JPSC Result: जमीन के नीचे धधकते लावा का दबाव जब हद पार करता है तो जमीन फट पड़ती है और ज्वालामुखी बन जाती है.
समुद्र के भीतर भूकंप जानलेवा सुनामी ले आता है.
सालों तक बिना उचित मेंटनेंस के एसी का इस्तेमाल आखिरकार उसके कंप्रेसर पर दबाव बनाता है और वह फट जाता है. कुल जमा बात ये है कि बहुत ज्यादा दबाव नहीं बनना चाहिए. प्रेशर कूकर को ही लीजिए. उसमें भाप के दबाव को नियंत्रित करने के लिए सेफ्टी वॉल्व लगा होता है. जब ये सेफ्टी वॉल्व सही से काम नहीं करता तो खाना पकाने वाला प्रेशर कूकर एक बम में तब्दील हो जाता है.
ये साइंस के बेसिक नियम हैं लेकिन ऐसा लगता है कि झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग यानी जेएसएससी, झारखंड लोक सेवा आयोग यानी जेपीएससी और झारखंड सरकार ये बेसिक साइंस नहीं समझती.
इन्होंने झारखंड में बेरोजगारी के मसले पर आक्रोशित युवाओं के प्रेशर को सही तरीके से हेंडल नहीं किया.
मेंटनेंस करना तो दूर, इन्होंने अभ्यर्थियों पर पड़ रहे सोशल, इकोनॉमिकल और मेंटल प्रेशर की ओर ध्यान तक नहीं दिया. नतीजा! युवाओं का गुस्सा वोलकेनो में तब्दील हो चुका है और प्रदेश की सड़कों पर सुनामी बनकर दौड़ने को तैयार है.
जाहिर है कि सरकार के पास पुलिस है और पुलिस का लाठीतंत्र, बहुत आसानी से इन आक्रोशित युवाओं को उपद्रवी बताकर इनके सहज और जायज गुस्से का दमन कर देगा लेकिन क्या यही समस्या के समाधान का उचित तरीका होगा.
जेपीएससी 11वीं सिविल सेवा का परिणाम लटका
झारखंड की मौजूदा स्थिति रोजगार की तलाश में खून-पसीना बहा रहे युवाओं के आक्रोश को ज्वालामुखी में तब्दील होने के पर्याप्त परिस्थितियां निर्मित कर रही है. कैसे?
ये उदाहरण सहित समझाऊंगा. 2023 में जेपीएससी 11वीं सिविल सेवा का विज्ञापन निकला था. 2024 में पीटी और मुख्य परीक्षा का आयोजन हुआ. इस बात को अब 9 महीने बीत गए लेकिन रिजल्ट की स्थिति नील बटे सन्नाटा है.
रिजल्ट को लेकर उठ रहे तमाम सवालों पर जेपीएससी या सरकार की तरफ से न तो कोई प्रेस रिलीज जारी की जा रही है. ना ही कोई नोटिस दिया जा रहा है. आयोग के चेयरमैन कुछ बोलते नहीं. सरकार ने अंतहीन चुप्पी साध रखी है.
इस राज्य में सारे काम हो रहे हैं लेकिन रोजगार के मसले पर केवल और केवल हवा-हवाई दावे और वादे हैं.
सीडीपीओ और फूट सेफ्टी ऑफिसर की नियुक्ति भी लंबित
जेपीएससी के मातहत फूड सेफ्टी ऑफिसर और बाल विकास परियोजना पदाधिकारी यानी सीडीपीओ के कम से कम 100 पदों पर नियुक्ति के लिए मुख्य परीक्षा का आयोजन सालभर पहले हो चुका है.
अगस्त 2024 से लेकर फरवरी 2025 तक तो सरकार के पास ये बहाना था कि आयोग के चेयरमैन की नियुक्ति नहीं हो पाई है. रिजल्ट कैसे प्रकाशित होगा.
इस बीच चेयरमैन की नियुक्ति हो जाती है और वे छुट्टी पर चले जाते हैं. रिजल्ट का पूछने पर अभ्यर्थियों से कहते हैं कि हम इसकी समीक्षा कर रहे हैं. ऐसी कौन सी समीक्षा है जो जून 2024 से लेकर अप्रैल 2025 तक पूरे 10 महीने में पूरी नहीं हो सकी है.
अब ऐसे में यदि विपक्ष कहता है कि जेपीएससी 11वीं सिविल सेवा में सेटिंग वालों को फिट करने की जुगत में लगी सरकार रिजल्ट में देरी कर रही है तो इससे नाराजगी क्यों होनी चाहिए. सरकार को ये समझना चाहिए कि रिजल्ट पर आपकी इतनी लंबी चुप्पी बहुत सारी आशंकाओं को जन्म देगी. अभ्यर्थियों को आशंका है कि कहीं सरकार जानबूझकर तो अफरा-तफरी का माहौल नहीं बनाना चाहती ताकि रिजल्ट में गड़बड़ी आसानी से की जा सके.
अफरा-तफरी में ही रिजल्ट का प्रकाशन कर इंटरव्यू का आयोजन कर लिया जाये.
महीनों खाली रहा जेपीएससी चेयरमैन का पद
गौरतलब है कि 22 अगस्त 2024 को जेपीएससी की तात्कालीन अध्यक्ष डॉ. नीलिमा केरकेट्टा रिटायर हो गयी थीं. उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद राज्यपाल के नाम पत्र लिखकर यह बताया था कि कैसे जेपीएससी 11वीं सिविल सेवा मुख्य परीक्षा का परिणाम लंबित रह जाने की वजह से हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य अधर में लटक गया है.
दबी जुबान से यह बात भी कही गयी कि आयोग के बाकी मेंबर्स ने तैयार रिजल्ट पर दस्तखत करने से मना कर दिया और इसलिए इसे जारी नहीं किया जा सका.
क्या मकसद हो सकता है?
गौरतलब है कि 342 पदों पर नियुक्ति के लिए जनवरी 2024 में नोटिस जारी हुआ था. 17 मार्च को प्रारंभिक परीक्षा ली गयी. 22 से 24 जून के बीच मुख्य परीक्षा का आयोजन हुआ और तब से रिजल्ट पर एक लंबी चुप्पी छाई है.
जेपीएससी के मातहत नियुक्तियां लंबित रहने से बढ़ी मुश्किल
झारखंड में जेपीएससी ने फूड सेफ्टी ऑफिसर अथवा खाद्य सुरक्षा अधिकारी के 56 पदों पर नियुक्ति के लिए वेकैंसी निकाली थी.
मुख्य परीक्षा का आयोजन करीब 11 महीने पहले ही किया जा चुका है. इसके रिजल्ट को लेकर हाईकोर्ट कई बार आयोग को तलब कर चुका है. सरकार से तीखे सवाल पूछे गये हैं. हाईकोर्ट ने कई बार नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर स्टेटस रिपोर्ट मांगा है लेकिन आयोग के कानों में जूं तक नहीं रेंगी.
इन पदों पर नियुक्ति के लिए परीक्षा देने वाली अभ्यर्थियों की परेशानी तो है ही, चिंता की बात ये भी है कि होली, दीवाली, दशहरा, न्यू ईयर सहित अन्य पर्व त्योहारों में रेस्टोरेंट और स्वीट शॉप में भोजन की गुणवत्ता जांचने की जिम्मेदारी इनकी है.
प्रतिवर्ष मिलावटी मिठाई या भोजन खाकर लोग बीमार पड़ते हैं. जान गंवाते हैं. इतनी गंभीर समस्या को जिन अधिकारियों की नियुक्ति से सुलझाया जा सकता है, जेपीएससी और झारखंड सरकार उस पर इतनी सहजता से मौन है.
बाल विकास परियोजना पदाधिकारी की नियुक्ति भी अधर में
जेपीएससी के मातहत ही बाल विकास परियोजना पदाधिकारी यानी सीडीपीओ के 65 पदों पर बहाली होने वाली है. इसकी भी मुख्य परीक्षा का आयोजन हो चुका है.
रिजल्ट जारी करके डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन की प्रक्रिया बाकी है.
बाल विकास परियोजना पदाधिकारी, झारखंड में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों की निगरानी करते हैं. वहां सभी सुविधाएं महिलाओं और नौनिहालों को मिले ये सुनिश्चित करते हैं. बावजूद हाल ये है कि सरकार रिजल्ट पर चुप है. आयोग को फर्क नहीं पड़ रहा है. ऐसी स्थिति तब है जबकि झारखंड अभी भी कुपोषण सहित मातृ और शिशु मृत्यु दर को लेकर शर्मनाक आंकड़े रखता है.
तो समझिए. केवल मंईयां सम्मान से महिला सशक्तिकरण कैसे होगा. केवल भाषणबाजी से महिला स्वाबलंबन कैसे सुनिश्चित हो पायेगा.
सहायक अध्यापक के 26001 पद पर महीनों से लंबित है भर्ती
जेएसएससी के जरिये सहायक अध्यापक के 26001 पद पर नियुक्ति के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन हो चुका है. सीटेट बनान जेटेट की लड़ाई में थोड़ा विलबं हुआ था. कम से कम अब प्रक्रिया आगे बढ़नी चाहिए थी. हाईकोर्ट ने इस विषय पर तीखे सवाल आयोग और सरकार से पूछे हैं. झारखंड के प्रारंभिक स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है.
आयोग ने नगरपालिका सेवा संवर्ग के 930 और उत्पाद सिपाही के 400 से ज्यादा पदों पर भर्ती के लिए परीक्षा ली थी. उनके भी परिणाम लंबित हैं. ऐसे कैसे चलेगा??
28 नवंबर 2024 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया था ये वादा
गौरतलब है कि 28 नवंबर 2024 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि पहली जनवरी से पहले ही जेपीएससी और जेएसएससी की तमाम लंबित नियुक्ति प्रक्रियाएं पूरी कर ली जायेगी.
नया एग्जाम कैलेंडर जारी हो जायेगा.
उस वादे को 4 महीने बीत गये और अब तक जेपीएससी और जेएसएससी लंबित नियुक्तियों को पूरा करने और नया एग्जाम कैलैंडर जारी करने की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है.
इसे क्या समझें. क्या मुख्यमंत्री ने बस कहने भर को कह दिया या फिर ये सच्चाई है कि इस सरकार में ब्यूरोक्रेसी बेलगाम और अधिकारी मुख्यमंत्री के आदेश को भी ओवरटेक कर जाते हैं. उनको फर्क ही नहीं पड़ता
कारण जो भी हो. अभ्यर्थियों का धैर्य जवाब दे रहा है. जो लोग परीक्षा दे चुके उनकी उम्मीद खत्म होती जा रही है. जिनको भविष्य में प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होना है, उनकी हिम्मत टूट रही है. ये किसी भी राज्य अथवा सरकार के लिए अच्छे संकेत तो कतई नहीं हैं.