इस समय संपूर्ण देश में इस बात पर बहस छिड़ी हुई है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नए संसद भवन का उद्घाटन संविधान के प्रावधानों और परंपराओं के अनुकूल है या नहीं? सबसे पहली बात यह है कि संसद भवन अकेले लोकसभा का नहीं है. संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि संसद तीन भागों से मिलकर बनती है- पहला राष्ट्रपति, दूसरा राज्यसभा और तीसरा लोकसभा. संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का निमंत्रण लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रधानमंत्री को दिया और उन्होंने उसे स्वीकार किया. ये दोनों बातें किसी प्रकार से उचित नहीं हैं.
हमने ब्रिटेन की संसदीय परंपरा को अपनाया है जिसमें हमने राष्ट्रपति को वे ही अधिकार दिए हैं जो ब्रिटेन के राजा को प्राप्त हैं. फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को First among equals माना जाता है. हमने भी अपने प्रधानमंत्री को First among equals माना है अर्थात बराबरी वाले व्यक्तियों में पहला. इस तरह प्रधानमंत्री द्वारा संसद भवन का उद्घाटन किसी तरह से उचित नहीं लगता. हमारे देश में जितने भी रस्मी समारोह (ceremonial Functions) होते हैं उन सब में राष्ट्रपति ही मुख्य अतिथि होते हैं.
कुछ लोग यह तर्क दे रहे हैं कि चूंकि राष्ट्रपति एक आदिवासी महिला हैं इसलिए उन्हें इस गरिमामय कार्यक्रम से दूर रखा गया है, यह तर्क उचित नहीं है. यदि राष्ट्रपति किसी भी जाति या वर्ग का होता और यदि उसके हाथों से संसद भवन का उद्घाटन नहीं करवाया जाता तो वह भी उतना ही गलत होता.
बात इतनी ही नहीं है. मोदी जी संसद भवन का उद्घाटन करके अमर होना चाहते हैं. राष्ट्रपति भवन और पुराने संसद भवन की चर्चा करते हुए मैंने तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. शंकरदयाल शर्मा से जानना चाहा था कि अंग्रेजों ने इन भवनों को इतना मजबूत क्यों बनवाया था कि ये सैकड़ों साल तक कायम रहते.
नए भवन की आवश्यकता के पक्ष में यह तर्क दिया जा रहा है कि जब कभी दोनों सदनों की सदस्य संख्या बढ़ेगी तो पुराना भवन सभी सदस्यों के बैठने के लिए पर्याप्त न होता. यहां मैं इस बात का उल्लेख करना चाहूंगा कि ब्रिटेन का संसद भवन सैकड़ों साल पुराना है. इस दरम्यान वहां के दोनों सदनों के सदस्यों की संख्या बढ़ती गई परंतु वहां नया भवन की जरूरत महसूस नहीं की गई. यदि किसी दिन हाऊस ऑफ कामन्स के सभी सदस्य आ जाते हैं तो उनमें से अनेकों को फर्श पर बैठना पड़ता है.
आज भी संसद के बजट सत्र, लोकसभा चुनाव के बाद के प्रथम अधिवेशन और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर होने वाले संसद के संयुक्त अधिवेषन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्वारा ही किया जाता है. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए यह पूर्णतः तर्कसंगत एवं औचित्यपूर्ण होता कि संसद के नए भवन का उद्घाटन भी राष्ट्रपति द्वारा ही किया जाता. फिर प्रोटोकाल की भी एक समस्या है. प्रोटोकाल के अनुसार उपराष्ट्रपति का दर्जा प्रधानमंत्री से ऊपर है. यदि प्रधानमंत्री किसी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि हैं तो उपराष्ट्रपति की उस कार्यक्रम में क्या हैसियत होगी. क्या उपराष्ट्रपति, जो राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं, का संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम में अनुपस्थित रहना उचित होगा?
सत्ताधारी दल की ओर से यह कहा जा रहा है कि इंदिरा गांधी ने संसद भवन की एनेक्सी का उद्घाटन किया था इसलिए यदि मोदी जी संसद भवन का उद्घाटन कर रहे हैं तो इसमें क्या गलत है. इंदिरा जी ने क्या किया, सही किया या गलत किया, इससे हम साधारण लोगों का कुछ लेना-देना नहीं है. हम नागरिकों की चिंता यह है कि संविधान का अक्षरशः पालन होना चाहिए, जो नहीं हो रहा है.
(कॉपी : एल एस हर्डेनिया)