चंपारण के भितिहरवा से शुरू हुई कन्हैया कुमार की यात्रा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी खुद शामिल होने के ने लिए बिहार पहुंचे और बेगुसराय में काफी देर तक यात्रा के साथ-साथ चले। पटना में उनके दो और कार्यक्रम थे, लेकिन उन्होंने यात्रा में काफी समय दिया। राहुल गांधी का यात्रा में शामिल होना, आम बात नहीं है। बीच में जो थोड़ा सा डैमेज यात्रा को हुआ था, जब अररिया में बाउंसरों और कार्यकर्ताओं में झड़प हो गई थी, उस डैमेज को पहली बात तो कंट्रोल कर लिया गया। जो लोग छटके थे, राहुल के आने से साथ आ गए। सारी नाराजगी दूर हो गई और यात्रा को फिर से मजबूती मिल गई। दूसरा, आम युवाओं का इस यात्रा के प्रति भरोसा और बढ़ा, थोड़े और कैमरे इस यात्रा की तरफ मुड़ गए और यात्रा फिर से एक बार चर्चाओं में आ गई।
राहुल गांधी ने कन्हैया को दिया संबल
दूसरी सबसे बड़ी बात है कि राहुल गांधी ने यात्रा में आकर कन्हैया को संबल दिया और राजद तथा अन्य पार्टियों को मैसेज दिया कि कांग्रेस पार्टी कन्हैया के साथ हैं और जिन क्षेत्रों से यात्रा गुजर रही है, वहां इस बार कांग्रेस मजबूती हासिल करने की पूरी कोशिश में है। दोस्तों, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हमें नहीं भूलनी चाहिए। कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की लंबी यात्रा जिसमें दर्जों राज्य और सैकड़ों शहरों से होकर वे गुजरे, उस यात्रा का बहुत बड़ा परिणाम कांग्रेस को मिला। 2024 के चुनाव में भाजपा बहुमत से दूर हो गई, उसे सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। इसी यात्रा का प्रभाव था कि कांग्रेस को 99 सीटें मिली, लोकसभा में विपक्ष मजबूत हुआ और राहुल गांधी विपक्ष के नेता बनें।
वहीं राहुल गांधी इस बार बिहार में चल रही यात्रा में शामिल हुए हैं, तो जाहिर तौर पर यात्रा को मजबूती मिली है और इस यात्रा का प्रभाव दोगुना हो जाएगा। आज की वीडियो में राहुल गांधी के इसी प्रभाव के बारे में बात करेंगे और बताएंगे कि जिन क्षेत्रों से यह यात्रा गुजर रही है, वहां कांग्रेस के लिए कितनी उर्वर जमीन है, कितना खाद-पानी है और कितनी संभावना है कि कांग्रेस यहां बेहतर परफॉर्मकरे। हम उन सभी सीटों के बारे में सिलसिलेवार ढंग से बात करने जा रहे हैं, जहां कांग्रेस टारगेट कर रही है।
तो फिर चलिए शुरू करते हैं आज का विश्लेषण और बताते हैं आपको पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा में राहुल गांधी की एंट्री का संभावित प्रभाव।
अब चूंकि राहुल गांधी भी इस यात्रा में शामिल हो गए हैं, राजद को भी साफ मैसेज है कि कांग्रेस अपने विस्तार पर काम कर रही है, बिना इस बात की परवाह किये कि उनके सहयोगी दल क्या चाहते हैं। कन्हैया को मजबूती मिलेगा सो अलग।
अब हम आपको बहुत विस्तार से बताने जा रहे हैं कि जिन क्षेत्रों से यात्रा गुजरने वाली है, या जहां से गुजरी है, वहां कांग्रेस को क्या हासिल हो सकता है और किसे नुकसान हो सकता है। आइये देखते हैं।
चंपारण
चंपारण वह इलाका है, जहां से यह यात्रा शुरू हुई थी। यहां पश्चिमी चंपारण की 9 सीटें और पूर्वी चंपारण की 4 सीटें शामिल हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी चंपारण की 9 सीटों में से 6 BJP और 2 JDU ने जीतीं थी और 1 RJD को मिली थी। पूर्वी चंपारण की4 सीटों में से 3 BJP और 1 RJD को मिली थी। यानी कांग्रेस इन 13 में से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
इस इलाके की सबसे बड़ी समस्या पलायन है। लोग खेती करते हैं, लेकिन रोजगार के अभाव में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे राज्यों में मजदूरी के लिए जाते हैं। बाढ़ और खराब बुनियादी ढांचा भी बड़ी चुनौतियां हैं।
2023 की बिहार जाति गणना के मुताबिक यहां अति पिछड़ा वर्ग 25-38 % हैं। इसमें तेली, कहार, नोनिया जैसी जातियां प्रमुख हैं।यादव12-15% है। ये RJD का मजबूत आधार हैं।मुस्लिमयहां 15-18%। ये हाल के दिनों में RJD और JDU को समर्थन देते रहे हैं।कुर्मीयहां 3-5% हैं, इसलिए इस क्षेत्र में जदयूकू भी सीटें आती हैं। दलितचंपारण में 12-15% हैं। इसमें मुसहर और चमार प्रमुख हैं।सवर्णों की संख्या यहां 8-10%। ब्राह्मण और राजपूत BJP को वोट देते हैं।
कांग्रेस के लिए चंपारण में संभावनाएं हैं, क्योंकि यह इलाका कभी उसका गढ़ था। अगर कांग्रेस पलायन रोकने और स्थानीय रोजगार के लिए ठोस योजना पेश करे, जैसे स्किल सेंटर या छोटे उद्योग, तो EBC और दलित वोटरों में सेंध लगा सकती है। यादव और मुस्लिम वोट RJD के साथ मजबूत हैं, लेकिन अगर कांग्रेस को यहां सीटें मिलती हैं, तो जीत में तब्दील की जा सकती है। संभावना है कि चंपारण की13 में से 3-4 सीटें, जैसे नौतन, बेतिया, चनपटिया सीटें ग्रेस जीत सकती है।
बेगूसराय
आगे बढ़ते हैं। बेगूसराय, जहां स वक्त यात्रा पहुंची है और जहां राहुल गांधी शामिल हुए हैं। यहां विधानसभा की 7 सीटें हैं। 2020 में बेगूसराय की 7 सीटों में से 4 BJP, 2 RJD और 1 JDU ने जीती थी। कांग्रेस यहां भी जीरो थी। कन्हैया कुमार ने 2019 में लोकसभा चुनाव में CPI से मजबूत प्रदर्शन किया था, लेकिन हार गए। अब वे कांग्रेस में हैं, और उनकी लोकप्रियता इस इलाके में पार्टी के लिए फायदेमंद है। लेकिन बेरोजगारी और औद्योगिक पिछड़ापन यहां की बड़ी समस्याएं हैं।
बेगूसराय की जातीय संरचना मेंEBC 35-40% हैं, जिसमें कुशवाहा, धानुक, मल्लाह प्रमुख हैं।यादव12-14% हैं, RJD का मजबूत आधार है।मुस्लिम10-12% हैं, RJD और कभी-कभी लेफ्ट को वोट देते हैं। भूमिहार15-18% हैं और BJP के कोर वोटर हैं। ये सवर्ण जाति बेगूसराय में प्रभावशाली है।दलित 12-15% हैं, जिसमें पासवान और चमार शामिल हैं।कुर्मी3-5% हैं और JDU को वोट करते हैं।
कन्हैया कुमार की मौजूदगी बेगूसराय में कांग्रेस के लिए गेम-चेंजर हो सकती है। राहुल गांधी का यात्रा में लंबा वक्त बिताना दिखाता है कि पार्टी इसे गंभीरता से ले रही है। EBC और दलित वोटरों में कन्हैया की अपील काम कर सकती है, खासकर अगर वे बेरोजगारी पर जोर दें। भूमिहार वोट BJP के साथ मजबूत हैं, लेकिन युवा वर्ग में बदलाव की चाहत कांग्रेस को फायदा दे सकती है। अगर कन्हैया खुद बेगूसराय सीट से लड़ें, तो 7 में से 2-3 सीटें जीतने की संभावना है, जैसे – बेगूसराय, चेरियाबरियारपुर, मटिहानी।
अररिया
अब आते हैं अररिया और सीमांचल क्षेत्र में। अररिया जिले में 6 विधानसभा सीटें हैं: अररिया, रानीगंज, फारबिसगंज, नरपतगंज, सिकटी, और जोकीहाट। 2020 के विधानसभा चुनाव में इनमें से 3 सीटें RJD 2 BJP और 1 JDU ने जीती थीं। कांग्रेस को यहां कोई सीट नहीं मिली। पूरेसीमांचल क्षेत्र में कुल 24 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें अररिया की ये 6 सीटें भी शामिल हैं। इस इलाके की बड़ी समस्याएं हैं पलायन, बाढ़ और गरीबी। हर साल कोसी नदी की बाढ़ से फसलें बर्बाद होती हैं, और रोजगार के अभाव में लोग बाहर जाते हैं।
मुस्लिम यहां 40-50% हैं, खासकर अररिया में 42.8% हैं। ये RJD और AIMIM को समर्थन देते हैं।अति पिछड़ा वर्ग 25-30%, जिसमें मल्लाह, तेली, नोनिया जैसी जातियां शामिल हैं। ये वोट कई हिस्सों में बंटते हैं।यादव: 10-12% हैं, RJD का मजबूत आधार हैं। दलित: 10-12% हैं, जिसमें मुसहर और पासवान प्रमुख हैं। ये वोट भी बंटते हैं, लेकिन ज्यादातर RJD या BJP को जाते हैं।सवर्ण: 5-8% हैं, जैसे ब्राह्मण और राजपूत। ये BJP के साथ हैं।
अररिया में कांग्रेस के लिए चुनौती बड़ी है, क्योंकि मुस्लिम और यादव वोटरों पर RJD की मजबूत पकड़ है, और जोकीहाट जैसी सीटों पर AIMIM भी दावेदार है। लेकिन राहुल गांधी की मौजूदगी और कन्हैया की अपील ने EBC और दलित वोटरों को जोड़ने का मौका दिया है। पलायन और बाढ़ राहत जैसे मुद्दों पर अगर कांग्रेस ठोस वादे करे, तो अररिया की 6 में से 1-2 सीटें जीत सकती है। पूरे सीमांचल की 24 सीटों में से कांग्रेस 4-5 सीटों पर दावेदारी कर सकती है, खासकर किशनगंज और पूर्णिया की कुछ सीटों पर, जहां मुस्लिम वोटरों में RJD से नाराजगी का फायदा मिल सकता है। इसके लिए महागठबंधन में सीट बंटवारे में सख्ती और जमीनी संगठन को मजबूत करना जरूरी होगा।
पटना
अपने आखिरी दौर में यह यात्रा पटना पहुंचेगी। पटना और आसपास में कुल 14 विधानसभा सीटें हैं। 2020 में पटना की 14 सीटों में 8 BJP, 3 JDU, 2 RJD और 1 AIMIM ने जीती थी। कांग्रेस को यहां भी कुछ नहीं मिला था। पटना शहरी इलाका है, जहां बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी बड़ी समस्याएं हैं। राहुल गांधी ने यात्रा को प्राथमिकता दी, जो शहरी वोटरों को लुभाने की कोशिश है।
इस क्षेत्र में अति पिछड़ा वर्ग 30-35% हैं, जिसमें कुशवाहा, नोनिया, मल्लाह हैं।यादव 12-15% हैं औऱ राजद को वोट देते हैं। मुस्लिम 10-12% हैं ये भी RJD और AIMIM को समर्थन देते हैं। सवर्ण 15-20% हैं, जिसमें ब्राह्मण, राजपूत औरकायस्थ आते हैं। इनका वोट जाता है BJP को। दलित10-12% हैं, जिसमेंपासवान और चमार प्रमुख हैं।
पटना में शहरी मिडिल क्लास और युवा वोटर कांग्रेस के लिए मौका हैं। राहुल की छवि और रोजगार-शिक्षा पर फोकस सवर्ण और EBC युवाओं को आकर्षित कर सकता है। फुलवारीशरीफ और दानापुर जैसी सीटों पर मेहनत से 14 में से 2-3 सीटें जीती जा सकती हैं।
गौर करने वाली बात है कि इन चार क्षेत्रों में कांग्रेस पिछली बार जीरो रही है। कुछ भी हासिल नहीं हुआ था। अगर यहां टिकट मिलता है तो 8-12 सीटों की संभावना कांग्रेस के लिए है। जातीय समीकरण में EBC दलित और मुस्लिम को जोड़ना कांग्रेस की रणनीति हैं। लेकिन RJD की यादव-मुस्लिम पकड़, BJP का सवर्ण-EBC गठजोड़ और JDU का कुर्मी-EBC आधार कांग्रेस के लिए चुनौती है।
मेरी राजनीतिक समझ कहती है कि राहुल गांधी इस यात्रा में शामिल हुए, तो इसका अर्थ है कि कांग्रेस इन क्षेत्रों में जीत हासिल करना चाहती है। हालांकि यह किस हद तक सफल होता है, यह देखना होगा।