राजनीति से दूर भागने वाले हेमंत सोरेन कैसे बने झामुमो के सुप्रीम लीडर, जानिए इनसाइड स्टोरी

,

|

Share:


मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के नये केंद्रीय अध्यक्ष चुन लिए गये हैं.

दिशोम गुरु शिबू सोरेन पार्टी के संस्थापक संरक्षक बने.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के 13वें महाधिवेशन के दूसरे दिन यह निर्णय लिया गया.  इस निर्णय के साथ ही अब झामुमो की कमान पूरी तरह से हेमंत सोरेन के हाथ में आ गई है.

गौरतलब है कि रांची के खेलगांव में आयोजित महाधिवेशन के पहले ही दिन पार्टी के संविधान में संशोधन कर कार्यकारी अध्यक्ष का पद समाप्त कर दिया गया है. इसकी जगह संस्थापक संरक्षक का नया पद सृजित किया गया.

इससे पहले चर्चा थी कि गांडेय विधायक कल्पना मुर्मू सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा. गौरतलब है कि हेमंत सोरेन को वर्ष 2015 में पार्टी के 10वें महाधिवेशन में कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था.

छह साल से झारखंड के मुख्यमंत्री हैं हेमंत सोरेन
हेमंत सोरेन पिछले 6 साल से राज्य के मुख्यमंत्री हैं.

2019 में पहली बार उन्होंने स्पष्ट जनादेश वाली सरकार का नेतृत्व संभाला था. 2024 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की अगुवाई में ही झामुमो ने सबसे शानदार प्रदर्शन किया. राज्य विधानसभा की 81 में से 35 सीटों पर जीत हासिल करके झामुमो सबसे बड़ा दल बना.

लोकसभा चुनाव में भी झामुमो ने प्रदर्शन सुधारा.

2005 में पहला चुनाव गंवाने वाले हेमंत सोरेन 2009 में दुमका विधानसभा सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे. वह 2009 से 2013 के बीच 1 बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. एक बार तो भाजपा के सहयोग से भी सरकार का गठन किया था.

2014 में हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट 2 सीटों पर चुनाव लड़े. बरहेट में वह जीते लेकिन दुमका सीट पर लुईस मरांडी से हार गये. 2015 में हेमंत सोरेन को जमशेदपुर में आयोजित झामुमो के 10वें महाधिवेशन में कार्यकारी अध्यक्ष चुन लिया गया.

नेता प्रतिपक्ष रहते हुए उन्होंने शानदार काम किया.

2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन फिर से दुमका और बरहेट सीट पर चुनाव लड़े. इस बार उन्होंने दोनों सीटों पर जीत हासिल की. बाद में उन्होंने दुमका सीट छोड़ दिया और यहां से उनके छोटे भाई बसंत सोरेन ने उपचुनाव जीतकर राजनीति में पदार्पण किया.

2019 में ही हेमंत सोरेन पहली बार स्पष्ट जनादेश वाली सरकार के मुखिया बने.

2024 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन केवल बरहेट सीट पर चुनाव लड़े और जीते. उन्होंने लगातार दूसरी बार सीएम पद संभाला.

हालांकि, उनके पूरे सियासी सफरनामे को देखें तो यह चौथी बार था जब हेमंत सोरेन ने राज्य के सीएम पद की शपथ ली थी.

इंजीनियरिंग कर चुके हेमंत सोरेन को नहीं थी सियासत में दिलचस्पी
बीआईटी मेसरा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके दिशोम गुरु शिबू सोरेन के दूसरे बेटे हेमंत सोरेन ने 2003 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्टूडेंट विंग के अध्यक्ष के रूप में सियासत में पदार्पण किया था.

वह 2005 में पहली बार दुमका विधानसभा सीट से चुनाव लड़े लेकिन हार गये.

कहते हैं कि पहला चुनाव गंवाने से निराश हेमंत सोरेन का सियासत से मोहभंग हो गया था. वैसे भी उनका पहला प्यार स्केचिंग था. वह इसी में अपना करियर बनाना चाहते थे. वह विदेश जाकर पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन पिता शिबू सोरेन और मां रूपी सोरेन ने उनसे दो टूक कह दिया था कि जो भी पढ़ना या सीखना चाहते हो यहीं देश में रहकर करो.

हेमंत सोरेन की 2006 में कल्पना मुर्मू सोरेन के साथ शादी हो गयी और वह अपनी पारिवारिक जिंदगी और स्केचिंग में व्यस्त थे.

दुर्गा सोरेन के आकस्मिक निधन के बाद सक्रिय राजनीति में आये हेमंत
2009 में शिबू सोरेन के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का आकस्मिक निधन हो गया.

दुर्गा सोरेन में अपना उत्तराधिकारी देख रहे शिबू सोरेन उनके निधन से टूट गये. तब झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिबू सोरेन, दोनों को ही हेमंत सोरेन की जरूरत आन पड़ी. हेमंत भी पीछे नहीं हटे. उनको पार्टी ने उपाध्यक्ष के पद से नवाजा और उन्होंने 2009 के विधानसभा चुनाव में दुमका विधानसभा सीट पर बीजेपी की लुईस मरांडी और झामुमो के ही वरीय नेता रहे स्टीफन मरांडी को हराकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

कहा जाता है कि तब हेमंत सोरेन की प्रयासों से ही भाजपा के समर्थन से शिबू सोरेन के नेतृत्व में की सरकार बनी.

हेमंत सोरेन ने इस सरकार में कोई पद नहीं लिया बल्कि वह संगठन को मजबूत करने के प्रयासों में लगे रहे. कुछ ही समय बाद भाजपा ने समर्थन वापस लिया और शिबू सोरेन को त्यागपत्र देना पड़ा.

हालांकि, कुछ महीनों बाद दोबारा भाजपा-झामुमो का गठबंधन हुआ. इस बार भाजपा के अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने तो हेमंत सोरेन उपमुख्यमंत्री. हेमतं सोरेन को वित्त मंत्रालय भी मिला था.

कभी भाजपा के सहयोग से 2 बार झारखंड में बनाई थी सरकार
हालांकि, वर्ष 2013 में ये गठबंधन दोबारा टूट गया. प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा था.

जनवरी 2013 में भाजपा ने इस गठबंधन को खत्म करने का फैसला किया था. जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन के प्रयासों से कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा गठबंधन की सरकार बनी. ये पहली बार था तब हेमंत सोरेन प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

2014 के विधानसभा चुनाव तक झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की सरकार चली.

हेमंत सोरेन के झामुमो में जुड़ने के बाद से न केवल उनका सियासी कद बढ़ता गया बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा भी चुनाव दर चुनाव कामयाबी हासिल करता गया.

हेमंत के सियासी कद के साथ बढ़ता चला गया झामुमो का ग्राफ
अलग झाऱखंड राज्य गठन के बाद 2005 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था. झामुमो ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी. भाजपा 30 सीट लाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी.

2009 में झामुमो ने 18 सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा को भी 18 सीटें ही मिली थी. हालांकि, मत प्रतिशत के मामले में भाजपा आगे रही. भाजपा को 20.1 फीसदी तो वहीं झामुमो को 15.1 फीसदी वोट मिले थे.

2014 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर का असर दिखा.

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की प्रचंड जनादेश की सरकार बनी थी. झारखंड में भी इसका असर दिखा. भाजपा ने 81 में से 37 सीटों पर जीत हासिल की. झामुमो को 19 सीटों पर जीत मिली, माने पिछले चुनाव से 1 ज्यादा.

2015 में झामुमो के 10वें महाधिवेशन में हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया.

उन्होंने संगठन को नये सिरे से मजबूत किया. कार्यकर्ताओं से मिले. बड़े नेताओं को अपने साथ जोड़ा. जनता से संवाद स्थापित किया. रघुवर सरकार की विफलताओं को भुनाया. जरूरी मुद्दों को विधानसभा चुनाव के अपने मेनिफेस्टो में शामिल किया.

नतीजा आया तो मेहनत का परिणाम सामने था. झामुमो ने 30 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनने का गौरव हासिल किया. कांग्रेस-झामुमो और आरजेडी गठबंधन की सरकार बनी.

2024 में हेमंत सोरेन की अगुवाई में झामुमो ने जीती सर्वाधिक सीटें
2024 में झामुमो ने झारखंड गठन के बाद 25 साल के चुनावी इतिहास का सबसे शानदार प्रदर्शन किया.

पार्टी पूरे 35 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही.

महागठबंधन को 81 में से 55 सीटों पर स्पष्ट जनादेश मिला. हेमंत सोरेन लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. और ऐसा तब हुआ जबकि चुनाव से पहले कोल्हान में चंपाई सोरेन और संताल में लोबिन हेम्ब्रम जैसे दिग्गज नेताओं ने पार्टी छोड़ दी थी. सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन बीजेपी से जा मिली थीं.

तब उन्होंने कुछ नाराज युवा साथियों को अपनी ओर मिलाया. सिल्ली में अमित महतो को वापस लाए. उन्होंने दिग्गज आजसू नेता सुदेश महतो को हरा दिया. लिट्टीपाड़ा में विधायक रहते दिनेश विलियम मरांडी को हटाकर अनुभवी हेमलाल मुर्मू को उतारा.

बोरियो में लोबिन हेम्ब्रम को युवा धनंजय सोरेन के हाथों शिकस्त दिलाई. कोल्हान में चंपाई के नही होने के बावजूद 14 में से 13 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की.

झामुमो में निश्चित तौर पर नये युग की शुरुआत हो चुकी है.

पार्टी अब दिशोम गुरु की छाया से निकलकर हेमंत के नेतृत्व में आगे बढ़ने को तैयार हैं. शिबू सोरेन का आशीर्वाद तो रहेगा ही लेकिन अब राज्य की आदिवासी बहुसंख्या, हेमंत सोरेन को अपना सबसे बड़ा नेता मान चुकी है.

वो दिशोम गुरु के बेटे को अपना चुकी है. अब ये हेमंत युग है. झामुमो में नया नेतृत्व खड़ा हो चुका है.

 

 

 

Tags:

Latest Updates