कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव की कवायद से क्या अडाणी पावर प्लांट के बाहर प्रदर्शन कर रहे रैयतों को उनका हक मिलेगा.
प्रदीप यादव ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की है, ये प्रयास क्या गोड्डा में पावर प्लांट के लिए जमीन देने वाले रैयतों की समस्याओं का समाधान करेगा. प्रदीप यादव ने भूख हड़ताल कर रहे रैयतों के हक में सड़क से सदन तक आवाज बुलंद की है, उनकी यह कोशिश क्या अडाणी कंपनी को स्थायी नौकरी की मांग मानने को मजबूर करेगी.
विधानसभा के बजट सत्र में प्रदीप यादव ने अडाणी पावर प्लांट की स्थापना में अनियमितताओं का सवाल उठाया था.
क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, गोड्डा के रैयतों की समस्याओं से गौतम अडाणी को अवगत कराके इसका निदान तलाशने का प्रयास करेंगे.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अडाणी ग्रुप ऑफ कंपनीज को झारखडं में औद्योगिक निवेश के लिए आमंत्रित किया है, वहीं, कांग्रेस पार्टी की मौजूदा सियासी रणनीति का मुख्य निशाना अडाणी और अंबानी का औद्योगिक घराना है, ऐसे में कहीं स्थानीय रैयत बीच में पिस तो नहीं जायेंगे.
अडाणी पावर प्लांट में स्थायी नौकरी की मांग कर रहे रैयतों के आंदोलन का भविष्य क्या होगा.
इस वीडियो में हम अडाणी पावर प्लांट को लेकर गोड्डा में जारी आंदोलन, प्रदीप यादव की भूमिका और इस विषय पर कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा की गतिविधियों में विरोधाभासों की चर्चा करेंगे.
प्रदीप यादव ने रैयतों को क्या आश्वासन दिया है!
प्रदीप यादव ने 7 जुलाई सोमवार को रांची में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की. मुलाकात के बाद बयान जारी करके प्रदीप यादव ने बताया कि उन्होंने सीएम से भूख हड़ताल पर बैठे रैयतों की गंभीर स्थिति, उनकी जायज मांगों और अडाणी पावर के खिलाफ उनके संघर्ष पर बातचीत की. सीएम ने पूरी गंभीरता से मुद्दे को सुना है और आश्वासन दिया है कि जल्द ही इस मुद्दे का समाधान निकालने की दिशा में ठोस कदम उठाएंगे.
बकौल प्रदीप यादव, मुख्यमंत्री ने कहा है कि रैयतों के हक और सम्मान की रक्षा करना हमारी सरकार की प्राथमिकता है. भरोसा दिलाया है कि किसी भी कीमत पर रैयतों के साथ अन्याय नहीं होगा.
प्रदीप यादव ने कहा कि सीएम से मुलाकात में न्याय की उम्मीद जगी है. प्रदीप यादव ने रैयतों से कहा है कि सरकार ने आपकी आवाज सुनी है, निर्णय की घड़ी पास है.
झारखंड सरकार के इस बिल का कितना होता असर
अब बड़ा सवाल है कि क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन गोड्डा में रैयतों को लेकर प्रदीप यादव की चिंता को संज्ञान में लेकर गौतम अडाणी से वार्ता करेंगे. क्या झारखंड सरकार अडाणी पावर प्लांट पर स्थानीय रैयतों को स्थायी नौकरी देने का दबाव बना सकती है.
क्या, हेमंत सरकार, गौतम अडाणी के साथ हुए एमओयू का हवाला देकर स्थानीय रैयतों को नौकरी दिला सकती है.
गौरतलब है कि झारखंड सरकार निजी कंपनियों में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार सुनिश्चित करने के इरादे से झारखंड स्टेट इंप्लायमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट इन प्राइवेट सेक्टर कंपनी एक्ट-2021 लाई थी. इस कानून के तहत राज्य में संचालित निजी कंपनियों में 40,000 रुपये तक वेतन वाले पदों पर 75 फीसदी स्थानीय युवकों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था.
इस कानून के खिलाफ झारखंड स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिएशन सहित अन्य कंपनियों ने हाईकोर्ट का रुख किया था.
दिसंबर 2024 में झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस दीपक रौशन की खंडपीठ ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद-16 का उल्लंघन बताते हुए इस पर तत्काल रोक लगा दी थी.
अडाणी ने रोजगार के मुद्दे पर एमओयू का उल्लंघन किया
तो कम से कम हेमंत सोरेन सरकार इस कानून के जरिये स्थानीय रैयतों को स्थायी नौकरी देने की मांग नहीं कर सकती है. दूसरा है अडाणी पावर प्लांट के साथ हुआ एमओयू.
प्रदीप यादव के मुताबिक इस एमओयू में कंपनी ने वादा किया था कि जिन भी रैयतों से 1 या 2 एकड़ जमीन ली गई है, उनके परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलेगी. प्रदीप यादव ने कहा कि कंपनी ने ऑन रोल नौकरी का वादा किया था और बाद में रैयतों को ऑफ रोल नियुक्ति दी गयी वह भी आउटसोर्सिंग कंपनी में.
प्रदीप यादव ने कहा कि पहले तो रैयतों को इनोव नाम की आउटसोर्सिंग कंपनी में नौकरी दी गई और अब अचानक बिना उसकी सहमति लिए रिद्धि नाम की कंपनी में ट्रांसफर कर दिया. जवाबदेही का क्या होगा.
कुछ रैयतों का कहना है कि कंपनी ने स्थायी नौकरी की मांग पर डिप्लोमा और डिग्री का उदाहरण दिया है लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि जमीन लेते समय कंपनी ने ऐसी किसी भी शर्त का उल्लेख नहीं किया था.
रैयतों की भूख हड़ताल पर कांग्रेस-झामुमो की राय अलग
झारखंड में अडाणी पावर प्लांट को लेकर दो मोर्चों पर विवाद जारी है.
एक लड़ाई स्थानीय रैयतों और कंपनी के बीच है तो दूसरी जंग झामुमो और कांग्रेस के बीच विरोधाभासों की है. झारखंड में झामुमो, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन की सरकार है. कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर नीचे विधायक प्रदीप यादव तक, तमाम नेता लगातार अडाणी और अंबानी जैसे बड़े औद्योगिक घरानों को निशाना बनाते रहे हैं.
केंद्र की मोदी सरकार पर राहुल गांधी अक्सर यह आरोप लगाते हैं कि देश की सार्वजनिक संपत्तियां, इन कंपनियो के हवाले की जा रही है.
प्रदीप यादव गोड्डा में अडाणी पावर प्लांट की स्थापना के शुरू से ही हिमायती नहीं थे. इस विषय पर उनकी चिंता भी जायज थी. मुआवजा, प्रदूपषण, विकास और दूरगामी समस्याओं पर उन्होंने तर्कसंगत सवाल उठाये थे. उनमें से कई आज सही भी प्रतीत होते हैं.
इस विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी अडाणी और अंबानी के खिलाफ मोर्चा खोला था.
पार्टी के नेताओं ने कई बार चुनावी रैलियों में कहा कि यदि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो अडाणी अंबानी का राज आ जायेगा. आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा होगा. उनके हिस्से मुनाफा और स्थानीय नागरिकों के खाते में पलायन और प्रदूषण आयेगा.
हालांकि, पिछले दिनों मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अडाणी ग्रुप ऑफ कंपनीज के गौतम अडाणी से मुलाकात की.
मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस मुलाकात की जानकारी सोशल मीडिया पर देते हुए बताया कि गौतम अडाणी और सीएम हेमंत सोरेन के बीच झारखंड में औद्योगिक निवेश की संभावनाओं पर चर्चा हुई.
सीएम हेमंत ने अडाणी को निवेश के लिए आमंत्रित किया
यदि आप नीतिगत दृष्टिकोण से समझें तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है.
झारखंड में कृषि मानसून का जुआ है. खान-खनिज हैं लेकिन वहां भी आर्थिक विकास की एक सीमा है. किसी भी प्रदेश में औद्योगिक निवेश वहां के आर्थिक विकास, राजस्व प्राप्ति और रोजगार सृजन के दृष्टिकोण से किया जाता है. ऐसे में यदि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अडाणी को औद्योगिक निवेश के लिए आमंत्रित कर रहे हैं तो गलत नहीं है लेकिन, सवाल फिर प्रदीप यादव की चिंताओं से जुड़ जाता है.
सोमवार को मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद प्रदीप यादव ने कहा कि अडाणी आखिर क्यों रहे.
सरकार को टैक्स नहीं मिलता क्योंकि पावर प्लांट स्पेशल इकोनॉमिक जोन घोषित है. स्थानीय रैयतों को स्थायी नौकरी नहीं मिली. कंपनी को यहां स्कूल खोलना था जिसमें 30 फीसदी सीटें स्थानीय रैयतों के बच्चों के लिए आरक्षित होती. सीएसआर के तहत उनको फ्री एजुकेशन मिलना चाहिए था. गोड्डा में अस्पताल और एंबुलेंस की व्यवस्था अडाणी को करना चाहिए था. इन्हीं शर्तों पर तो पर्यावरणीय क्लियरेंस मिला था. प्लांट शुरू हो गया. बांग्लादेश को बिजली मिल रही है और मुनाफा कंपनी कमा रही है लेकिन झारखंड और यहां के नागरिकों को क्या मिला?
इसमें जाहिर तौर पर कांग्रेस पार्टी के स्टैंड और झामुमो की रणनीति में साफ विरोधाभास दिखता है.
गोड्डा में रैयतों के आंदोलन पर श्रम-रोजगार मंत्री की चुप्पी
मुख्यमंत्री ने अडाणी से मुलाकात करके औद्योगिक निवेश के लिए आमंत्रित किया है.
प्रदीप यादव ने मुख्यमंत्री से मिलकर अडाणी द्वारा किए गए विश्वासघात का मुद्दा उठाया है. अब ये मुख्यमंत्री के लिए परीक्षा की घड़ी है कि वे कैसे गोड्डा में स्थानीय रैयतों की समस्याएं सुलझाकर ये सुनिश्चित करते हैं कि यदि भविष्य में अडाणी ने कहीं और कोई उद्योग लगाया तो स्थानीय रैयतों की हकमारी नहीं होगी. झारखंड का अहित नहीं होगा.
ये सवाल इसलिए भी क्योंकि, अभी तक झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से अडाणी पावर प्लांट के खिलाफ जारी स्थानीय रैयतों की भूख हड़ताल पर कोई बयान सामने नहीं आया है. आरजेडी भी इस गठबंधन का हिस्सा है.
गोड्डा से आरजेडी के विधायक संजय यादव, हेमंत कैबिनेट में श्रम, रोजगार और उद्योग मंत्री हैं. उनकी तरफ से भी गोड्डा के स्थानीय रैयतों के आंदोलन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
हालांकि, प्रदीप यादव ने कहा है कि वे मंत्रीजी से बात करके उनसे भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुजारिश करेंगे.
कांग्रेस शासित राज्यों में भी हैं अडाणी के उद्योग और प्लांट
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गौतम अडाणी की मुलाकात का सहयोगी कांग्रेस ने भी विरोध नहीं किया है.
कोई भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं की है.
कांग्रेस का कहना है कि हमारा अडाणी के प्रति कोई व्यक्तिगत विरोध नहीं है. हम निवेश के खिलाफ भी नहीं है. हमारी चिंता केवल इतनी है कि उद्योग की स्थापना में पर्यावरण से लेकर रोजगार तक, जितने भी मानक हैं, उनका उल्लंघन नहीं होना चाहिए. और ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेस शासित राज्यों में अडाणी ने प्लांट नहीं लगाया. राजस्थान में हसदेव जंगल को काटकर कोल माइनिंग की मंजूरी अडाणी को कांग्रेस के भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में ही मिली थी.
क्या अडाणी से लड़कर स्थायी नौकरी दिलाएंगे सीएम हेमंत
आखिर में बड़ा सवाल वही रह जाता है कि झारखंड में निजी कंपनियों में 75 फीसदी स्थानीय युवाओं को नौकरी वाला कानून कोर्ट से खारिज होने के बाद मुख्यमंत्री के पास क्या विकल्प हैं.
वह कैसे अडाणी पर स्थानीय रैयतों को स्थायी नौकरी देने का दबाव बना सकते हैं.
वह कैसे गौतम अडाणी को निवेश के लिए आमंत्रित करने के साथ-साथ गोड्डा में स्थानीय रैयतों के साथ हो रही ज्यादती का मुद्दा उठा सकते हैं. वे कैसे एक और आर्थिक विकास और दूसरी ओर गठबंधन धर्म निभाने की नीति को साध सकते हैं. कैसे वह प्रदीप यादव और गौतम अडाणी के बीच पिछले 10 वर्षों से जारी खींचतान का सकारात्मक हल निकाल सकते हैं.
कहीं, गोड्डा पावर प्लांट में स्थानीय रैयतों को नौकरी का मुद्दा और दूसरी और औद्योगिक निवेश के लिए सीएम की कवायद, गठबंधन में दरार की वजह तो नहीं बन जायेगी. जो भी हो.
इस संघर्ष में स्थानीय रैयतों की आवाज सुनी जानी चाहिए. प्रदीप यादव कवायद में लगे हैं. सीएम हेमंत ने आश्वासन दिया है. उम्मीद है कि निर्णय रैयतों के हक में आयेगा.
आखिर में मायने यही रखता है कि झारखंड और झारखंडियों की हकमारी नहीं होनी चाहिये.