झारखंड में एनआरसी लागू करने की बाबूलाल मरांडी की मांग पर ग्रामीण विकास मंत्री दीपिका पांडेय सिंह ने पलटवार किया है. दीपिका पांडेय सिंह ने कहा कि भाजपा के पास सांप्रदायिक मुद्दों के अलावा और कुछ नहीं बचा है. यदि एनआरसी ही लागू करना है तो शुरुआत असम से क्यों नहीं करते जहां सबसे ज्यादा घुसपैठ की खबरें आती है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा सबसे ज्यादा एनआरसी की बात करते हैं तो इसे पहले असम में लागू किया जाना चाहिए. मंत्री ने कहा कि भाजपा लोगों के बीच लड़ाई लगाकर किसी भी प्रकार से सत्ता में आना चाहती है. उनके पास सत्ता पाने के लिए केवल सांप्रदायिक मुद्दे ही होते हैं. भाजपा को कुछ नया कोशिश करना चाहिए ताकि जनता का विश्वास जीत सके. सांप्रदायिकता से कुछ हासिल नहीं होगा.
एनआरसी भाजपा के पास सांप्रदायिक मुद्दों के अलावा कुछ बचा नहीं है। असम में क्यों नहीं लागू करा ले रहे हैं। सबसे ज़्यादा बात हेमंत विश्व शर्मा करते रहे हैं। वहां क्यों नहीं कर ले रहे। कहीं भी किसी भी प्रकार से सत्ता में आना या फिर लोगों के बीच लड़ाई लगाना, भाजपा को इन सब में महारत… pic.twitter.com/x3WkKuiHcr
— Dipika Pandey Singh (@DipikaPS) March 19, 2025
बाबूलाल मरांडी ने सदन में क्या मांग की थी!
गौरतलब है कि मंगलवार को सदन में बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि झारखंड में आदिवासियों की घटती आबादी चिंता का विषय है. 1951 से 2011 के बीच जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि आदिवासियों की आबादी घटी है और मुस्लिम आबादी में वृद्धि हो रही है. इससे परिसीमन के बाद आदिवासी आरक्षित विधानसभा और लोकसभा सीटें घट जाएगी. सरकारी नौकरियों में भी आदिवासियों के हितों की अनदेखी होगी. बाबूलाल मरांडी ने कहा कि हम हेमंत सोरेन सरकार से मांग करते हैं कि वह राज्य में एनआरसी लागू करने में हमारी मदद करे ताकि हम जान सकें कि कितने लोग बाहर से आए हैं. बता दें कि झारखंड में सत्तारुढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पहले ही राज्य में एनआरसी और यूसीसी लागू नहीं करने का संकल्प पारित कर चुका है.
बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा गरमाने लगा है
झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा फिर गरमाने लगा है. गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे ने 11 मार्च को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाते हुए अलग संताल परगना राज्य के गठन की संभावना जताई थी. बाद में उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार से संताल परगना में डेमोग्राफी का बदलाव हुआ है. जिस तरह से झारखंड में आदिवासी आबादी बढ़ी है, किसी दिन इसे बांग्लादेश में मिलाने की मांग उठने लगेगी.