गीता कोड़ा का सियासी भविष्य क्या होगा.
पहले लोकसभा औऱ फिर विधानसभा चुनाव गंवा चुकीं गीता कोड़ा के लिए फिलहाल सियासत में क्या बचा है. क्या वह भाजपा संगठन में रहकर इसे मजबूत करना चाहेंगी. क्या गीता कोड़ा को भाजपा महिला विंग में कोई बड़ी जिम्मेदारी देकर अगले चुनाव तक का इंतजार करेगी या फिर गीता कोड़ा घर वापसी करना चाहेंगी.
केंद्र का तो पता नहीं लेकिन, फिलहाल झारखंड में इंडिया गठबंधन की ही तूती बोल रही है.
सियासी जानकारों को लगता है कि झारखंड में भाजपा अभी डूबती नाव है और इसकी सवारी करना आत्मघाती साबित हो सकता है. गीता कोड़ा ने जो पिछले 2 चुनाव लड़े हैं, उसके नतीजों का विश्लेषण कर रहे जानकारों को लगता है कि कांग्रेस छोड़ना उनके लिए आत्मघाती ही साबित हुआ है.
गीता कोड़ा शायद, वर्ष 2022 के बाद तेजी से बदलते घटनाक्रम को समझ नहीं पाईं. सियासी मौसम का रुख नहीं जान पाईं. देख नहीं पाई कि हवा हेमंत सोरेन की ओर बह रही है जिससे कांग्रेस भी तर है.
यदि कांग्रेस में ही रहतीं तो शायद बेहतर स्थिति में होतीं.
लोकसभा के बाद विधानसभा में भी हारीं गीता कोड़ा
गीता कोड़ा लोकसभा चुनाव में प्रतिद्वंदी जोबा मांझी से चाईबासा सीट पर 1,68,402 वोट के बड़े अंतर से हार गयीं.
जगन्नाथपुर विधानसभा जिसे कोड़ा फैमिली का गढ़ कहा जाता है, वहां गीता कोड़ा को उनके ही पुराने वफादार सोनाराम सिंकू के हाथों करारी हार मिली. अब तक कम से कम यह हवा भी बंद हो गयी कि चाईबासा और जगन्नाथपुर के इलाके में कोड़ा फैमिली की तूती बोलती है. ये भ्रम भी टूटा कि मधु कोड़ा कोल्हान में उस इलाके में राजनीति के चाणक्य हैं. हार बड़ी है और उबरने में वक्त लगेगा.
खनन घोटाला मामले में सजायाक्ता मधु कोड़ा तो कई वर्षों से चुनावी राजनीति से बाहर हैं.
धर्मपत्नी गीता कोड़ा के सहारे राजनीतिक विरासत किसी तरह से आगे बढ़ रही थी लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार ने दंपति को शांत कर दिया है. ऐसे में सवाल है कि गीता कोड़ा के लिए सियासत में क्या बचा है.
विकल्प कई हैं लेकिन कौन सा सही है कैसे जानेंगे.
पहला विकल्प तो यही है कि गीता कोड़ा भाजपा संगठन में ही रहें. भाजपा कोल्हान को लेकर धैर्य धारण करे और गीता कोड़ा को थोड़ा वक्त दे. उनको पार्टी के एसटी या फिर महिला विंग में बड़ी जिम्मेदारी देकर यह संदेश देने का प्रयास करे कि उनको पार्टी में लाना केवल चुनाव भर की बात नहीं थी बल्कि पार्टी सही अर्थों में कोल्हान में आदिवासियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देकर और उनका सामाजिक और आर्थिक उत्थान करना चाहती है.
गीता कोड़ा कोल्हान में चाईबासा संसदीय सीट पर रूकें. आदिवासियों के बीच काम करें और विश्वास जगायें कि अब इधर-उधर नहीं जायेंगी.
क्या कांग्रेस में वापसी करेंगी पूर्व सांसद गीता कोड़ा
दूसरा कि गीता कोड़ा कांग्रेस में वापसी कर ले. पुराने साथियों को साथ ले और अपने इलाके में अगले चुनाव की तैयारी में जुट जायें. उसमें अभी 5 साल का लंबा समय है.
सवाल यही होगा कि क्या गीता कोड़ा में उतना धैर्य होगा.
क्या वह अगले 5 साल तक जनता के बीच बिना किसी पद, पावर और प्रतिष्ठा के काम कर सकती हैं. उससे भी बड़ा सवाल है कि जगन्नाथपुर सीट पर सोनाराम सिंकू के रूप में एक नेता खड़ा कर चुकी कांग्रेस पार्टी क्या गीता कोड़ा को स्वागत करने को तैयार होगी. वह भी तब, जबकि कोल्हान में कोड़ा फैमिली के असर का तिलिस्म टूट चुका है.
क्योंकि ऐसा नहीं होता तो कभी कोड़ा फैमिली के वफादार रहे सोनाराम सिंकू, उसी सीट पर गीता कोड़ा को बुरी तरह से नहीं हरा पाते. माने तो यही हुआ कि गीता कोड़ा के भाजपा ज्वॉइन करने की बात पब्लिक को जमी नहीं.
सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम दिखती हैं गीता कोड़ा
दिलचस्प तो यह बात भी है कि चुनाव बाद हरमू के भाजपा दफ्तर में समीक्षा बैठक में आखिरी बार गीता कोड़ा को पब्लिक अपियरेंस हुआ था. मीटिंग के बाद वह मीडिया से मुखातिब हुई थीं.
तब सियासी भविष्य के सवाल पर गीता कोड़ा ने कहा था कि अब कांग्रेस में वापसी का सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं भाजपा में आ गयी हूं. भाजपा में हूं और रहूंगी.
चुनाव में हार मिली लेकिन जनता के बीच तब भी काम करना है. राजनेता तो ऐसा कहते ही हैं लेकिन वे बिना पद, पावर और प्रतिष्ठा के कब तक धैर्य से अगली बारी का इंतजार करेंगे, इसपर प्रश्न चिन्ह है. गीता कोड़ा इस समय बहुत ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आतीं. कोई बयान नहीं आता. जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा औऱ जेएसएससी सीजीएल को लेकर इतना प्रदर्शन हुआ. मंईयां सम्मान योजना पर विचार विमर्श चल रहा है. शिक्षा के हालात पर बात हो रही है. महिला सुरक्षा के कई मुद्दे सामने आये लेकिन गीता कोड़ा चुप हैं.
2 बार विधायक और 1 बार सांसद रह चुकीं गीता कोड़ा की ये चुप्पी सियासी जानकारों को खलती है.
क्या गीता कोड़ा आत्मंथन में जुटी हैं. क्या गीता कोड़ा अपने इलाके में अपनी हार की समीक्षा कर रही है. क्या गीता कोड़ा हार से उबर रही हैं. या क्या गीता कोड़ा अपने सियासी भविष्य पर मंथन कर रही है कि आगे कहां रहना उनके लिए उचित होगा.
कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा के सिंबल पर लोकसभा औऱ विधानसभा चुनाव हार गयीं गीता कोड़ा क्या समझ गयी हैं कि आदिवासी इलाकों में कम से कम मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा की ओर होना आत्मघाती साबित होगा. कुछ हासिल नहीं होने वाला.
गीता कोड़ा ने भाजपा ज्वॉइन करने का फैसला क्यों लिया
कहा जाता है कि गीता कोड़ा को भी इसका अंदेशा था.
वह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ज्वॉइन करने के लिए 100 फीसदी श्योर नहीं थीं. उनके मन में डर था कि पब्लिक खिलाफ हो सकती है लेकिन 2 कारण थे जिन्होंने उनको कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर किया.
दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा चुनावी राजनीति में वापसी के इच्छुक थे. गीता कोड़ा को उम्मीद थी और शायद उनको यह आश्वासन भी दिया गया होगा कि यदि वह चाईबासा संसदीय सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ती हैं तो मधु कोड़ा के खिलाफ चल रहे केस मैनेज हो जायेंगे. शायद उनको सांसद चुने जाने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देने का वादा भी किया गया होगा. साथ ही, गीता कोड़ा को यह भरोसा रहा होगा कि मोदी लहर में वह जीत जायेंगी.
इसकी एक और वजह थी कि चाईबासा संसदीय सीट पर हो आबादी करीब 70 फीसदी है. यहां संताल कम हैं. गीता कोड़ा खुद हो आदिवासी समुदाय से आती हैं. लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां लड़ाई को हो बनाम संताल करने का प्रयास भी किया था लेकिन, तब तक हेमंत सोरेन का जलवा कायम हो चुका था.
कल्पना मुर्मू सोरेन के रूप में नई सियासी सनसनी मैदान में आ चुकी थीं. गीता कोड़ा को हार मिली. अब उबरने का समझ में नहीं आ रहा है.
सियासी जानकारों का मानना है कि गीता कोड़ा जीत जातीं तो और बात थी लेकिन अभी मधु कोड़ा को उनके खिलाफ चल रहे केस से राहत मिलती नहीं दिख रही है. निकट भविष्य में मधु कोड़ा की चुनावी राजनीति में वापसी की उम्मीद नहीं दिखती.
गीता कोड़ा भी लगातार 2 चुनाव हारने के बाद सियासी दलों के बीच अपनी प्रासंगिकता गंवाती दिख रही हैं. कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि गीता कोड़ा इस समय झारखंड की सियासत के नेपथ्य में हैं. वहां, जहां से वापसी की राह नहीं दिखती.
2009 के विधानसभा चुनाव से शुरू किया था सियासी सफर
गौरतलब है कि गीता कोड़ा ने 2009 के विधानसभा चुनाव में जय भारत समानता पार्टी के सिंबल पर जीत हासिल कर सियासी करियर शुरू किया था. आगे 2014 में उन्होंने लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली.
हालांकि, वह विधानसभा चुनाव जीत गयीं.
अक्टूबर 2018 में गीता कोड़ा कांग्रेस में शामिल हो गयीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उनको चाईबासा संसदीय सीट पर प्रत्याशी बनाया और वह जीती भीं.
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने बीजेपी ज्वॉइन कर लिया. भाजपा को लगा कि वह गीता कोड़ा के जरिये कोल्हान का किला भेद लेगी वहीं गीता कोड़ा को लगा कि भाजपा की सीढ़ी इनको सियासत में एक पायदान ऊपर ले जायेगी.
साथ ही पति मधु कोड़ा का भी उद्धार हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
गीता कोड़ा के साथ समस्या यह भी है कि वह न तो पूरी तरह से कांग्रेस की रह पाईं और न ही पूरा भाजपाई बन पाईं.
कांग्रेस में 6 साल रहीं जिनमें 5 साल सांसदी के थे.
भाजपा में आये अभी 1 साल भी नहीं हुआ है. तो संगठन की बहुत समझ भी नहीं है. यदि कोई पद मिलेगा भी तो आसानी से नहीं क्योंकि दावेदार कई हैं. ऐसे में गीता कोड़ा का सियासी भविष्य फिलहाल भंवर में नजर आ रहा है जब तक कि कोई तारणहार न मिल जाये.