हफीजुल अंसारी

“शरीयत पहले है फिर संविधान”, हेमंत कैबिनेट के मंत्री हफीजुल अंसारी के बयान पर बवाल

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इनको पहचानते हैं आप. जाहिर है! इनका नाम हफीजुल अंसारी है. दिवंगत झामुमो नेता और पूर्व मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के साहबजादे हैं. मधुपुर से विधायक हैं और हेमंत कैबिनेट में मंत्री भी.

यूं कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि दूसरी बार विधायक निर्वाचित होकर लगातार दूसरी बार मंत्रिपद पाया है.

मंत्रिपद की शपथ संविधान को साक्षी मानकर ली थी. इतना तो आप जानते हैं, पर एक बात कहूं. आप गलत जानते हैं. दरअसल, अब तक हमें भी यही लगता था कि माननीय हफीजुल हसन अंसारी की पहचान यही है कि वे संविधान द्वारा प्रदत अधिकारों के जरिये विधायक निर्वाचित हुए हैं. संविधान को साक्षी मानकर धर्म, जाति, मूलवंश, क्षेत्र, संप्रदाय से ऊपर उठकर लोकतांत्रिक व्यवस्था में काम करने की शपथ ली है लेकिन, हम सब भ्रम में थे.

ये नेता, विधायक, मंत्री, जनप्रतिनिधि कुछ भी हों लेकिन, उससे पहले केवल और केवल मुसलमान हैं.

और ऐसा हम नहीं कह रहे. ये मंत्रीजी ने खुद ही कहा है.

उन्होंने एक हिंदी न्यूज वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में बोल्ड, स्पष्ट और बहुत ही साफगोई से कबूल किया है कि वे मुसलमान पहले हैं. मंत्री या विधायक जो हैं सो तो हैं. यह बात उतना मायने नहीं रखती. मायने यह रखता है कि हफीजुल जी मुसलमान हैं.

बाबा साहेब की जयंती पर किया संविधान का अपमान!
आज बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती है.

इन्हें हम भारतीय संविधान के पितामह के नाम से जानते हैं. आज उनकी ही जयंती पर उनके ही संविधान से मिली शक्तियों से चुने गये एक जनप्रतिनिधि ने खुलेआम कहा है कि, मेरे सीने में कुरान है और हाथ में संविधान. मैं एक मुसलमान हूं और इस नाते मेरे लिए पहले कुरआन है. शरीअत है और तब कहीं जाकर संविधान का नंबर आता है. ॉ

मंत्रीजी यहीं नही रूके हैं.

कहा है कि मैं सीने में शरीअत और हाथ में कुरान लेकर चलता हूं. जब भी शरीअत कुरान और संविधान की बात आयेगी. पहले शरीअत और कुरान आयेगा. फिर संविधान.

यह बात संविधान में प्रदत शक्तियों द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुने गये एक जनप्रतिनिधि ने कहा है.

क्या होगा यदि, कोई संविधान से पहले वेदों और मनुस्मृति को रख लेगा. किसी के लिए संविधान से बड़ा बाइबिल हो जायेगा और कोई गुरु ग्रंथ साहिब के हिसाब से देश चलाना चाहेगा.

हालांकि, वेद, भगवदगीता, बाइबिल या गुरू ग्रंथ साहिब को मानने वालों ने कभी भी इनको संविधान से ऊपर नहीं बताया है. ये और बात है कि धर्मग्रंथो और ईश्वर को लेकर लोगों में सबसे बड़ा या एकमात्र होने का भ्रम रहा है लेकिन, किसी ने भी कभी इसी के हिसाब से देश चलाने की बात नहीं की थी. पर हेमंत कैबिनेट के मंत्री हफीजुल हसन अंसारी ने खुलेआम कह दिया है कि शरीअत पहले है, संविधान बाद में.

तीन तलाक हो या वक्फ बोर्ड. वे शरीअत को मानेंगे न कि संविधान को. मंत्री हफीजुल हसन अंसारी ने कहा कि हमने तो केंद्र सरकार से वक्फ बोर्ड और तीन तलाक पर कानून बनाने को नहीं कहा था.

वक्फ बिल संशोधन के विरोध पर हफीजुल अंसारी का बयान
गौरतलब है कि संसद से पास वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ देशभर में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़कों पर हैं.

झारखंड में आज झारखंड मुक्ति मोर्चा अपना 13वां महाधिवेशन मना रहा है. इस महाधिवेशन में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया है. मुर्शिदाबाद में वक्फ बिल का विरोध कर रही समुदाय विशेष की भीड़ बेकाबू और हिंसक हो गयी है.

मुर्शिदाबाद में हिंदू समुदाय के 3 लोग जान गंवा चुके हैं.

तोड़फोड़, आगजनी, लूटमार और हत्या खुलेआम हो रही है. जब इस संबंध में मंत्री हफीजुल हसन अंसारी से सवाल किया गया तो उन्होंने न तो हत्याओं पर दुख जताया और न ही हिंसा की निंदा की.

केवल इतना ही कहा कि बीजेपी ने उकसाए की कार्रवाई की है.

दावा किया कि उनके पास 20 वीडियो हैं जिनमें भारतीय जनता पार्टी के लोग दंगा भड़काते दिख रहे हैं. क्या एक जनप्रतिनिधि को केवल यही देखना चाहिए कि दंगा इसने भड़काया या उसने.

उन्होंने मुर्शिदाबाद हिंसा की निंदा तो नहीं की अलबत्ता ये कह दिया कि मुसलमान सब्र में है. कब्र में नहीं. यदि वक्फ बिल संशोधन जैसा कानून लाकर बीजेपी उकसाने की कोशिशें करेगी तो मुस्लिम समाज के लोग सड़क पर उतरेंगे और मारकाट मचेगी. देश बर्बाद होगा.

वक्फ बिल के विरोध में हत्या, हिंसा और आगजनी कितना जायज
हो सकता है कि वक्फ बिल पर मुस्लिम समुदाय को आपत्ति हो.

हो सकता है कि वक्फ बिल के प्रावधानों से समुदाय विशेष को आपत्ति हो. संभव है कि वक्फ बिल के प्रावधान किसी प्वॉइंट पर पक्षपातपूर्ण नजर आते हों तो क्या, उसके लिए सड़क पर हिंसा होगी.

क्या विरोध का रास्ता हिंसा, तोड़फोड़, हत्या, लूटपाट और आगजनी होगी.

और यदि ऐसा ही तो फिर क्यों लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का राग अलापना.

हफीजुल हसन अंसारी ने जो भी कहा है. सरकार को उसपर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये. हफीजुल हसन अंसारी किसी चाय की टपरी पर बैठे रेजा कुली श्रमिक नहीं हैं बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुने गये विधायक और मंत्री हैं. वह अपने विधानसभा क्षेत्र में केवल मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व नहीं करते बल्कि वह इलाके की पूरी आबादी के विधायक हैं.

मंत्रिपद मिला है तो उनकी जवाबदेही झारखंड की सवा 3 करोड़ नागरिकों के प्रति है.

ऐसा व्यक्ति यदि कहता है कि पहले शरिया है बाद में संविधान तो फिर सत्तारुढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा और मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना चाहिये कि क्या ये सरकार का स्टैंड है.

क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा मंत्री हफीजुल हसन अंसारी के बयान से इत्तेफाक रखती है. क्या, मुख्यमंत्री हफीजुल हसन अंसारी के बयान से सहमत हैं. यदि नहीं तो पार्टी को सार्वजनिक मंच पर इसे नकारना चाहिये.

पंथ निरपेक्ष भारत में धर्मानुसार आचरण की आजादी
आज बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती है.

पूरा देश उनको धन्यवाद कह रहा है कि उन्होंने ऐसा संविधान दिया जो जाति, धर्म, संप्रदाय, क्षेत्र, समुदाय, मूलवंश, रंग आदि के आधार पर भेदभाव रहित समान हक और अधिकार की बात करता है.

इसी संविधान की प्रस्तावना में लिखा है कि हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता को बढ़ाने के लिए आत्मार्पित करते हैं.

प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से पंथ निरपेक्षता शब्द का इस्तेमाल किया गया है.

इसका मतलब है कि यहां किसी भी नागरिक के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा. सभी नागरिकों को अपने-अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की आजादी होगी लेकिन धर्म कभी भी शासन का आधार नहीं बनेगा.

तब एक चुना हुआ जनप्रतिनिधि कहेगा कि संविधान से पहले शरीअत है तो ये लोकतंत्र की खिल्ली उड़ाने वाली बात होगी.

हफीजुल हसन अंसारी के बयान पर क्या बोले बाबूलाल
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी लिखते हैं कि मंत्री हफीजुल हसन अंसारी के बयान को संविधान का अपमान क्यों न समझा जाये. निश्चित तौर पर यह संविधान का अपमान है.

यदि संविधान से ऊपर शरीअत है तो मंत्रीजी को यह भी बताना चाहिए कि शरीअत में चोरी, लूट, हत्या या हिंसा करने पर क्या सजा मिलती है. क्या वह फौजदारी मामलों में भी शरीअत के हिसाब से सजा का प्रावधान चाहते हैं.

क्या इस देश के मुस्लिम समुदाय के ऊपर फौजदारी मामलों में भी शरीअत का कानून लागू होना चाहिए.

मंत्री हफीजुल अंसारी के बयान की नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी, वरीय भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने निंदा की है.

झामुमो के किसी नेता ने फिलहाल इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी है. न ही सहयोगी कांग्रेस की ओर से कोई टिप्पणी सामने आई है. मंत्री हफीजुल हसन अंसारी ने निश्चित रूप से एक विवादास्पद और गैर-जिम्मेदराना बयान दिया है.

उन्होंने संविधान से ऊपर शरिअत को रखने वाला बयान देने के लिए बाबा साहेब की जयंती को चुना, ये और भी दुर्भाग्यपूर्ण है.

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