पांच साल में बाबूलाल मरांडी ने सदन में क्यों नहीं कुछ बोला, जानिए क्या है पूरा मामला…

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Ranchi : झारखंड में कुछ ही महीनों में चुनाव होना है. जनता अपने-अपने क्षेत्र से एक ऐसा प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा भेजेगी जो उनके मुद्दों को सदन पर रखे. उनकी समस्याओं का समाधान निकाल सके, लेकिन जरा सोचिए, आप जनप्रतिनिधि को चुनकर इस उम्मीद और विश्वास के साथ सदन पर भेजते हैं कि वह आपसे जुड़े जनहित के मुद्दों को विधानसभा में रखे लेकिन, यदि ऐसा नहीं हुआ तो, अब आप सोच रहे होंगे कि ये सब बातें हम क्यों कह रहे है.

दरअसल, पंचम झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को समाप्त हो रहा है. एक ऐसे भी विधायक हैं जिन्होंने पंचम विधानसभा के पूरे कार्यकाल में 17 सत्रों में सदन में अपने क्षेत्र का मुद्दा नहीं रखा. कोई सवाल नहीं किया. यदि कभी कुछ कहने की जहमत भी उठाई तो स्पीकर ने उनको अनसुना कर दिया.

पंचम झारखंड विधानसभा का आखिरी सत्र 26 जुलाई से 2 अगस्त तक चला. झारखंड विधानसभा का कार्ययकाल पूरा हो चुका है. इस दौरान विधानसभ में विशेष सत्र को मिलाकर अब तक कुल 17 सत्र संचालित हुये हैं लेकिन, सदन में भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक बाबूलाल मरांडी ने विधानसभा में अब तक के कार्यकाल में सदन के अंदर एक शब्द भी नहीं बोला है. ना ही राज्यहित या जनहित का कोई मुद्दा उठाया.

बता दें कि झारखंड के लोकतांत्रिक इतिहास की शायद यह पहली घटना रही है. जब सदन का कोई सदस्य अपने क्षेत्र की समस्याओं पर भी सरकार से सवाल नहीं पूछ सका हो. ऐसी क्या वजहें रही होगी कि बाबूलाल मरांडी ने सदन में जनमुद्दों को नहीं उठाया, तो चलिए ये भी हम बताते है. लेकिन इसके लिए हमें थोड़ा विधानसभा के पंचम सत्र के शुरूआती दिनों में जाना होगा.

साल 2019. झारखंड में विधानसभा का चुनाव हुआ. जिसके बाद पचंम विधानसभा सत्र का गठन हुआ. उस दौरान 2019 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर धनवार विधानसभा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.उनके साथ उनकी पार्टी के टिकट पर बंधु तिर्की और प्रदीप यादव भी जीते थे. साल 2020 में बाबूलाल मरांडी ने झाविमो का भाजपा में विलय कर दिया. लेकिन, प्रदीप और बंधु ने इसका विरोध किया. जिसके बाद दोनों कांग्रेस में शामिल हो गए.

भाजपा में विलय होने के तुरंत बाद बाबूलाल को पार्टी विधायक दल का नेता और तकनीकी रूप से नेता प्रतिपक्ष बना दिया. हालांकि बाबूलाल, प्रदीप और बंधु पर दल-बदल का आरोप लग गया और मामला स्पीकर न्यायाधिकरण में चला गया. बता दें कि वर्तमान समय में भी बाबूलाल पर लगे दल बदल मामले में अब तक स्पीकर कोर्ट से फैसला नहीं सुनाया गया,

मुद्दे पर आते है. स्पीकर रवींद्रनाथ महतो ने न्यायाधिकरण का फैसला आने तक बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष बनाने से इनकार कर दिया. जबकि, भाजपा उन्हें ही नेता प्रतिपक्ष बनाने पर अड़ी रही. इस मुद्दे पर वह सदन में स्पीकर से भी भिड़ी, हालांकि स्पीकर उनके बातों के आगे नहीं झुके. नतीजा, बाबूलाल भी अपने जिद पर अड़े रहे. और यही से शुरू होता है बाबूलाल मरांडी को स्पीकर के द्वारा नजरअंदाज करना.

बाबूलाल मरांडी ने कई बार सदन में बोलने के लिए हाथ भी उठाया, लेकिन स्पीकर ने हर बार उन्हें नजरअंदाज कर दिया. करीब 3 साल से अधिक समय इसी विवाद में बीत गया. बाद में भाजपा झुकी और उनकी जगह अमर कुमार बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाने को मजबूर हुई. धीरे-धीरे बाबूलाल ने भी समझ लिया कि उन्हें सदन में बोलने का मौका नहीं दिया जाएगा.

वहीं जब स्पीकर रवींद्रनाथ महतो से पूछा गया कि सदन में बाबूलाल मरांड़ी को सवाल पूछने क्यों नहीं दिया जाता. तो इसपर स्पीकर ने कहा कि मैंने अगर किसी सदस्य को सदन में नहीं बोलने दिया है. फिर भी हर सदस्य के पास सदन में सवाल उठाने के बहुत सारे हथियार होते हैं. कोई भी सदस्य ध्यानाकर्षण, अल्पसूचित, तारांकित, शून्य काल के माध्यम से सवाल पूछ सकता है.

उनके सवालों पर सरकार से जवाब मांग सकता है. जनहित के मुद्दों के प्रति संवेदनशील विधायक ऐसा करते भी रहे हैं. प्रदीप यादव ही इसका उदाहरण हैं, वे तो सवाल पूछते रहे.बहरहाल, सदन में जो भी अब तक चलता आया है उसे देखकर यही लगता है कि स्पीकर रवींद्रनाथ महतो और बाबूलाल मरांडी ने मानों ठान लिया हो कि वो एक दूसरे के आगे झुकेंगे नही.

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