कोल इंडिया

सीएम हेमंत ने उठाई कोल इंडिया का मुख्यालय झारखंड लाने की मांग, स्थानीय को रोजगार की कही बात

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केंद्रीय कोयला और खान मंत्रालय की उच्चस्तरीय मीटिंग में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कई मांगें रखीं.

सीएम ने मंत्री के सामने मांग रखी कि खनन कार्य के लिए जमीन अधिग्रहण के पश्चात विस्थापित होने वाले रैयतों कगो स्टेक होल्डर बनाया जाये. कोयला कंपनियां झारखंड में स्थायी प्रशिक्षण केंद्र खोले और विस्थापितों को ट्रेनिंग दे.

कोल परियोजना में विस्थापितों की भागीदारी सुनिश्चित की जाये.

बंद पड़ी कोयला खनन परियोजनाओं की जमीन राज्य सरकार को लौटाई जाये. माइनिंग कार्य में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाई जाये. निजी कंपनियों को आवंटित कोल ब्लॉ़क में स्थानीय युवाओं को रोजगार मिले.

झारखंड में माइनिंग टूरिज्म को बढ़ावा देने की पहल की जाये. कोल इंडिया का मुख्यालय झारखंड लाया जाये.

कोल रॉयल्टी को लेकर केंद्र से जारी है विवाद
गौरतलब है कि केंद्र सरकार के साथ कोल रॉयल्टी के रूप में 1 लाख 35 हजार करोड़ रुपये की बकाया राशि को लेकर जारी विवाद के बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की यह मांगें महत्वपूर्ण है.

गौरतलब है कि सीएम हेमंत ने निजी माइनिंग कंपनी को कोल ब्लॉक आवंटन पर स्थानीय युवाओं को रोजगार में प्राथमिकता देने की मांग की है. झारखंड सरकार एक कानून भी लाई थी जिसमें निजी कंपनियों के लिए 75 फीसदी स्थानीय युवाओं को रोजगार देना अनिवार्य किया गया था.

कई कंपनियां इस कानून को संविधान विरुद्ध बताते हुए हाईकोर्ट के शरण में गयी.

कोल रॉयल्टी के रूप में बकाया राशि की मांग लगातार की जा रही है. मुख्यमंत्री ने विस्थापितों को स्टेक होल्डर बनाने की मांग की है.

पिछले दिनों जब केंद्र के साथ कोल रॉयल्टी का मामला गरमाया तब भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि विस्थापितों को सही समय पर हक नहीं मिलता. उनको मुआवजा सहित अन्य सुविधायें नहीं मिलती.

झारखंड में कोयला सहित कई खनिज मौजूद हैं
गौरतलब है कि झारखंड में देश में उपलब्ध कुल खनिज संसाधन का 45 फीसदी हिस्सा है.

यहां कोयले का विशाल भंडार मौजूद है. इसके अलावा बॉक्साइट, कॉपर, लौह अयस्क की भी खाने हैं.

झारखंड के जादूगोड़ा से यूरेनियम निकाला जाता है.

हालांकि, खनन के जरिये क्षेत्र के विकास का जितना दावा किया जाता है., धरातल पर वह दिखता नहीं है. विस्थापितों को रोजगार नहीं मिलता. उनका नियम के मुताबिक पुनर्वास नहीं किया जाता. प्रदूषण से संबंधित समस्याएं भी पैदा होती है.

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