टीबी

ऐसे घरों में रहने वाले लोगों को होता है टीबी का जोखिम, जानिए झारखंड में कितने मरीज हैं!

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किन लोगों को टीबी का खतरा ज्यादा है.

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज, साउथ एशिया इंफैंट फीडिंग नेटवर्क सहित अन्य संस्थानों द्वारा की गयी ताजा स्टडी के मुताबिक पक्के मकानों में रहने वालों की तुलना में कच्चे घरों में रह रहे लोगों को टीबी का खतरा ज्यादा होता है.

रसोई मे हाईजीन का खयाल न रखना, अशुद्ध इंधन इस्तेमाल करना और भीड़भाड़ वाले घरों में रहने से टीबी का जोखिम बढ़ता है.

बीएमसी इंफेक्शियस डिजिज जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे और पांचवें दौर के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. यह आंकड़े 2015-16 और 2019-21 के हैं.

इस स्टडी के मुताबिक 6-17 वर्ष की आयुवर्ग के बच्चों और युवा किशोरों वाले घरों में टीबी का प्रसार कम हुआ है. यह पहले 1.7 फीसदी था जो अब 1.2 फीसदी रह गया है.

बताया जा रहा है कि टीबी की बीमारी में आर्थिक असमानता एक बड़ा कारक है. साधन संपन्न लोगों की तुलना में गरीब लोग ज्यादा प्रभावित होते हैं.

टीबी की बीमारी से ऐसे लड़ रहा है झारखंड
गौरतलब है कि झारखंड भी टीबी की बीमारी से लड़ रहा है.

राज्य में टीबी के मरीजों को चिन्हित कर उनका इलाज कराया जा रहा है. जनवरी 2024 से लेकर जनवरी 2025 तक झारखंड में टीबी के कुल 61,843 मरीज चिन्हित किए गये हैं. इनमें 18,448 मरीज निजी अस्पतालों में अपना इलाज करा रहे हैं. सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर 43,395 मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

रांची में सर्वाधिक 7,423 टीबी के मरीज हैं.

बताया जाता है कि टीबी अब भी दुनिया के सबसे घातक बीमारियों में शुमार है. बच्चों पर इसका गंभीर असर होता है.

केवल वर्ष 2022 में ही टीबी की वजह से दुनियाभर में 13 लाख लोगों की मौत हो गयी है. वहीं, 12 लाख से ज्यादा लोग बीमार पड़े. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में टीबी के मरीजों में 26 फीसदी अकेले भारत से हैं.

बच्चों को टीबी की बीमारी से सर्वाधिक खतरा
भारत में टीबी के मरीजों में 0-14 वर्ष के आयु वर्ग के 3.33 लाख बच्चे शामिल हैं. झारखंड में टीबी के 61,843 मरीज हैं.

प्रदूषण, धूल, भीड़भाड़, सीलन भरे कमरे और धुयें से भरे औद्योगिक प्रतिष्ठानों में काम करने की वजह से लोग टीबी की बीमारी का शिकार हो जाते हैं.

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