बिहार में AIMIM ने बिगाड़ा RJD-कांग्रेस का खेल, 32 सीटों पर तेजस्वी यादव के खिलाफ देंगे प्रत्याशी

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Report – Vivek Aryan

बिहार चुनाव में असदउद्दीन ओवैसी की एंट्री कांग्रेस और राजद का सारा खेल बिगाड़ सकती है। ओवैसी पिछले कुछ सालों से बिहार में एक्टिव हैं और इस बार भी चुनाव लड़ेंगे, यह तय है। लड़ेंगे का अर्थ तो भली भांति समझते हैं।

किसे फायदा होगा, किसे नुकसान, यह भी आप अच्छे से जानते हैं। इसलिए हम बहुत घुमाकर कहने के बजाय सीधे पॉइंट पर आएंगे।

AIMIM के बिहार में एंट्री का सीधा अर्थ है मुस्लिम वोटरों में बिखराव, और अगर आपने हमारा पिछला वीडियो दिखा है, तो आप अच्छे से समझ रहे हैं, कि मुस्लिम वोटरों के बिखराव का सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा कांग्रेस-राजद गठबंधन को।

पिछली वीडियो में हमने आपको राज्य में मुस्लिम आबादी, 32 सीटों पर उनका प्रभाव और उनसे संबंधित अन्य सियासी समीकरण के बारे में बताया था। आज की इस लेख में उससे आगे की कहानी समझते हैं।

राज्य के मुसलमानों का लगभग 65 से 70 फीसदी वोट राजद को जाता है और 15 फीसदी वोट कांग्रेस को। निश्चित तौर पर ये दोनों ही मुस्लिमों वोटरों के लिए पहली और दूसरी प्राथमिकता में आते हैं। लेकिन इस बार AIMIM के होने से मुस्लिम वोटरों का जबरदस्त बिखराव होगा। यानी जो बात सालों से कही जाती है, वही बिहार में देखने को मिल सकता है। वो ये कि ओवैसी के होने से भाजपा को फायदा होता है।

तो फिर क्यों न हम बिहार के संदर्भ में यह देख ही लें कि ओवैसी के होने से बिहार में क्या बदल जाएगा। कितनी सीटों पर वे चुनाव लड़ेंगे, कितना वोट प्रभावित करेंगे और महागठबंधन को कितना नुकसान पहुंचाएंगे।

तो फिर चलिए शुरू करते हैं आज का विश्लेषण और बताते हैं आपको कि AIMIM की बिहार में एंट्री के बाद कैसे बदलेगा सियासी समीकरण।

2015 में पहली बार ओवैसी ने लड़ा था चुनाव

ओवैसी की पार्टी ने बिहार में पहली बार 2015 के विधानसभा चुनाव में कदम रखा था। उस वक्त AIMIM ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन कोई सीट जीत नहीं पाई। उनका वोट शेयर 0.5% रहा। लेकिन असली धमाका 2020 में हुआ। AIMIM ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उनमें से5 परजीत हासिल कीं।

ये सीटें थीं- अमौर, कोचाधामन, जोकीहाट, बायसी, और बहादुरगंज। ये सभी सीमांचल की सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 40-60% तक है। इस साल उनका वोट शेयर बढ़कर 1.24% हो गया, जो किसी भी छोटी पार्टी के लिए बहुत बड़ी कामयाबी है।

दिलचस्प है कि ओवैसी की एंट्री के पहले ये सभी सीटें महागठबंधन के खाते में जाया करती थी। 2020 में भी इन सीटों पर दूसरे नंबर पर राजद और कांग्रेस के ही उम्मीदवार थे। सीधे शब्दों में कहें तो, अगर यहां AIMIM नहीं होती, तो निश्चत तौर पर यहां महागठबंधन के उम्मीदवार जीतते। लेकिन ओवैसी के होने से महागठबंधन को 5 सीटों का नुकसान हुआ।

2020 के चुनाव में ओवैसी को मिले थे इतने वोट

2020 में AIMIM को कुल 5,23,279 वोट मिले। सबसे ज्यादा वोट कोचाधामन में 80,000 और बहादुरगंज में 70,000 आए थे। इन सीटों पर RJD और कांग्रेस के वोट बंटे, जिसका सीधा फायदा NDA को हुआ। आपको हम उदाहरण देते हैं। बहादुरगंज में कांग्रेस के तौसीफ आलम, जो 16 साल से विधायक थे, उन्हें AIMIM के अंजारनईमी ने हरा दिया। वोट का अंतर सुनकर आप चौंक जाएंगे। अंजारनईमी को47% वोट मिले, जबकि कांग्रेस के तौसीफसिर्फ 10% वोट ला पाए।

हालांकि इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि बाद में इन 5 में से 4 विधायक राजद में चले गए और ओवैसी की पार्टी सिर्फ 1 सीट पर सिमट गई, यह सीट थी अमौर की, जहां से अभी अख्तरुल ईमान विधायक हैं।

भले ही ओवैसी के विधायकों ने पार्टी बदल ली हो, लेकिन 5 सीटों पर जीत से पार्टी को इतना कॉन्फिडेंस मिला कि 2024 के लोकसभा चुनाव में AIMIM ने 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। य सीटें थीं – किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया, दरभंगा, भागलपुर, काराकाट, बक्सर, गया, मुजफ्फरपुरऔर उजियारपुर। हालांकि वे एक भी सीट जीत नहीं पाए, लेकिन उन्हें 2.5% का वोट शेयर यानी लगभग 10 लाख वोट हासिल हुए।

ओवैसी 30 सीटों पर लड़ सकती है चुनाव!

हम यह सबकुछ आपको क्यों बता रहे हैं? इसलिए कि आप समझ सकें कि AIMIM ने कैसे पिछले कुछ सालों में अपने पैर बिहार में जमाए हैं और वे कितने प्रभावी हो सकते हैं। अभी तो सीटों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस बार AIMIM और अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी, कम से कम 30 सीटों पर उम्मीदवारों की तलाश हो रही है।

आप समझदार हैं, खुद ही सोचिए कि ये 30 सीटें कौन सी होंगी?  निश्चित तौर पर वो सीटें होंगी, जहां मुस्लिम आबादी अधिक है। वो सीटें, जहां ओवैसी के नहीं होने से महागठबंधन का जीतना तय था।

मैं यह नहीं कह रहा कि ओवैसी की पार्टी इन 30 में से 30 सीटें जीत जाएंगी। 30 न भी जीते, लेकिन अगर पिछली बार की तरह 5-7 सीटें जीते और 15 सीटों को प्रभावित करे, तो भी महागठबंधन के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी। क्योंकि बिहार का इतिहास रहा है कि यहां दोनों खेमों में हार-जीत का मार्जिन बहुत अधिक नहीं रहता है। 10-12 सीटों से आगे-पीछे होते हैं। ऐसे में अगर 15 सीटों पर ओवैसी परिणाम को प्रभावित करते हैं, तो कांग्रेस और राजद के लिए यह सबसे बड़ी खतरे की घंटी है।

बिहार में 2.3 करोड़ है मुस्लमानों की आबादी

2023 की जाति जनगणना के मुताबिक, बिहार की 13 करोड़ आबादी में मुस्लिम 2.3 करोड़ हैं। यह संख्या राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 32 पर निर्णायक प्रभाव रखती है। इनमें सीमांचल की कुछ सीटों पर तो 40 से 60 फीसदी मुस्लिम आबादी हैं। जैसे – किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, और कटिहार—खास। दरभंगा, मधुबनी, सिवान औरगोपालगंजमें भी 15 से 30% मुस्लिम वोटर हैं।

इन सीटों का हम संक्षिप्त में आकलन करते हैं। किशनगंज क्षेत्र की 4 सीटें – बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर, और ठाकुरगंज। यहां मुस्लिम आबादी 60-68% है। 2020 में AIMIM ने इनमें से3 सीटें जीती थीं। इस बार भी वे 2-3 सीटें जीत सकते हैं। इसमें कोई दो-राय नहीं है। जोकीहाट, सिकटी और बायसी में मुस्लिम आबादी 40-50%। जोकीहाट और बायसी में उनकी जीत की बहुत संभावना है।

दरभंगा ग्रामीण और जाले में भी20-25% मुस्लिम वोटर। ये सीटें उतनी आसान भले ही न हो, लेकिन अगर यावाओं का साथ मिला, तो इनमें से कोई एक सीट निकल सकती है।

सिवान की बात करें। यहां 18% मुस्लिम आबादी है। शहाबुद्दीन की विरासत आब लगभग खत्म हो चुकी है। AIMIM की इस सीट पर नजर है। हालांकि राजद यहाँ अभी भी मजबूत है, लेकिन AIMIM यहां राजद को परेशान कर सकती है।

इनमें से बायसी, जोकीहाट, सिवान, ठाकुरगंज, दरभंगा ग्रामीण और फुलवारीशरीफ अभी राजद के पास हैं।जो इस बार प्रभावित होंगे। इसी तरह बहादुरगंज, कोचाधामन, जाले और मधुबनी अभीकांग्रेस के पास हैं। अगर कांग्रेस अपना मुस्लिम आधार मजबूत नहीं कर पाईं, तो उन्हें यहाँ दिक्कत हो सकती है।

इस बार 12 से 15 लाख वोट ला सकती है ओवैसी!

2020 में 1.24% और 2024 में 2.5% वोट शेयर AIMIM के पास था। इस आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार 3-4% यानी 12 से 15 लाख वोट AIMIM ला सकती है। अगर वे 30 से अधिकसीटों पर चुनाव लड़ते हैं, तो यह संख्या और भी बढ़ जाएगी। क्योंकि आप यह समझिए, कि जो मुस्लिम वोटर राजद और कांग्रेस से किसी भी कारण नाराज हैं, वे ओवैसी की तरफ जरूर जाएंगे।

AIMIM क्या BJP की ‘B’ टीम है?

क्या ओवैसी वाकई BJP की B टीम हैं?यह आरोप ओवैसी पर लंबे वक्त से लगता रहा है। 2020 में सीमांचल की 5 सीटों पर AIMIM की जीत से NDA को अप्रत्यक्ष मदद मिली, क्योंकि महागठबंधन 6 सिर्फ सीटों से बहुमत से चूक गया था। अगर ये पांच सीटें महागठबंधन के खाते में आती, तो शायद स्थितियां कुछ और हो सकती थीं। लेकिन ओवैसी इसे खारिज करते हैं।

उनका तर्क है कि वे एक स्वतंत्र पार्टी हैं और हर समुदाय की तरह मुस्लिमों को भी अपनी आवाज चुनने का हक है। बिल्कुल सही बात है, उन्हें चुनाव लड़ने का अधिकार है और वे लड़ रहे हैं। उनके लड़ने से किसी को फायदा और किसी को नुकसान हो सकता है, यह जिम्मेवारी उनकी नहीं है। हकीकत यह है कि ओवैसी का मकसद अपनी पार्टी का विस्तार करना है। और इसलिए ही वे किसी से गठबंधन करने के बजाय स्वतंत्र रूप से लड़ रहे हैं।

जो भी हो, लेकिन एक बात तो तय है कि ओवैसी के आने से महागठबंधन को भारी नुकसान होगा। इस बार फिर से बहुत कम मार्जिन से सरकार बनने की उम्मीद है।

जैसा पिछली बार सिर्फ 6 सीटों से राजद और कांग्रेस चूक गई थीं, इस बार भी कुछ वैसा ही होकता है। ऐसे में अगर ओवैसी फिर से 5 या 6 सीटें ले आते हैं, तो तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने का सपना फिर से अधूरा रह जाएगा।

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