लालू यादव ने सच में अंबेडकर का अपमान किया? वायरल वीडियो के बाद बिहार चुनाव में RJD का अब क्या होगा?

, , , , , , ,

|

Share:


रिपोर्ट – विवेक आर्यन

अभी हम बात कर ही रहे थे कि कैसे मंगनी मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राजद ने दलितों को अपने पाले में करने के लिए मास्टर कार्ड खेला है, और अभी ही लालू यादव की एक वायरल वीडियो नेउनके इस दलित नैरेटिव पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.

क्या है वीडियो में – लालू यादव एक कुर्सी पर बैठे हैं, सामने मेच पर उन्होंने पैर रखा है, बिल्कुल ठाठ से. इसी बीच एक व्यक्ति बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर लेकर आता है, और उनके पैरे के पास ही खड़े होकर तस्वीर खिंचवाता है. तस्वीर भी लालू के पैर की तरफ होती है. यह वीडियो लालू के जन्मदिन की है, यानी 11 जून की है. लेकिन अब यह तेजी से फैल रहा है और लोग इसपर प्रतिक्रिया दे रहे हैं.

अब सियासी मुकदमा चल रहा है, सवाल पूछे जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि लालू ने बाबा साहेब का अपमान किया है. तमाम नेताओं के बयान आए हैं, वो भी आपको हम बताएंगे.

लेकिन आज के विश्लेषण का मुख्य केंद्र होगा कि कैसे दलितों के प्रति नैरिटेवसेट करने में राजद को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.साथ ही हल बिहार में दलित वोट बैंक की स्थिति और उनका सियासी रुझान भी आपको बताएंगे. और यह भा बताएंगे कि लालू के इस वीडियो का कितना और किस तरह का नुकसान आगे हो सकता है.

सबसे पहले इस वीडियो को ट्वीट किया भाजपा नेता अमित मालवीय ने.  उन्होंने लिखा कि लालू प्रसाद यादव, जो दशकों से खुद को सामाजिक न्याय का पुरोधा बताते हैं, उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर का घोर अपमान किया है.


उनके ट्वीट के बाद भाजपा ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया दी. उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने लालू प्रसाद पर हमला बोला और कहा, दलित और पिछड़ों को अपमानित करना लालू प्रसाद के डीएनए में है. लालू प्रसाद के जीवन मेंकिसी के लिए सम्मान नहीं है और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के लिए तो बिल्कुल भी उनके हृदय में सम्मान नहीं है. लालू प्रसाद को अपने स्क्रिप्ट के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए.

जदयू के पार्टी प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा, जनता दल यूनाइटेड बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचारधारा पर चलती है मगर दूसरी तरफ आरजेडी में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की तस्वीर को लालू प्रसाद के चरणों में अर्पित कर दिया जाता है और कोई कुछ नहीं बोलता है.

यह वीडियो काफी है यह बताने के लिए कि दलित समाज को लेकर लालू प्रसाद और राजद में कितना प्रेम है. राजद ने दलितों को हमेशा प्रताड़ित किया है. बिहार विधानसभा चुनाव में दलित और महादलित समाज और अंबेडकर को मानने वाले लोग राजद के उम्मीदवारों को सबक सिखाएंगे.

तेजस्वी यादव ने रखा अपना पक्ष

विवाद बढ़ा तो RJD नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव बचाव में सामने आए और बीजेपी को बड़का झूठा पार्टीकहा. तेजस्वी ने कहा, बीजेपी को आंबेडकर या संविधान से कोई मतलब नहीं है. लालू प्रसाद ने पूरे बिहार में आंबेडकर की कितनी मूर्तियां लगवाई हैं. हम लोग आंबेडकर की विचारधारा को मानने वाले लोग हैं. बीजेपी के लोग केवल झूठा प्रचार कर रहे हैं.

राहुल गांधी क्यों चुप है?

प्रशांत किशोर ने भी इस वीडियो को लेकर राहुल गांधी पर निशाना साधा. पीके ने कहा कि राहुल गांधी महागठबंधन के बड़े नेता हैं, लेकिन वो चुप क्यों हैं? उन्होंने सवाल किया कि क्या राहुल गांधी इस अपमान को बर्दाश्त करेंगे, या फिर तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने की उनकी हिचक की वजह ये घटना है? पीके ने इसे राजद की मानसिकता पर सवाल उठाने का मौका बनाया और कहा कि बिहार की जनता अब ऐसे नेताओं को बर्दाश्त नहीं करेगी.

अब आप देखिए कि राजद दलित केंद्रित राजनीति के लिए कोशिश कर रही थी. अपना नया अध्यक्ष भी उन्होंने दलित जाति से दिया. जबकि राजद यादव और मुस्लिम की पार्टी मानी जाती है. उनका पिछला अध्यक्ष सवर्ण जाति से थे, लेकिन फिर भी उन्होंने दलित को अध्यक्ष बनाया, क्योंकि वे एस बार दलित प्रभावित सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. यहां तक कि कांग्रेस ने भी दलित को ही प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाया है.

बिहार में 19-20% है दलितों की आबादी 

2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार में दलितों की आबादी करीब 19-20% है. बिहार विधानसभा में 243 सीटों में से 38 सीटें अनुसूचित जातिके लिए सुरक्षित हैं. इसका मतलब है कि दलित वोटर सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. दलित समुदाय में 22 जातियां आती हैं, जिनमें चर्मकार, पासवान, रविदास, मुसहर, भुइयां जैसी जातियां शामिल हैं. 2005 में नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही दलितों को दो हिस्सों में बांट दिया. 21 जातियों को महादलित और सिर्फ पासवान जाति को दलित कैटेगरी में रखा। इस रणनीति से नीतीश ने दलित वोटरों को साधने की कोशिश की थी.

दलितों की इतनी बड़ी संख्या होने की वजह से हर पार्टी उनकी तरफ आकर्षित होती है. बिहार में दलित वोटर न सिर्फ सुरक्षित सीटों पर, बल्कि सामान्य सीटों पर भी नतीजे बदल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, 2020 के चुनाव में हिलसा सीट पर जदयू और राजद के बीच सिर्फ 12 वोटों का अंतर था. ऐसे में अगर दलित वोटर एकजुट होकर किसी एक पार्टी को वोट दें, तो नतीजे पलट सकते हैं.

समय के साथ दलित वोटरों का बदलता रहा है रुझान

बिहार में दलित वोटरों का रुझान समय के साथ बदला है. आजादी के बाद लंबे वक्त तक दलित कांग्रेस के साथ थे, लेकिन 1990 के दशक में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद बिहार में अगड़े बनाम पिछड़ों की सियासत शुरू हुई. इस दौरान लालू प्रसाद यादव ने दलितों को अपने साथ जोड़ा. 90 के दशक में दलित वोटर राजद के साथ खड़े थे, क्योंकि लालू ने सामाजिक न्याय और पिछड़ों-दलितों के हक की बात की. लेकिन 2005 में नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली और महादलितकैटेगरी बनाकर दलित वोटरों को अपनी तरफ खींच लिया. नीतीश ने जीतन राम मांझी को सीएम बनाकर दलित कार्ड खेला, जिससे जदयू को फायदा हुआ.

2020 के विधानसभा चुनाव में 38 सुरक्षित सीटों में से एनडीए ने 21 सीटें जीतीं, जिनमें जदयू को सिर्फ 8 सीटें मिलीं. महागठबंधन को 17 सीटें मिलीं, जिसमें राजद के टिकट पर सबसे ज्यादा 14 दलित विधायक जीते. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में दलित वोटरों ने बीजेपी का बहिष्कार किया और कुछ हद तक राजद की तरफ झुके. चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे दलित नेता भी एनडीए में हैं, जो पासवान और महादलित वोटरों को साधते हैं. दूसरी तरफ, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है.

2020 में RJD 75 सीटें ही जीतीं

2020 के विधानसभा चुनाव में राजद को करीब 23.1% वोट मिले थे. राजद ने 75 सीटें जीतीं, जो उस चुनाव में किसी भी पार्टी की सबसे ज्यादा सीटें थीं. राजद का पारंपरिक वोटबैंक यादव और मुस्लिम समुदाय रहा है, लेकिन 2020 में राजद को दलित और कुछ EBCवोटरों का भी समर्थन मिला. खासकर मिथिलांचल, सीमांचल, और कोसी क्षेत्र में राजद को अच्छे वोट मिले.

मिथिलांचल में राजद ने दरभंगा, मधुबनी जैसी सीटों पर मजबूत प्रदर्शन किया. सीमांचल में मुस्लिम बहुल इलाकों जैसे किशनगंज, अररिया में राजद को बढ़त मिली.

सुरक्षित सीटों पर भी राजद ने अच्छा प्रदर्शन किया. मिसाल के तौर पर, 2015 में राजद ने 14 दलित विधायक जिताए थे, और 2020 में भी उसने दलित वोटरों का भरोसा जीता. लेकिन नीतीश कुमार के महादलित वोटों पर पकड़ की वजह से राजद को पूरा फायदा नहीं मिला.

देखिए राजद को सत्ता में आने के लिए अब सिर्फ M-Y समीकरण काफी नहीं है। बिहार में 19-20% दलित वोटर हैं, और अगर ये वोटर राजद के साथ आ जाएं, तो पार्टी का वोट प्रतिशत 40% के करीब पहुंच सकता है, जो सत्ता के लिए जरूरी है. 2020 में राजद को 23.1% वोट मिले, लेकिन अगर दलित वोटर पूरी तरह साथ आते, तो ये आंकड़ा 35% से ऊपर जा सकता था। मिसाल के तौर पर, 2015 में जब राजद और जदयू साथ थे, तब महागठबंधन को 41.8% वोट मिले थे, जिसमें दलित और महादलित वोटों का बड़ा योगदान था.

RJD के लिए दलित वोटर क्यों है अहम ?

दलित वोटर राजद के लिए इसलिए भी अहम हैं, क्योंकि बीजेपी और जदयू पहले से ही दलित वोटरों को साधने में लगे हैं. चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) एनडीए में हैं, जो पासवान और महादलित वोटरों को अपनी तरफ खींचते हैं. अगर राजद दलित वोटरों को अपने साथ नहीं जोड़ पाया, तो उसका सत्ता में आना मुश्किल हो जाएगा.

कल ही राजद ने मंगनीलाल मंडल को बिहार प्रदेश अध्यक्ष बनाया. मंगनीलाल धानुक जाति से हैं, जो अति पिछड़ा वर्ग है और बिहार में करीब 2.14% आबादी रखती है, मंगनीलाल मिथिलांचल में प्रभावशाली नेता हैं और पहले झंझारपुर से सांसद रह चुके हैं. लालू ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर EBC और दलित वोटरों को साधने की कोशिश की.

मिथिलांचल में राजद की पकड़ पहले से कमजोर हो रही थी, और मंगनीलाल की नियुक्ति से लालू ने इस इलाके में अपनी खोई जमीन वापस पाने की रणनीति बनाई.

इसके अलावा, 11 जून 2025 को लालू के 78वें जन्मदिन पर राजद ने दलित और महादलित टोलों में भोजन वितरण और बच्चों को कॉपी-कलम बांटने का कार्यक्रम किया. ये सारी कोशिशें दलित वोटरों को लुभाने के लिए थीं. लालू 90 के दशक में दलितों के बीच लोकप्रिय थे, और अब वो फिर से उसी वोटबैंक को जोड़ना चाहते हैं.

लेकिन लालू के इस विवाद के बाद राजद की मुश्किलें बढ़ गई हैं. तेजस्वी यादव ने इसे बीजेपी की साजिश बताया, लेकिन लालू की चुप्पी ने पार्टी को बैकफुट पर ला दिया. मंगनीलाल मंडल को अध्यक्ष बनाकर राजद ने जो दलित वोटरों को साधने की कोशिश की थी, वो इस विवाद से कमजोर पड़ सकती है.

उदाहरण के तौर पर, 2020 में चिराग पासवान की वजह से नीतीश से दलित वोटर छिटक गए थे, और उनकी सीटें 43 तक सिमट गई थीं. इस बार अगर दलित वोटर नाराज हुए, तो राजद को भी ऐसा ही नुकसान हो सकता है. खासकर सुरक्षित सीटों पर, जहां राजद पहले से मजबूत है, वहां हार का खतरा बढ़ सकता है.

लालू परिवार के साथ कोई न कोई विवाद जुड़ ही जा रहा है. पहले तेजप्रताप और अब खुद लालू. देखना होगा कि राजद कैसे ये डैमेज कंट्रोल करती है. फिलहाल लालू का कोई बयान आया नहीं है, और न ही आएगा ऐसा लगता है. लेकिन अगर भाजपा ने उसे बड़ा मुद्दा बनाया, खास कर चिराग या जीतन राम मांझी के जरिये, तो राजद को दिक्कत हो सकती है.

Tags:

Latest Updates