झारखंड के पहले ऊर्जा मंत्री और तीन बार के डुमरी विधायक लालचंद महतो नहीं रहे. बताया गया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. उनकी उम्र 72 साल थी. रांची में उन्हें अपने आवास पर देर रात बाथरूम में चक्कर आया और वे गिरकर बेहोश हो गए। उसके बाद उन्हें प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत बताया.
उनका पार्थिव शरीर दोपहर के बाद बोकारो जिले के बैधकारों के आवास में लाया जाएगा। वहां से अंतिम यात्रा की शुरुआत होगी और उनका अंतिम संस्कार दामोदर नदी के तट पर किया जाएगा.
1977 में डुमरी से पहली बार विधायक
लालचंद महतो ने RSS से जुड़कर भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य के रूप में राजनीति में कदम रखा। उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के प्रभाव में आकर समाजवादी विचारधारा का समर्थन किया.
1977 की बात हैं. आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव में, वे 25 साल के थे. जनता पार्टी के टिकट पर डुमरी विधानसभा से चुनाव लड़े. और उन्हें जनता का जनादेश भी मिला. उसके बाद, 1990 में, वे समता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़कर एक बार फिर से विधायक बने. साल 1999 की बात है. इस बार जदयू ने लालचंद महतो को टिकट दिया. तीसरी बार भी उन्हें जनता का साथ मिला. लालचंद महतो फिर विधायक बने.
गिरिडीह संसदीय चुनाव लड़ने की घोषणा की थी
दिलचस्प बात यह है कि, लालचंद महतो का सफर जनसंघ से शुरू हुआ था. जनसंघ जो स्वर्णो के विचार पर यकीन रखती है.अब 2024 में लालचंद बसपा की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले थे. लालचंद महतो 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के बैनर तले अपने 24 संगठनों के तीसरा मोर्चा के प्रत्याशी बनने वाले थे. उन्होंने 5 दिनों पहले डुमरी में बैठक कर गिरिडीह संसदीय चुनाव लड़ने की घोषणा की थी.
दिसंबर 2019 में विधानसभा चुनाव से पहले, उन्होंने भाजपा के साथ नाता तोड़ लिया. इसके बाद जदयू में शामिल हो गए. जदयू से डुमरी से विधानसभा चुनाव लड़ा. चुनाव के बाद, वे बसपा चले गए,
झारखंड की स्थापना के बाद, बाबूलाल मरांडी की पहली सरकार में ऊर्जा मंत्री बने लालचंद महतो अपने बगावती तेवर के लिए भी प्रसिद्ध हुए.
लालचंद पिछड़ों की आवाज़
वे पिछड़ों को पिछड़ों की जनसंख्या के अनुसार 56% आरक्षण दिलाने के लिए हमेशा तत्पर रहे हाईकोर्ट तक मामला उठाया। साथ ही तत्कालीन सरकार से बगावत भी किया। झारखंड सरकार गठन के समय झारखंड में पिछडों का आरक्षण 27% से 14% कर दिए जाने का उन्होंने भरपूर विरोध किया। साथ ही जनसंख्या के अनुसार 56% आरक्षण दिलाने के लिए कई लड़ाई लड़ी। पिछड़े उन्हें अपने नेता के रूप में देखते थे।