बिहार विधानसभा चुनाव के महीनों पहले ही यहां बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा रह-रहकर उठने लगा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल कहा था कि सीमांचल में घुसपैठ की स्थिति चिंताजनक है। 3 सितंबर को केंद्रीय मंत्री गिरिरीज सिंह ने कहा था कि सीमांचल में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारणहिंदु अल्पसंख्यक हो रहे हैं और उनपर अत्याचार बढ़ता जा रहा है। यही बयान बिहार सरकार में मंत्री नितिन नवीन ने भी 8 दिसंबर को कहा था। उन्होंने यहां तक कहा कि घुसपैठियों की पहचान की जाएगी क्योंकि यहां की संसाधनों पर पहला हक बिहारियों का है।
ठीक बात है। बिहारियों का पहला हक है। लेकिन क्या भारतीय जनता पार्टी के पास ऐसा कोई डाटा है, जो बता सके कि बिहार में कितनी की संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये रहते हैं? वे कब-कब आए, कहां-कहां बसे, और हिंदुओं की संख्या में कितनी की कमी आई?यह भी कि सरकार में रहते हुए भाजपा ने इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए? या फिर भाजपा घुसपैठ की आंच में सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटी सेंकना चाहती है?
क्या वाकई बिहार में घुसपैठ है? हम आपको इस सवाल का बहुत ही सटीक औरविश्लेषणात्मक जवाब देने जा रहे हैं। आप मेरी बात मानिए, थोड़ा इत्मीनान से बैठिये और यह वीडियो अंत तक देखिए। ताकि बिहार में जब भी घुसपैठ का मुद्दा उठे, तो आप सही ढंग से यह मुद्दा समझ सकें और सही जानकारी के आधार पर खुद आकलन कर सकें।
तो चलिए फिर शुरू करते हैं बिहार में कथित बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे का विश्लेषण और बताते हैं आपको कि आखिर कितना दम है इस मुद्दे में और क्यों चुनाव के पहले इस मुद्दे को दी जा रही है हवा।
सबसे पहले हम आंकड़ों की बात कर लेते हैं। ताकि विश्लेषण को आधार मिल सके। 2011 की जनगणना के हिसाब से बिहार की आबादी है 10 करोड़ 40 लाख। 2023 में जो जातीय जनगणना हुई थी, उसके हिसाब से बिहार की जनसंख्या अब 13 करोड़ 7 लाख है। इसमें से 63 प्रतिशत ओबीसी, लगभग 20 प्रतिशत एससी, डेढ़ प्रतिशत एसटी और 15.5 प्रतिशत सवर्ण जातियां हैं, जिन्हें आम तौर पर जेनेरल कहा जाता है। मुस्लिम यहां 17.7 प्रतिशत हैं।
1951 में मुस्लिमों की संख्या सिर्फ 12.3 प्रतिशत थी, जो कि 2011 में 16.8 प्रतिशत हो गई और 2023 में 17.7 प्रतिशत। यानी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बिहार में मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या बढ़ी है। वहीं अगर हम हिंदु जनसंख्या की बात करें, तो 1951 में इनकी संख्या 83.3 प्रतिशत थी और 2023 में 81.99 प्रतिशत है। यानी लगभग डेढ़ प्रतिशत की कमी आई है।
पहली बात तो यह साफ-साफ दिखती है कि बिहार में मुस्लिम समुदाय की आबादी बढ़ी है। कितनी बढ़ी है, लगभग 5 प्रतिशत। बिहार की वर्तमान जनसंख्या के हिसाब से यह आंकड़ा होता है लगभग 70 लाख। तो क्या ये 70 लाख लोग बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं? 1997 में तत्कालीन गृह मंत्री इंदिरजीत गुप्ता ने कहा था कि बांग्लादेश से 1 करोड़ लोग भारत आए हैं। 2004 में केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था कि लगभग 1 करोड़ 20 लाख बांग्लादेशी भारत आए, उनमें से 50 लाख लोग असम में बसे हैं। बचे 70 लाख। तो क्या ये सभी घुसपैठियेसिरफ बिहार में ही आकर बस गए?अगर हां, तो फिर झारखंड में यह मुद्दा क्यों उठ रहा था? बंगाल को लेकर भी भाजपा यही कहती है। नॉर्थ ईस्ट के कुछ और राज्यों में भी घुसपैठ की बात होती है।
यानी कि बिहार में मुस्लिमों की संख्या बढ़ने का एक मात्र कारण घुसपैठ नहीं है। कारण है, अन्य समूहों का पलायन, जन्म दर में कमी या अधिकता इत्यादि।
देखिए, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बांग्लादेश के अलग होने के बाद कई लोगों में भारत में पनाह ली और सिलसिला काफी सालों तक चलता रहा। निश्चित तौर पर वे बांग्लादेश से करीब पड़ने वाले भारतीयराज्यों में गए, वहां बसे। लेकिन क्या उनकी संख्या इतनी है कि वे किसी भी राज्य की बहुसंख्यक आबादी से अधिक हो जाए? या किसी जिले में भी बहुसंख्यक हो जाए, या वहां की डेमोग्राफी बदल जाए?
इसका सही जवाब तबतक नहीं मिल सकता, जबतक कि किसी बड़ी सरकारी एजेंसी द्वारा जांच या सर्वे न कराई जाए।
भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड में भी यह मुद्दा बहुत जोर-शोर से उठाया था। लेकिन जब यह मामला होई कोर्ट पहुंचा, तो केंद्र की भाजपा सरकार ने खुद ही बताया कि झारखंड के संताल परगना में आदिवासियों की कम होती आबादी का कारण उनका पलायन है। यहां तक कि उन्होंने घुसपैठ का जिक्र तक अपने एफिडेविट में नहीं किया। यानी होईकोर्ट में दिए अपने हलफनामें में केंद्र की सरकार ने यह बात कही ही नहीं कि झारखंड में घुसपैठ हुआ है। जबकि वहां का पूरा चुनाव ही भाजपा इसी मुद्दे पर लड़ी थी।
सवाल है कि यह मुद्दा अभी क्यों उठ रहा है, और जैसा कि मुझे उम्मीद है, भाजपा इस मुद्दे को और वृहद स्तर पर क्यों ले जाना चाहती है? पहली बात, कि यह मुद्दा पूरी तरह झूठ नहीं है, गलत नहीं है। दूसरी बात, भले ही झारखंड में यह मुद्दा फेल हो गया हो, बिहार में इसके काम करने की पूरी उम्मीद भाजपा को है। कैसे, समझते हैं।
बिहार में आम तौर पर जो राजनीतिक धुरि है, वो सवर्ण, ओबीसी की कुछ जातियां, पिछड़ी जातियां और मुस्लिम हैं। भाजपा इस बार अपना दायरा बढ़ाने के लिए उतर रही है। जेडीयू अपनी वापसी के लिए और राजद कांग्रेस के साथ सरकार बनाने के लिए। कौन सफल होगा, देखते हैं। लेकिन जिस तरफ भाजपा जाना चाह रही है, वो है हिदु वोटरों को एकजुट करने की तरफ। मुस्लिम वोट उन्हें बहुत कम मिलते हैं, यह वे जानते हैं। अगर वे घुसपैठ का मुद्दा उठाते हैं और यह काम कर जाता है, तो निश्चित तौर पर सीमांचल में उन्हें हिंदू वोटों का कुछ और फायदा मिल सकता है। ध्रुवीकरण से भाजपा को हमेशा फायदा मिला है।
ऐसे भी समझिये, कि इस बार जातीय जनगणना के कारण जाति का प्रभाव चुनाव में सबसे अधिक देखने को मिलेगा। ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी होती दिख रही हैं। इसलिए संभवतः भाजपा बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे के माध्यम से काट निकालने की कोशिश कर रही है।
हालांकि बहुत कुछ दोनों खेमों के गठबंधन की स्थिति पर भी यह निर्भर करता है कि वे किस साझे मुद्दे के साथ मैदान में उतरेंगे।
हालांकि झारखंड में इस मुद्दे के फेल होने के कारणों की समीक्षा भाजपा जरूर करेगी और तभी बिहार की राजनीति में इसे शामिल करेगी, लेकिन जिस तरह बिहार भाजपा के नेता इस मुद्दे पर अपनी बात रख रहे हैं। ऐसा लगता है कि भाजपा इस मुद्दे को चुनाव तक और भी गंभीर तरीके से उठाएगी।