Ranchi : झारखंड की हेमंत सरकार दावा करती है कि स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाये गये हैं. कई योजनायें संचालित की जा रही है. बावजूद इसके धनबाद जिले के कई सरकारी स्कूलों से आई ताजा तस्वीरों ने दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं.
दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के मुताबिक धनबाद जिले के कई स्कूलों में परीक्षा देने पहुंचे बच्चों को बिठाने के लिए जगह कम पड़ गई. कहीं एक ही बेंच-डेस्क पर आधा दर्जन बच्चों को बिठाया गया तो कहीं दरी में बिठाकर परीक्षा दिलाई गयी. तर्क दिया गया कि परीक्षा वाले दिन ज्यादा बच्चे आये थे. दरअसल, स्कूलों में बुनियादी सुविधा का अभाव है. पर्याप्त संख्या में बेंच-डेस्क नहीं हैं. पर्याप्त क्लासरूम नहीं हैं. शिक्षकों की भी भारी कमी है. नतीजा ये दृश्य सामने आया है.
पिछले साल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 4000 सरकारी स्कूलों को ‘स्कूल ऑफ एक्सीलेंस’ में परिवर्तित कर राज्य के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की बात कही थी. इसके अलावा सोरेन सरकार ने राज्य में विद्या समीक्षा केंद्र की स्थापना करने का निर्णय लिया था.
जिससे कि सरकारी स्कूलों की हर गतिविधियों पर सरकार की नजर बनी रहेगी. लेकिन धनबाद जिले के कई सरकारी स्कूल ऐसे है जहां न तो सरकार की नजर पड़ रही है और न ही शिक्षा विभाग की. दरअसल, धनबाद जिले के कई सरकारी स्कूलों में प्रोजेक्ट रेल माने रेगुलर एसेसमेंट फॉर इंप्रूव्ड लर्निंग के तहत बीते शनिवार को सरकारी स्कूलों में साप्ताहिक परीक्षा ली जा रही थी.
इसके तहत कक्षा 1 व 2 का मौखिक और कक्षा 3 से 12 के छात्र-छात्राओं का लिखित परीक्षा के जरिए मूल्यांकन किया जाना था लेकिन, जिस तरह से परीक्षा ली गई, वह मूल्यांकन कम और शिक्षा विभाग का मजाक ज्यादा दिखाई पड़ रहा था, कहीं एक ही बेंच पर 6 छात्राओं को बैठा दिया गया, तो कहीं बच्चों को बरामदे में और स्कूल के ऑफिस में बैठाकर परीक्षा ली गई.
बता दें कि इन सरकारी स्कूलों यह स्थिति इसलिए भी हुई क्योंकि इनमें नामांकित बच्चों की संख्या के हिसाब से स्कूल में बेंच-डेस्क नहीं होते है. इसके अलावा आम तौर पर रोजाना स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति 60 से 75% तक ही रहती है. हालांकि तब भी सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों को किसी तरह बेंच-डेस्क या फिर कई जगह दरी पर बैठाया जाता है. लेकिन, परीक्षा के दिन बच्चों की उपस्थिति 99 फिसदी तक भी पहुंच जाती है. तब सभी बच्चों को बैठने की जगह ही नहीं मिलती.
दैनिक भास्कर में छपी खबर के मुताबिक बीते शनिवार को गोविंदपुर के नगरकियारी उत्क्रमित +2 उच्च विद्यालय में 1200 विद्यार्थी परीक्षा देने स्कूल पहुंचे थे. लेकिन 1200 बच्चों में से केवल 850 बच्चों के ही बैठने के लिए स्कूल में बेंच थे.
पहले तो हर बेंच पर पांच-पांच छात्रों को एक साथ परीक्षा में बैठाया गया उसके बाद 250 बच्चों को बरामदे, लाइब्रेरी, ऑफिस , प्रायोगशाला आदि में बैठाकर किसी तरह परीक्षा ली गई . बता दें कि इस स्कूल में विद्यार्थियों की सख्या 1600 के करीब है हालांकि परीक्षा वाले दिन केवल 1200 ही बच्चे आए थे.
इसी तरह झरिया राज +2 उच्च विद्यालय में 1662 विद्यार्थी है. जहां शनिवार को सिर्फ 711 बच्चे ही परीक्षा देने पहुंचे थे. इसके बावजूद स्कूल के सभी क्लासरूम और हॉल भर गए. पिछले बेंचों पर बैठी छात्राओं को प्रश्न लिखने के लिए ब्लैकबोर्ड के करीब आना पड़ा और इसमें काफी समय लग गया. जरा सोचिए इस स्कूल के आधे से कम परीक्षा देने आए उसमें भी स्कूल के पास उतने बेंच नहीं है.
इसी तरफ निरसा के बेनागोड़िया स्थित शिवाजी +2 उच्च विद्यालय में भी यही हाल रहा. यहां कक्षा 9 से 12 तक में करीब 1970 विद्यार्थी पढ़ते हैं. इनमें से करीब 1000 विद्यार्थी ही परीक्षा में शमिल हुए थे. दैनिक भास्कर के रिर्पोट में ये दावा किया गया है, 7 क्लासरूम और 2 आईसीटी लैब को मिलाकर भी करीब 800 बच्चों को ही बैठाकर परीक्षा लिया गया था.
बाकी बच्चों को क्लासरूम के बाहर फर्श पर दरी बिछाकर बैठाया गया. फिर भी कई बच्चों को जगह नहीं मिली, तो एक बेंच पर 6-6 बच्चों को बैठाया गया. आपको बता दें कि धनबाद जिले में कुल 1726 स्कूल हैं. स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति कम रहती है, पर परीक्षा के दिन बढ़ जाती है. रिर्पोट में यह भी दावा किया गया कि बाकी दिनों में भी सरकारी स्कूलों में बच्चों को खुले में दरी पर ही बैठाया जाता है.
सरकारी स्कूलों की ये स्थित को देखकर सरकार के शिक्षा विभाग पर बड़ा सवाल खड़ा होता है. इसलिए भी क्योंकि पिछले साल राज्य में विद्या केंद्र की स्थापना करने का निर्णय लिया गया था. जिसके तहत पूरे राज्य के सरकारी स्कूलों की हर एक छोटी बड़ी गातिविधियों पर सरकार की नजर बनी रहेगी.
विद्यायल में बच्चों की कितनी उपस्थिति रही है. कितने शिक्षक उपस्थित हुए आदि की समीक्षा केंद्र में स्थित कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के माध्यम से सरकार को इसकी खबर मिलती रहेगी. लेकिन अब लगता है सरकार की यह योजना भी मानों कगजी पन्नों तक ही रह गया हो तभी तो इन सरकारी स्कूलों की हालिया स्थिति पर सरकार की नजर नहीं पड़ रही है,