मणिपुर में हो रही हिंसा के पीछे का पूरा कारण जान लीजिए…

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मणिपुर में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. वहां के समुदायों में भड़की आग की वजह से अब तक कुल 52 लोग अपनी जान गवां चुके हैं. हालिया घटनाओं की वजह से कुल 9000 लोगों के विस्थापन की भी खबर है. सरकार ने दंगों को देखते हुए पुलिस को सख्त आदेश दिया है कि बेहद विषम परिस्थिति में दंगा करने वाले लोगों को देखते ही गोली मार दिया जाए. स्थिति यह है कि मणिपुर की भाजपा सरकार मौत के आकड़े को अब तक बता पाने की स्थिति में नहीं है.

इस मामले पर राज्य की भाजपा सरकार, पुलिस प्रशासन औऱ एक समुदाय को जनजातीय सूची में शामिल करने की मांग और कोर्ट के आदेशों पर अब लोग लगातार सवाल उठा रहे हैं. मणिपुर में किन वजहों से बीते कुछ दिनों में अब तक 52 लोगों की जाने गई. अब वहां आग की तरह भड़क चुके दंगे की वर्तमान स्थिति क्या है. सरकार ने दंगे को काबू करने के लिए क्या नए फरमान जारी किए है. क्या है मणिपुर की हाई कोर्ट का वह आदेश जिसकी वजह से पूरा मणिपुर ही दंगों की चपेट में आ गया. इन सब पर आज इस रिपोर्ट में कायदे से बात होगी.

हाई कोर्ट के आदेश के बाद भड़का दंगा

बीते 2 मई को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मणिपुर के मैतेई समुदाय को जनजातीय सूची में शामिल करने का निर्देश देती है. मणिपुर हाई कोर्ट, राज्य सरकार को दिए अपने निर्देश में कहती है कि राज्य सरकार 10 साल पुरानी उस सिफारिश को लागू करे, जिसमें मणिपुर के गैर-जनजातीय समुदाय मैतेई को जनजातीय सूची में शामिल करने की सिफारिश की गई थी. असल में मणिपुर के 10 प्रतिशत भूभाग पर ग़ैर-जनजाति मैतेई समुदाय का दबदबा रहा है. मणिपुर की कुल आबादी में मैतेई समुदाय की हिस्सेदारी भी 64 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है. मणिपुर के कुल 60 विधायकों में 40 विधायक मैतेई समुदाय से ही आते हैं. ऐसे में जब हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को वहां की मैतेई समुदाय को जनजातीय सूची में शामिल करने का निर्देश दिया तो जनजातीय सूची में पहले से शामिल 33 समुदाय बूरी तरह भड़क गए.

मैतेई समुदाय को जनजातीय सुची में शामिल करने की मांग

मैतेई समुदाय के खिलाफ विरोध करने वाले अन्य जनजातीय समुदायों का तर्क है, मैतेई समुदाय जनसंख्या में कही अधिक है. इसके साथ ही राज्य में उनकी सियासी वर्चस्वता भी कायम है. आज मणिपुर के 60 विधायकों में 40 विधायक भी इसी मैतेई समुदाय से आते हैं. इसके बावजूद अगर उन्हें जनजातीय सूची में शामिल किया जाता है तो अन्य जनजातीय लोगों के लिए नौकरियों के अवसर खत्म हो जाएंगे औऱ पहाड़ों पर जमीन खरीदने की छूट भी मिल जाएगी. जिससे अब तक जनजातीय समुदायों के शामिल लोग औऱ हाशीय पर चले जाएंगे. ये तो था मणिपुर के उन जनजातीय समुदायों का तर्क जो मैतेई समुदाय को जनजातीय सूची में शामिल करने के हाई कोर्ट के निर्देश के खिलाफ थे.

मैतेई समुदाय की मांगों के खिलाफ जनजातीय समुदायों का तर्क  

अब आपको मैतेई समुदायों का भी तर्क बताते हैं जिनका मानना है कि उन्हें जनजातीय समुदाय का दर्जा हर हाल में मिलना चाहिए. मणिपुर में एक समिति है जो अन्य जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल कराने की मांग वर्षों से करती रही है. इस समिती का नाम है अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM). इसी समिति के नेतृत्व में मैतेई समुदाय वर्ष 2012 से ही खुद को जनजातीय सूची में शामिल कराने की मांग कर रहा है. समिति पिछले कई वर्षों से अपनी संस्कृति, भाषा और पहचान को संरक्षित करने के लिए संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने की मांग सरकार व न्यायालय से करता आ रहा है. मैतेई समुदायों के लोगों का तर्क है कि 1949 में मणिपुर के भारत में विलय से पहले उन्हें एक जनजाति के रूप में मान्यता मिली हुई थी, लेकिन भारत में विलय के बाद से ही उनकी पहचान समाप्त हो गई. उनका कहना है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा छीन लिए जाने के कारण मैतेई समुदाय बिना किसी संवैधानिक संरक्षण के खुद को हाशिए पर महसूस करता है.

अनुसूचित जनजाति मांग समिति की मांग 

जनजाति समुदाय का दर्जा प्राप्त प्राप्त करने के लिए बीते कई वर्षो से लगातार संघर्ष कर रही अनुसूचित जनजाति मांग समिति STDCM का कहना है कि मैतेई/मीतेई धीरे-धीरे अपनी पुश्तैनी जमीन पर ही हाशिए पर आ गए हैं. अपनी गिरती जनसंख्या का हवाला देते हुए समिति कहती है कि मैतेई की जनसंख्या, जो वर्ष 1951 में मणिपुर की कुल जनसंख्या का 59% थी, अब 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार घटकर 44% रह गई है. उनका मानना है कि ST का दर्जा देने से उनकी पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने में मदद मिलेगी और बाहरी लोगों से उनकी रक्षा भी होगी.

मणिपुर में चल रहे दंगे में दो पक्षों की कहानी व उनका तर्क हमने आपके सामने रख दिया है. इस बीच सरकार ने भी दोनों पक्षों को शांति बनाए रखने की अपील की है. साथ ही देश के गृह मंत्री अमित शाह खुद मणिपुर में चल रहे घटनाक्रमों पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं. राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह भी लगातार प्रशासन से हर अपडेट ले रहे हैं. मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने राज्य में शांति व्यवस्था कायम करने के लिए पुलिस को बेहद विषम परिस्थिति में दंगा करने वाले लोगों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए हैं. बाकि दंगों में अब तक मरने वालों का कोई आधारिक आंकड़ा सरकार द्वारा साझा नहीं किया गया है. उम्मीद जताई जा रही है कि मणिपुर में चले रहे विवाद को खत्म करने के लिए जल्द ही सरकार कोई कड़ी निर्णय लेगी.

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