमंत सोरेन ने अपने सियासी मूव से यह साबित किया कि वह सही थे. पहले तो उन्होंने राज्य की महिला मतदाताओं को झामुमो के पीछे लामबंद करने के इरादे से मंईयां सम्मान योजना लॉन्च की. विधानसभा चुनाव से ठीक 3 महीने पहले लॉन्च की गई इस योजना के जरिये महिलाओं को प्रतिमाह 1 हजार रुपये देकर, उन्होंने राज्य की 57 लाख महिला मतदाताओं को साध लिया.
चुनाव में इसका असर भी दिखा.
चंपाई सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम ने पार्टी छोड़कर बढ़ाई थी मुश्किल
चुनाव की तैयारियों में जुटे हेमंत सोरेन के जीवन में एक और झंझावात आया.
खबरें उड़ी कि पूर्व मुख्यमंत्री और गुरुजी के विश्वासपात्र रहे चंपाई सोरेन भाजपा ज्वॉइन कर रहे हैं. उनके साथ 6 और झामुमो विधायकों के भाजपा में जाने की खबरें उड़ी. ये सच भी था. चंपाई सोरेन अचानक दिल्ली में थे. बताया गया कि हेमंत सोरेन, चंपाई सहित बाकी अन्य 6 विधायकों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं.
संताल में लोबिन हेम्ब्रम बागी हो गये थे.
हेमंत सोरेन तब पाकुड़ में थे. कहते हैं कि वह चंपाई को तो नहीं साध पाये लेकिन बाकी विधायकों से एक-एक कर फोन पर बात की. थोड़ा समझाया. हल्का डराया और तुरंत अपने पाले में किया.
फिर रांची आकर सभी विधायकों से अपने आवास पर मिले.
कुछ ही देर में जिन विधायकों के भाजपा में जाने की चर्चा थी, उन्होंने एक-एक कर लेटर जारी करके इन खबरों को अफवाह बताना शुरू कर दिया. उन्हीं से एक रामदास सोरेन को मंत्रिपद देकर, हेमंत सोरेन ने असंतोष खत्म किया और कोल्हान में संताल आदिवासियों को साध लिया क्योंकि चंपाई सोरेन के रूप में संताल आदिवासी समुदाय का एक बड़ा नेता भाजपा में जा चुका था.
इधर, संताल परगना में बोरियो विधानसभा सीट से विधायक रहे लोबिन हेम्ब्रम भी भाजपा में चले गये.
हालांकि, इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ा.
भाजपा कोल्हान में 14 में से केवल 1 आदिवासी सीट जीत पाई वह भी चंपाई सोरेन के रूप में. संताल परगना में 18 में से 17 विधानसभा सीटों पर झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने जीत हासिल की.
छोटा नागपुर और पलामू प्रमंडल में भी झामुमो ने झंडे गाड़े.
हेमंत नाम के आंधी का असर ऐसा था कि भाजपा के रणधीर सिंह, अमर बाउरी, भानुप्रताप शाही, नीलकंठ सिंह मुंडा, विरंचि नारायण जैसे दिग्गज हार गये. अर्जुन मुंडा की पत्नी चुनाव हार गयीं.
हेमंत सोरेन ने न केवल संगठन को मजबूती दी बल्कि सफलतापूर्वक सरकार भी संचालन किया.
उनकी ताकत का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि, कई बार सहयोगी कांग्रेस को भी उनकी शर्तों के आगे झुकना पड़ा. चाहे वह राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करना हो या फिर राज्यसभा चुनाव में महुआ माजी को प्रत्याशी घोषित करना हो.
कहते हैं कि कांग्रेस ने जो 16 सीटें जीती हैं, वह भी हेमंत सोरेन के रहमो-करम का नतीजा है.
इन 6 वर्षों में हेमंत सोरेन निश्चित रूप से देशभर में बड़े आदिवासी नेता के तौर पर उभरे हैं. झारखंड में और खासतौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा में अब हेमंत युग का आगाज हो रहा है.