वन नेशन-वन इलेक्शन बिल को झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने आरएसएस की साजिश बताया है. उन्होंने कहा कि वन नेशन-वन इलेक्शन मनुस्मृति का विचार है.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने इस बिल को जातीय और सत्ता आधारित श्रेष्ठता के विचार का नतीजा बताते हुये भाजपा की सहयोगी पार्टियों को एनडीए से अलग हो जाने को कहा है.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि एक राष्ट्र-एक चुनाव की भाजपा की अवधारणा दरअसल, देश में राज्यों के साथ-साथ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की ताकत को खत्म करने की साजिश है. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि हमारी टीएमसी, डीएमके, आरजेडी, टीडीपी, लोजपा और जदयू सहित अन्य सभी क्षेत्रीय पार्टियों से अपील है कि संसद में वन नेशन-वन इलेक्शन बिल के खिलाफ एकजुट हों.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने क्यों लिया बाबा साहेब का नाम
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट से एक काला कानून पारित हो गया.
यह काला कानून वन नेशन-वन इलेक्शन है.
उन्होंने कहा कि 26 जनवरी 1950 को जब हमने संविधान को आत्मसात किया तब बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने संबोधन के आखिर में कहा था कि मुझे आशंका है कि कहीं हमारा देश सामाजिक लोकतंत्र को खोकर अधिनायकवादी न बन जाये. कहीं हमारा देश तानाशाही की चपेट में न आ जाये.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि आज जब हम संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तब हमारे कानों में बाबा साहेब के आशंका भरे शब्द गूंजते हैं.
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि संविधान में संशोधन के लिए संसद के दो तिहाई और राज्य विधानसभाओं का 75 फीसदी समर्थन जरूरी होता है लेकिन मोदी कैबिनेट से पास वन नेशन-वन इलेक्शन के प्रस्ताव देखा तो इसमें 50 फीसदी समर्थन की जरूरत भी नहीं होगी.
उन्होंने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताया.
झामुमो ने बताया क्षेत्रीय पार्टियों को खत्म करने की साजिश
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि अगले साल दिल्ली और बिहार में चुनाव होने वाले है. कुछ राज्यों में 2027 और 2028 में भी चुनाव होंगे तो क्या उनका कार्यकाल 2 या 1 साल का होगा. क्या बाकी समय पर राष्ट्रपति शासन लगाया जायेगा. क्या इससे संघीय ढांचे को खतरा नहीं है.
जब संविधान में स्पष्ट किया गया है कि कुछ नियम राज्य बनाएंगे. कुछ कायदे राज्य तय करेंगे. कुछ और जरूरी नियम राज्य औऱ केंद्र मिलकर बनाएंगे तो फिर केंद्र की मोदी सरकार इस व्यवस्था पर आघात क्यों कर रही है.
उन्होंने कहा कि यदि राज्यों के चुनाव में ऐसी अव्यवस्था उत्पन्न कर दी जायेगी तो फिर इसकी क्या गारंटी है कि वहां भाजपा जोड़-तोड़ की सरकार नहीं बनायेगी.
उन्होंने कहा कि हम जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने दमनकारी भाजपा को विभिन्न राज्यों में रोका है. झारखंड में झामुमो ने रोका है. बंगाल में टीएमसी ने रोका है. ओडिशा में बीजद रोकती आयी है. कहीं डीएमके तो कहीं आम आदमी पार्टी ने रोका है. लेकिन, भाजपा वन नेशन-वन इलेक्शन के जरिये क्षेत्रीय दलों की शक्तियों को तोड़ देगी.
उदाहरण कई हैं.
इन्होंने महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ पार्टी को तोड़कर सरकार बना ली. मध्य प्रदेश में भी यही किया. महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी को तोड़कर खा गये.
उन्होंने कहा कि 2015 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होंगे. भाजपा और केंद्र सरकार का प्रवाह इसी के साथ आगे बढ़ रहा है. हमने इसी प्रवाह को झारखंड में रोका है.
आज जरूरत है कि जहां भी लोकतंत्र के पहरेदार हैं वह सभी एकत्रित हों. संसद में बिल का विरोध करें. बिल के विरुद्ध में सभी क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट होना चाहिए.
झामुमो नेता ने कहा कि हम भाजपा की सहयोगी पार्टियों मसलन टीडीपी, लोजपा, अपना दल और जेडीयू से भी अपील करना चाहेंगे कि वे भाजपा से खतरा भांपकर खुद को उनसे अलग कर लें.
वन नेशन-वन इलेक्शन बिल का लाया जाना चिंता का विषय है.
वन नेशन-वन इलेक्शन पर आम सहमति चाहती है भाजपा
गौरतलब है कि गुरुवार को केंद्रीय कैबिनेट से वन नेशन-वन इलेक्शन बिल का प्रस्ताव पारित हुआ है.
अगले हफ्ते इसे लोकसभा में पेश किया जा सकता है.
मोदी सरकार ने इस बिल के प्रस्ताव में कहा है कि इसे 50 फीसदी राज्यों की सहमति ही जरूरी होगी.
देश में वन नेशन-वन इलेक्शन की संभावना तलाशने के लिए 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय कमिटी बनाई गयी थी. कमिटी ने काफी रिसर्च किया. वन नेशन-वन इलेक्शन की प्रणाली को समझने के लिए अलग-अलग देशों की चुनाव प्रणाली का अध्ययन किया और फिर 14 मार्च 2024 को रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी.
कमिटी ने देश में एक साथ ही लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव 100 दिन की समयावधि में कराये जाने की सिफारिश की है.
इसी सिफारिश के आधार पर बिल का प्रारुप तय किया गया है. मोदी सरकार इस पर सर्वदलीय सहमति बनाना चाहती है.
इसलिए, इसे ज्वॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी के पास भेजा जायेगा. देखना है कि बिल पेश होने पर दलों का रूख क्या होता है.