Ranchi : झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए अगले हफ्ते वोटिंग शुरू हो जाएगी वहीं चुनाव पहले राजनीतिक दल एक- दूसरे पर शब्दों के बाण चला रहे हैं. इसी बीच प्रत्याशियों के हलफनामें में बढ़ती उम्र से राजनीतिक दलों की परेशानियों भी बढ़ गई है.
तजा विवाद बरहेट से ही है लेकिन यह मामला हेमंत सोरेन से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि भाजपा प्रत्याशी की बढ़ती उम्र को लेकर है. जो मामला सामने आया है उससे देख ये कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा अपने ही जाल में फंस गई है. आखिर बरहेट में ऐसा क्या हो गया है जिससे भाजपा प्रत्याशि विवादो में घिर गए हैं. क्या है पूरा मामला
इलेक्शन कमीशन को सौंपे गए दोनों एफिडेविट में बरहेट से भाजपा प्रत्याशी गमालियल हेम्ब्रम के चुनावी हफनामें के मुताबिक उनकी उम्र 34 है. लेकिन पिछले चुनाव में आजसू प्रत्याशि रहे गमालियल के द्वारा आयोग को दिए गए एफिटेविट को देखेंगे तो आप खुद समझ जाएंगे आखिर हम कहना क्या चाह रहे हैं. हम दोनों हफनामों में गमालियल की उम्र को मिला कर देखें तो कहीं से भी मेल नहीं खाते हैं.
आपको बता दें कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के द्वारा शपथ पत्र में दिए गए उम्र का विवाद अभी थमा भी नहीं है कि बरहेट से ही भाजपा प्रत्याशी गमालियल हेम्ब्रम का उम्र विवादों में आ गया है. अब झामुमो इस मुद्दे पर भाजपा को घेर रही है.
दरअसल 2019 के चुनाव में गमालियल हेम्ब्रम ने अपने चुनावी हलफनामे में 25 साल उम्र बताया था. लेकिन इस बार 2024 के चुनावी एफिडेविट में गमालियल हेम्ब्रम ने अपना उम्र 34 साल बताया है. मतलब ये कि भाजपा प्रत्याशी गमालियल हेम्ब्रम की उम्र पांच सालों में 30 के बजाय 34 की हो गई है. माने ये कि इनकी उम्र पांच साल में 9 साल तक बढ़ गई है.
लेकिन सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि भाजपा प्रत्याशी गमालियल हेम्ब्रम खुद की उम्र की बात छिपाकर हेमंत सोरेन के खिलाफ ही शिकायत करने पहुंच गए और तो और उन्होंने हेमंत सोरेन का नामांकन रद्द करने तक की मांग कर दी . बता दें कि भाजपा प्रत्याशी गमालियल हेंब्रम ने बरहेट के आरओ यानी रिटर्निंग ऑफिसर गौतम भगत से मुख्यमंत्री सह झामुमो प्रत्याशी हेमंत सोरेन के खिलाफ शिकायत की है.
BJP की प्रत्याशी की 5 साल में इतनी बढ़ी उम्र
उन्होंने हेमंत सोरेन की उम्र में गड़बड़ी की शिकायत की है. गमालियल ने अपने आवेदन में उल्लेख किया है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में नामांकन पत्र में हेमंत सोरेन ने 42 साल होने का प्रमाण दिया था.
जबकि 2024 के विधानसभा चुनाव को लेकर दिए गए हलफनामे में हेमंत सोरेन ने अपनी उम्र 49 साल बतायी है. आगे गमालियल ने लिखा है कि पांच साल बाद हेमंत की उम्र 47 साल होनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने 2 साल अधिक कैसे लिखा है. इसी आधार पर उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नामांकन रद्द करने की मांग की है.
आपने तो वो कहावत जरूर सुनी होगी. अपने हाथो अपना ही क्रब खोदना अब लगता है इस मुहावरे के वाक्य इस वक्त भाजपा पर फिट बैठ रहा हो.
खैर ! सवाल तो ये भी है क भाजपा नेता हेमंत सोरेन के द्वारा शपथपत्र में दिए गए उम्र के मुद्दे को जिस तरह उछाला रही है, आखिर भाजपा अपने प्रत्याशी गमालियल हेम्ब्रम के पांच सालों में बढ़े 9
साल की उम्र के बारे में बात क्यों नहीं कर रही है. क्या भाजपा को खुद की गलतियां नजर नहीं आती है. या भाजपा वाले अपनी आंखे मुंद लेते है.
बहरहाल, अब आपके जहन में ये सवाल भी जरूर उठा होगा कि अगर दोनों ही प्रत्याशियों ने अपने शपथपत्र में अपने उम्र को गलत बताया है तो ऐसे में क्या नामांकन रद्द हो सकता है या नहीं. तो यह भी हम बताते है .
नियम क्या कहते हैं
क्या कुछ नियम कहते हैं. दरअसल, गलत हलफनामा के खिलाफ चुनाव आयोग के अधिकार बहुत सामित है. संपत्ति के आंकड़ों को इनकम टैक्स विभाग को भेज देता है, लेकिन बाकी हलफनामे की जांच तभी की जाती है, जब शिकायत मिलती है.
कोई शिकायत न मिले तो ये हलफानामे कूड़े के ढेर जैसे ही हैं अगर शिकायत में एफिडेविट गलत पाया भी जाए तो आयोग बहुत कुछ नहीं कर सकता.
द रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 125ए के तहत अधिकतम 6 महीने की सजा हो सकती है. जुर्माना भी लगाया जा सकता है, लेकिन प्रत्याशी को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता.
हालांकि, एक्ट का सेक्शन 8ए कहता है कि अगर उम्मीदवार करप्ट प्रैक्टिस करता हो, यानी रिश्वत या फिर वोट के लिए धमकियां देता हो तो उसे चुनाव लड़ने से रोका भी जा सकता है. इसी करप्ट प्रैक्टिस की परिभाषा पर विवाद भी है.
प्रत्याशियों के गलत जानकारी देने पर बहुत से नेताओं का मत है कि इसके लिए सजा बढ़ाई जानी चाहिए, खासकर आपराधिक मामलों को छिपाने वालों पर. साथ ही चुनाव लड़ने पर भी रोक लगनी चाहिए ताकि केवल साफ छवि वाले लोग ही नेता बन सकें.
नामांकन रद्द करने को लेकर सिफारिश पर फैसला पेंडिग
आपको बता दें ति इसे लेकर साल 2023 में संसदीय कमेटी ने तात्कालीन भाजपा सांसद दिवंगत सुशील मोदी की अध्यक्षता में रिपोर्ट सौंपी थी. उस वक्च कमेटी ने सिफारिश की थी कि गलत हलफनामा दायर करने की मौजूदा सजा को बढ़ा दिया जाए.