आजसू नेताओं का पार्टी से हो रहा मोहभंग, झामुमो बनी पहली पसंद!

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झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में झामुमो ने जोरदार वापसी की है. इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की और झामुमो 34 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और अब जनता के साथ-साथ नेताओं की भी पहली पसंद झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी झामुमो बनती जा रही है. हालांकि 2024 के चुनाव में भाजपा सत्ता में वापसी तो नहीं कर पाई लेकिन सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी जरुर बनी. पूरे चुनाव में सबसे बुरी स्थिति आजसू की रही. आझसू 10 में से 9 सीटें हार गई.इस हार के बाद अब आजसू नेताओं का झामुमो पार्टी की तरफ झुकाव बढ़ता ही जा रहा है. आजसू पार्टी फिलहाल राज्य में सबसे कमजोर पार्टी की गिनती में गिनी जा रही है.

गठबंधन दलों के साथ मिलकर झामुमो ने अपार बहुमत हासिल किया तो इसके पीछे पार्टी की बढ़ती स्वीकार्यता को बड़ी वजह माना जा रहा है। यही कारण है कि झामुमो में अन्य दलों से एंट्री के लिए नेताओं की लाइन लगने वाली है। रिपोर्ट्स की माने तो सबसे अधिक खलबली आजसू पार्टी में मची है। विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी का निराशाजनक प्रदर्शन इसकी वजह माना जा रहा है। यही कारण है कि दल के कई नेता अपनी राजनीतिक राह अलग करने की जुगत में लग गए हैं। इसका प्रभाव भी दिखने लगा है।

आजसू पार्टी के संस्थापकों में से एक स्वर्गीय कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत ने आजसू पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें लोहरदगा से चुनाव मैदान में उतारा था। उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। कुछ दिनों पूर्व उन्होंने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष सह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मुलाकात की थी। इसकी प्रबल संभावना है कि वह झामुमो में शामिल होंगी। उनके साथ कुछ अन्य नेता भी पार्टी से अलग हो सकते हैं। इससे आजसू पार्टी के समक्ष नया संकट उत्पन्न हो सकता है।
बता दें विधानसभा चुनाव के दौरान भी आजसू पार्टी के वरीय नेता उमाकांत रजक दल छोड़कर झामुमो में शामिल हो गए थे।

झामुमो ने उन्हें चंदनक्यारी सीट से प्रत्याशी बनाया था। वे चुनाव जीतने में सफल रहे। उन्होंने तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अमर कुमार बाउरी को हराने में सफलता पाई। हालांकि, झामुमो में नए नेताओं की एंट्री मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरफ से सहमति मिलने के बाद ही संभव हो पाएगी।

अब राज्य में भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में भी आजसू पार्टी को लेकर मंथन चल रहा है। पार्टी के भितरखाने यह चर्चा है कि आजसू पार्टी के साथ भविष्य में चुनावी साझेदारी पर भी विचार करना चाहिए। आजसू पार्टी का चुनाव के वक्त अनावश्यक दबाव भी था, लेकिन उस मुकाबले चुनाव में परिणाम नहीं आया।

इसका नुकसान यह हुआ कि जिन इलाकों में आजसू पार्टी को सीटें दी गई, वहां स्थानीय संगठन की इकाई पर बुरा असर पड़ा। आजसू पार्टी की वजह से भाजपा ने अपने दल के कुरमी नेताओं की भी अनदेखी की.

इस बड़े और प्रभावी समुदाय से कोई सक्षम नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आया। रघुवर दास की नए सिरे से भाजपा में एंट्री के बाद संभावना है कि इन बिंदुओं पर गौर करते हुए पार्टी आगे यह निर्णय करेगी कि एनडीए में आजसू पार्टी का कितना हस्तक्षेप होगा।

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