झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरु हो गई है पार्टी और गठबंधन के भीतर तरह तरह की रणनीतियां बनाई जा रही है.चाहे वो सीट शेयरिंग का मुद्दा हो या फिर प्रत्याशी के चयन का. लेकिन इन चुनावी रणनीतियों के तैयारियों के बीच जेएमएम को बड़ा झटका लगा ,शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के बेहद करीबी माने जाने वाले चंपाई सोरेन ने पार्टी से बगावत कर ली. बीते चार दिनों से चंपाई सोरेन को लेकर राज्य में सियासी हलचल तेज है.इसी बीच कयासों का बाजार गर्म है कि चंपाई सोरेन भाजपा में शामिल हो सकते हैं हालांकि इस बात की अब तक आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई है.
लेकिन भाजपा इस बार सत्ता में वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. विधानसभा चुनाव में जीत के लिए भाजपा राज्य की 28 आदिवासी सीटों पर पकड़ मजबूत करना चाहती है. बीजेपी झारखंड की 28 आदिवासी रिजर्व सीटों जिसमें खिजरी,दुमका,खूंटी तोरपा सिमडेगा कोलेबिरा गुमला बिशुनपुर सिसई लेहरदगा मांडर मनिका घाटशिला पोटका सरायकेला खरसावां जामा शिकारीपाड़ा महेशपुर लिट्टीपाड़ा बोरियो बरहेट जगन्नाथपुर मनोहरपुर चक्रधरपुर मंझगांव तमाड़ चाईबासा की सीटें शामिल हैं. इन सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के लिए अभी से तैयारी में जुट गई है.
खबरों की मानें तो बीजेपी संताल परगना और कोल्हान प्रमंडल की एसटी सीटों पर जीत हासिल करने के लिए विशेष तैयारी कर रही है. चुनावी तैयारियों को लेकर बीजेपी के झारखंड प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी, विधानसभा चुनाव के प्रभारी और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, सह प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा लगातार पार्टी के आदिवासी नेताओं से बातचीत कर रहे हैं और लगातार इन क्षेत्रों का दौरा भी कर रहे हैं.
बीजेपी के सूत्रों के अनुसार शिवराज सिंह चौहान, हिमंत बिस्वा सरमा, लक्ष्मीकांत वाजपेयी झारखंड बीजेपी के तमाम आदिवासी नेताओं से संपर्क में हैं. इस संवाद के जरिए बीजेपी यह समझने की कोशिश में कि राज्य के आदिवासी वोटरों का मूड क्या है. उनकी मांग क्या है. बीजेपी यह भी जानना चाहती है की आदिवासी बहुल इलाकों में लोग किन नेताओं को तवज्जो दे रहे हैं. साथ ही यह भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि आदिवासी वोटर अपने बीच बीजेपी के किन नेताओं को देखना और सुनना चाहते हैं. इन तमाम सवालों का जवाब ढूंढा जा रहा है और इसकी रिपोर्ट तैयार कर आलाकमान को सौंपने की तैयारी चल रही है.
झारखंड में भाजपा आदिवासी सुरक्षित सीटों पर अन्य सीटों की तुलना में सबसे पहले कैंडिडेट की घोषणा करने की तैयारी में में है, इस पर पार्टी का मानना है कि पहले कैंडिडेट की घोषणा होने से वोटरों को अपना मन बनाने का पर्याप्त समय मिलेगा, वहीं उम्मीदवारों को भी अपनी पकड़ बनाने का समय मिल जाएगा.
हालांकि अब भाजपा की तैयारी और रणनीतियां झारखंड में कमल खिलाने में सफल हो पाती है या नहीं ये तो चुनावी नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा.